मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने मित्रों को होटल में…गपसड़ाका मारता था, बात
में बात निकल गयी, कह गया डींग मार रहा था, कह गया कि मुझ जैसा दानी इस
गांव में कोई भी नहीं।
एक मित्र ने कहा: मुल्ला, यह बात जंचती नहीं। और तुम बहुत झूठ बोलते हो,
हम मान भी लेते हैं कि जंगल गया था पांच शेर इकट्ठे मार डाले। कि एक तीर
से सात पक्षी गिरा दिये। वह हम सब मान लेते हैं लेकिन इसको तो हम न
मानेंगे। क्योंकि हम इसी गांव में रहते हैं, तुम्हारा दान कभी देखा नहीं।
दान तो दूर कभी तुमने एक दिन हमें चाय नाश्ते पर घर बुलाया भी नहीं है।
तो मुल्ला ने कहा: आओ, इसी वक्त आओ, भोज का निमंत्रण देता हूं।
तीस पैंतीस आदमी होटल का मैनेजर और बैरा सब साथ हो लिए। अकड़ में कह तो
गया लेकिन जैसे जैसे घर करीब आने लगा और जैसे जैसे पत्नी की शकल याद आयी,
वैसे वैसे घबड़ाने लगा कि अब एक मुसीबत हुई। दरवाजे पर पहुंचकर फुसफुसा कर
बोला कि भाइयो, आप भी पति हो, मैं में भी पति हूं। हम सब एक दूसरे की
स्थिति जानते हैं। तुम जरा यहीं रुको, पहले जाकर मुझे पत्नी को राजी कर
लेने दो। दिन भर से घर से नदारद हूं, असल में गया था सुबह सब्जी लेने।
सब्जी तो लाया ही नहीं हूं और पैंतीस आदमियों को भोज पर ले आया हूं। और
दिन भर की पत्नी खिसियायी बैठी होगी। तो जरा थोड़ा सा मुझे मौका दो, तुम जरा
रुको, मैं भीतर जाकर जरा पत्नी को समझा बुझा लूं, जरा राजी कर लूं।
मित्रों ने कहा: यह बात जंचती है। सबको अपना अपना अनुभव है, सभी को बात जंची।
मुल्ला नसरुद्दीन भीतर गया। आधा घंटा बीत गया, लौटा ही नहीं, घंटा बीतने
लगा। लोगों ने कहा: अब रात भी होने लगी और देर भी होने लगी, और डेढ़ घंटा
बीतने लगा। उन्होंने कहा हद हो गयी, सो गया या क्या हुआ! कितनी देर लग गयी
पत्नी को समझाने में? और कोई आवाज भी नहीं आ रही है कि समझा रहा हो, कि
पत्नी चिल्ला रही हो, कि बर्तन फेंके जा रहे हों, कि प्लेटें तोड़ी जा रही
हों, कुछ भी नहीं हो रहा, सन्नाटा है घर में। आखिर उन्होंने दस्तक दी।
मुल्ला ने अपनी पत्नी से कहा कि कुछ नालायक मेरे साथ आ गये हैं। अब उनसे
बचने का एक ही उपाय है, तू ही मुझे बचा सकती है। तू जा और उनसे कह दे कि
मुल्ला नसरुद्दीन घर में नहीं है।
पत्नी गयी। दरवाजा खोला। मित्रों ने पूछा कि मुल्ला कहां है? पत्नी ने
बिलकुल कहा कि मुल्ला! वे सुबह से घर से गये हैं सब्जी लेने, अभी तक लौटे
नहीं। वे घर पर नहीं है।
उन्होंने कहा: अरे, यह तो हद हो गयी। हमारे साथ ही आये हैं, हमने अपनी
आंखों से उन्हें घर के भीतर जाते देखा। और एक आदमी का सवाल नहीं कि धोखा खा
जाए, पैंतीस आदमी मौजूद हैं। मित्र विवाद करने लगे कि नहीं वह जरूर घर में
है।
मुल्ला भी सुन रहा है ऊपर की खिड़की से। अखिर उसके बर्दाश्त के बाहर हो
गया कि विवाद ही किये जा रहे हैं। उसने खिड़की खोली और कहा: सुनो जी, यह भी
तो हो सकता है तुम्हारे साथ आये हों और पीछे के दरवाजे से चले गये हों।
यह तुम नहीं कह सकते। तुम यह नहीं कह सकते कि मैं घर में नहीं हूं;
क्योंकि तुम्हारा यह कहना तो इतना ही सिद्ध करेगा कि मैं घर में नहीं हूं;
आत्मा एक मात्र तत्व है जिस पर संदेह नहीं उठ सकता। इसलिए मैं तुम्हें
परमात्मा नहीं सिखाता, आत्मा सिखाता हूं। आत्मा में डुबकी मारकर परमात्मा
का अनुभव होता है। वह अनुभव है। वह श्रद्धा की बात नहीं है, अनुभव की बात
है। आत्मा में डुबकी मारने का नाम ध्यान और जब डुबकी लग गयी तो उसका नाम
समाधि। अभ्यास का नाम ध्यान, अभ्यास की पूर्णाहुति समाधि। आत्मा में डुबकी
लग गयी तो पता चलता है कि “मैं हूं’, और जिसको पता चलता है “मैं हूं’, उसे
पता चलता है यही “मैं’ सबके भीतर व्याप्त है। यही अस्तित्व सबके भीतर
व्याप्त है। वही परमात्मा है।
गुरु प्रताप साध की संगती
ओशो
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