‘’किसी विषय को देखो……….।‘’
किसी फूल को देखो। लेकिन याद रहे कि इस देखने का अर्थ क्या है।
केवल देखो, विचार मत करो। मुझे यह बार-बार कहने की जरूरत नहीं है। तुम सदा
स्मरण रखो कि देखने का देखना भर है; विचार मत करो। अगर तुम सोचते हो तो वह
देखना नहीं है; तब तुमने सब कुछ दूषित कर दिया। यह शुद्ध देखना है महज
देखना।
‘’किसी विषय को देखा…….।‘’
किसी फूल को देखो। गुलाब को देखा।
‘’फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्टि हटा लो।‘’
पहले फूल को देखा, विचार हटाकर देखो। और जब तुम्हें लगे कि मन
में कोई विचार नहीं बचा सिर्फ फूल बचा है। तब हल्के-हल्के अपनी आंखों को
फूल से अलग करो। धीरे-धीर फूल तुम्हारी दृष्टि से ओझल हो जाएगा। पर उसका
विंब तुम्हारे साथ रहेगा। विषय तुम्हारी दृष्टि से ओझल हो जाएगा। तुम
दृष्टि हटा लोगे। अब बाहरी फूल तो नहीं रहा; लेकिन उसका प्रतिबिंब
तुम्हारी चेतना के दर्पण में बना रहेगा।
‘’किसी विषय को देखा, फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्टि हटा लो, और फिर धीरे-धीरे उससे अपने विचार हटा लो। अब।‘’
तो पहल बाहरी विषय से अपने को अलग करो। तब भीतरी छवि बची रहेगी;
वह गुलाब का विचार होगा। अब उस विचार को भी अलग करो। यह कठिन होगा। यह
दूसरा हिस्सा कठिन है। लेकिन अगर पहले हिस्से को ठीक ढंग से प्रयोग में
ला सको जिस ढंग से वह कहा गया है, तो यह दूसरा हिस्सा उतना कठिन नहीं
होगा। पहले विषय से अपनी दृष्टि को हटाओं। और तब आंखें बद कर लो। और जैसे
तुमने विषय से अपनी दृष्टि अलग की वैसे ही अब उसकी छवि से अपने विचार को,
अपने को अलग कर लो। अपने को अलग करो; उदासीन हो जाओ। भीतर भी उसे मत देखो;
भाव करो कि तुम उससे दूर हो। जल्दी ही छवि भी विलीन हो जाएगी।
पहले विषय विलीन होता है, फिर छवि विलीन होती है। और जब छवि विलीन
होती है, शिव कहते है, ‘’तब, तब तुम एकाकी रह जाते हो। उस एकाकीपन में उस
एकांत में व्यक्ति स्वयं को उपलब्ध होता है, वह अपने केंद्र पर आता है,
वह अपने मूल स्त्रोत पर पहुंच जाता है।
यह एक बहुत बढ़िया ध्यान है। तुम इसे प्रयोग में ला सकते हो।
किसी विषय को चुन लो। लेकिन ध्यान रहे कि रोज-रोज वही विषय रहे। ताकि भीतर
एक ही प्रतिबिंब बने और एक ही प्रतिबिंब से तुम्हें अपने को अलग करना
पड़े। इसी विधि के प्रयोग के लिए मंदिरों में मूर्तियां रखी गई थी।
मूर्तियां बची है, विधि खो गई।
तुम किसी मंदिर में जाओ और इस विधि का प्रयोग करो। वहां महावीर या
बुद्ध या राम या कृष्ण किसी की भी मूर्ति को देखो। मूर्ति को निहारो।
मूर्ति पर अपने को एकाग्र करो। अपने संपूर्ण मन को मूर्ति पर इस भांति
केंद्रित करो कि उसकी छवि तुम्हारे भीतर साफ-साफ अंकित हो जाए। फिर अपनी
आंखों को मूर्ति से अलग करो और आंखों को बंद करो। उसके बाद छवि को भी अलग
करो, मन से उसे बिलकुल पोंछ दो। तब वहां तुम अपने समग्र एकाकीपन में, अपनी
समग्र शुद्धता में, अपनी समग्र निर्दोषता में प्रकट हो जाओगे।
उसे पा लेना ही मुक्त है। उसे पा लेना ही सत्य है।
विज्ञान भैरव तंत्र
ओशो
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