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Monday, July 18, 2016

दोनों के पार

ध्यान रहे मन कि आदत विश्‍लेषण करने की है। और योग है संश्‍लेषण, तो जब कभी मन विश्लेष ण करे, उसे उठाकर एक तरफ रख देना। विश्‍लेषण के द्वारा तुम अंतिम छोर तक, छोटे से छोटे, अणु परिमाणु तक पहुंच जाओगे। लेकिन संश्‍लेषण के द्वारा तुम विराट और समग्र तक पहुंच जाओगे। विज्ञान खोज करते-करते अणु तक जा पहुंचा। और योग खोजते-खोजते, आत्‍मा तक पहुंच गया। अणु का अर्थ है: लघु और छोटा, और आत्‍मा का अर्थ है, विराट। योग ने संपूर्ण को जाना है, समग्र हो अनुभव किया है। और विज्ञान ने छोटे और उससे भी छोटे तत्‍व को जाना है। और इसी तरह वह लधु की और चलता जा रहा है।


पहले तो विज्ञान ने पदार्थ को अणु में विभाजित किया। फिर विज्ञान ने पाया कि अणु को विभाजित करना कठिन है; फिर जब वे अणु का भी विभाजन करने में सफल हो गए, तो उन्‍होंने उसे परमाणु कहा। अणु का अर्थ ही होता है वह तत्‍व जो अविभाज्‍य जिसे अब और अधिक विभाजित न किया जा सके। लेकिन विज्ञान ने उसे भी विभाजित कर दिया। फिर विज्ञान इलेक्ट्रॉन न न्यूट्रॉन तक जा पहुंचा, और उसने सोचा कि अब और विभाजन संभव नहीं है। क्‍योंकि पदार्थ लगभग अदृश्‍य ही हो गया था। उसे अब देखना संभव नहीं था। जब इलेक्ट्रॉन दिखाई ही नहीं देता, तो कैसे उसका विभाजन संभव हो सकता है। लेकिन अब विज्ञान उसे भी विभाजित करने में सफल हो गया है। बिना इलेक्ट्रॉन को देखे, वैज्ञानिकों के उसको भी विभक्‍त कर दिया है।

वैज्ञानिक इसी तरह से चीजों को विभक्‍त करते चले जाएंगे……अब सभी कुछ हाथ के बाहर हो गया है।

योग ठीक इसके विपरीत प्रक्रिया है: योग संश्‍लेषण की प्रक्रिया है। योग जुड़ते जाने की और अधिकाधिक जुड़ते जाने की प्रक्रिया है, जिससे अंत में व्‍यक्‍ति अपने पूर्ण स्‍वरूप तक जा पहुंचे, स्‍वयं के साथ एक हो जाए। अस्‍तित्‍व एक है।

मन को भी सूर्य-मन, और चंद्र-मन में विभक्‍त किया जा सकता है। सूर्य मन वैज्ञानिक होता है, चंद्र मन काव्यात्मक होता है। सूर्य-मन विश्‍लेषणात्‍मक होता है, चंद्र-मन संश्‍लेषणात्‍मक होता है। सूर्य-मन गणितीय, तार्किक, अरस्‍तुगत होता है। चंद्र-मन बिलकुल अलग ही ढंग का होता है असंगत होता है। अतार्किक होता है। सूर्य-मन और चंद्र-मन दोनों इतने अलग-अलग ढंग से कार्य करते है कि उनके बीच कही कोई संवाद नहीं हो पाता।


तुम कौन से केंद्र पर हो इसको जानने का प्रयत्‍न करो, तुम सूर्य-मन हो तब गणित और तर्क तुम्‍हारे जीवन की शैली है। अगर तुम चंद्र-मन हो तो तो काव्‍य, कल्‍पनाशीलता तुम्‍हारी जीवन-शैली होगी। तो तुम क्‍या हो और तुम्‍हारी क्‍या स्‍थिति है, पहले तो इसे जानना जरूरी है।
 
और ध्‍यान रहे, दोनों मन आधे-आधे होते है, तुम्‍हें दोनों के ही पार जाना है। अगर तुम सूर्य मन हो तो पहले चंद्र मन तक आना होगा। फिर उसके भी आगे जाना है। अगर तुम गृहस्‍थ हो, तो पहले जिप्‍सी हो जाओ।

यही है, संन्‍यास। मैं तुम्‍हें जिप्‍सी बना रहा हूं, घुमक्कड़ बना रहा हूं। अगर तुम बहुत ज्‍यादा तार्किक हो, तो मैं तुमसे कहता हूं, श्रद्धा करो, समर्पण करो, त्‍याग करो, सर्व-स्‍वीकार भाव से झुको। अगर तुम बहुत ज्‍यादा तार्किक हो, तो मैं तुम से कहूंगा कि यहां तर्क की कोई जरूरत नहीं है, बस मेरी और देखो और प्रेम में डूब जाओ। अगर ऐसा कर सको तो अच्‍छा है, क्‍योंकि यह एक प्रेम का नाता है। अगर तुम श्रद्धा में जी सकते हो, तो तुम्‍हारी ऊर्जा सूर्य से चंद्र की और सरक जाएगी।

पतंजलि योगसूत्र 

ओशो 
जब तुम्‍हारी ऊर्जा सूर्य से चंद्र की और सरक जाती है। तो एक नयी ही संभावना का द्वार खुलता है। तुम फिर चंद्र के भी पार जा सकत हो, तब तुम साक्षी हो जाते हो, और वही है उद्देश्‍य, वही है मंजिल।

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