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Thursday, July 7, 2016

सहजस्फूर्तता

तुम उससे परिचित हो जो स्थायी है; तुम जानते हो कि उससे कैसे व्यवहार करना। तुमने उसके संबंध में सब कुछ सीख लिया है। तुम उसके साथ चैन में होते हो, वह अनोखा, अपरिचित नहीं रह गया है। लेकिन यदि जीवन एक सतत प्रवाह होने वाला है, एक क्षण क्षण परिवर्तन, तो उसका अर्थ है कि तुम सदाइही अज्ञात का सामना करनेवाले हो। वह एक गहन भय पैदा करता है, क्योंकि उसका सामना करने के लिए तुम पहले से तैयार नहीं रहोगे। तुम्हें सहजस्फूर्त रूप से ही व्यवहार करना होगा। यह है समस्या। 

सहजस्फूर्तता को सजगता की जरूरत है, चेतना की एक खास गहराई की जरूरत है क्योंकि यदि हर क्षण जीवन बदल रहा है तो हर क्षण तुम्हें अज्ञात को, अपरिचित को, अजनबी को प्रसरित करने के लिए तैयार रहना होगा। तुम उसके लिए पहले से तैयार नहीं हो सकते क्योंकि तुम नहीं जानते कि कल क्या होने वाला है। तुम कोई पूर्वाभ्यास नहीं कर सकते; यह कोई नाटक नहीं है।


जरथुस्त्र: एक नाचता गाता मसीहा 

ओशो 


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