संन्यास का अर्थ है, जीवन को एक काम की भांति नहीं वरन एक खेल की भांति
जीना। जीवन नाटक से ज्यादा न रह जाए, बन जाए एक अभिनय। जीवन में कुछ भी
इतना महत्वपूर्ण न रह जाए कि चिन्ता को जन्म दे सके। दुख हो या सुख, पीड़ा
हो या संताप, जन्म हो या मृत्यु संन्यास का अर्थ है इतनी समता में जीना हर
स्थिति में ताकि भीतर कोई चोट न पहुंचे। अन्तरतम में कोई झंकार भी पैदा न
हो। अंतरतम ऐसा अछूता रह जाए जीवन की सारी यात्रा में, जैसे कमल के पत्ते
पानी में रहकर भी पानी से अछूते रह जाते हैं। ऐसे अस्पर्शित, ऐसे असंग, ऐसे
जीवन से गुजरते हुए भी जीवन से बाहर रहने की कला का नाम संन्यास है।
मैं कहता आँखन देखि
ओशो
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