ध्यान का मूल्य है, कीमत क्या?
स्वतंत्रता का मूल्य है, कीमत क्या? और बाजार में बिकती हुई चीजें हैं, सब
पर कीमत लगी है, पर उनका मूल्य क्या है?
जो व्यक्ति के ही जगत में जीता है वह संसारी है। जो मूल्य के जगत में
प्रवेश करता है, वह संन्यासी है। मूल्य प्रसाद है परमात्मा का। लेकिन चूंकि
प्रसाद है, इसलिए चूक जाने की संभावना है। कीमत देनी पड़ती तो शायद तुम
जीवन का मूल्य भी करते। चूंकि मिल गया है; तुम्हारी झोली में कोई अनजान
ऊर्जा उसे भर गई है; तुम्हें पता भी नहीं चला और कोई तुम्हारे प्राणों में
श्वास फूंक गया है; तुम्हें खबर भी नहीं, कौन तुम्हारे हृदय में धड़क रहा
है इसलिए भूले भूले कंकड़ पत्थर बीन बीन कर ही जीवन को गंवा मत देना।
जब तक परमात्मा की खोज शुरू न हो तब तक जानना ही मत कि तुम जिए। जीवन की
शुरुआत परमात्मा की खोज से ही होती है। जन्म काफी नहीं है जीवन के लिए। एक
और जन्म चाहिए। और धन्यभागी हैं वे, जिनके जीवन में हूक उठती है, पुकार
उठती है; पीड़ा का जिन्हें अनुभव होता है; जो परमात्मा की तलाश पर निकल पड़ते
हैं; जो सब दांव पर लगाने को राजी हो जाते हैं।
अमी झरत बिसगत कँवल
ओशो
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