एक व्यक्ति एक बड़े स्टोर में गया और दैनिक उपयोग की कुछ वस्तुएं खरीदीं।
जब वह भुगतान काउंटर खड़ा था तो उसने स्टोर सहायक के पैर पर लात मार दी।
फिर उसने क्षमायाचना की, महोदय, मुझको अपनी इस हरकत पर बेहद शर्म और खेद
है। यह मेरी एक गलत आदत है।
तो आप इसके बारे में किसी चिकित्सक से संपर्क क्यों नहीं करते? स्टोर सहायक ने पूछा।
अगली बार वह जल्दी ही स्टोर में सामान खरीदने आया। इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मुझको लगता है कि आप ठीक हो गए हैं, सहायक ने कहा, क्या आप मनोचिकित्सक के पास गए मैं गया था, उस व्यक्ति ने कहा: उन्होंने आपको किस भांति ठीक किया? सहायक ने पूछा।
हुआ यह, उस व्यक्ति ने कहा, जब मैंने उसके पैर पर लात मारी तो उसने वापस मुझे लात मार दी और बहुत जोर से मारी।
इसलिए याद रखो, जब तुम मेरे पास आती हो, यदि तुम मुझको चोट पहुंचाओ, तो
मैं तुम पर बहुत जोर से प्रहार करने वाला हूं। और कभी कभी तो यदि तुम
प्रहार न करो तो भी मैं प्रहार कर देता हूं। तुम्हारे अहंकार को खंडित करना
पड़ता है, इसी कारण हताशा. होती है। यह हताशा अहंकार की है, यह हताशा
तुम्हारी नहीं है। मैं तुम्हारे अहंकार को अनुमति नहीं देता, मैं इसे किसी
भी तरह का दृश्य या अदृश्य सहारा नहीं देता। लेकिन सुबह के प्रवचन में यह
बहुत सरल है। जो भी प्रहार मैं करता हूं वह दूसरों के लिए ‘होता है, और जो
कुछ भी तुमको अच्छा लगता है तुम्हारे लिए होता है, तुम चुनाव कर सकती हो।
लेकिन संध्या दर्शन में नहीं।
तुमको मैं एक कहानी और सुनाता हू।
स्त्री क्या तुम मुझको अपने पूरे हृदय और आत्मा से प्रेम करते हो?
पुरुष. ओह, हां।
स्त्री : क्या तुम सोचते हो कि मैं संसार में सबसे सुंदर स्त्री हूं?
पुरुष: हाँ
स्त्री क्या तुम सोचते हो कि मेरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हैं, मेरी आंखें झील जैसी हैं, मेरे बाल रेशम जैसे हैं।
स्त्री. ओह, तुम कितनी प्यारी बातें करते हो।
सुबह के प्रवचन में, यह बहुत सरल है, तुम जिस पर विश्वास करना चाहो कि
मैं तुमसे कह रहा हू विश्वास कर सकती हो। लेकिन संध्या के दर्शन में यह
असंभव है।
लेकिन, स्मरण रखो कि तुम्हारी सहायता करने के लिए मैं तुम पर कठोर
प्रहार करता हूं। यह प्रेम और करुणा के कारण है। जब कोई अजनबी मेरे पास आता
है, मैं उस पर दर्शन तक में कोई प्रहार नहीं करता हूं। वास्तव में मैं कोई
संबंध निर्मित नहीं करता हूं क्योंकि मेरी ओर से किया गया संबंध बिजली के
झटके जैसा होने जा रहा है। केवल संन्यासियों के साथ मैं और कठोर हूं और जब
मैं देखता हूं कि तुम्हारी क्षमता महत्तर है तो मैं कठोर हो जाता हूं।
प्रपत्ति में महत क्षमता है। वह सुंदरतापूर्ण ढंग से विकसित और पुष्पित हो
सकती है, और बहुत कम समय में यह हो सकता है, लेकिन उसको बहुत: अधिक
काट छांट की आवश्यकता है। इससे पीड़ा होती है। याद रखो, जब कभी पीड़ा हो,
सदैव निरीक्षण करो… और तुम देखोगी कि यह अहंकार है जिसको पीड़ा होती है, तुम
नहीं हो। अहंकार को गिरा कर, अहंकार को काट छांट कर, एक दिन तुम, तुम
उससे, बादल से बाहर निकल आओगी। और तब तुम मेरे प्रेम को और मेरी करुणा को
समझोगी, इससे पहले नहीं।
मुझसे लोग पूछते हैं, ‘यदि हम संन्यासी नहीं हैं, तो क्या आप हमारी सहायता नही करेंगे?’
मैं सहायता करने के लिए तैयार हूं किंतु तुम्हारे लिए यह सहायता ले पाना
कठिन होगा। एक बार तुम संन्यासी हो जाओ, तुम मेरा भाग बन जाते हो। फिर जो
कुछ भी मैं करना चाहूं कर सकता हूं और तब मैं तुम्हारी अनुमति लेने की फिकर
भी नहीं करता, अब उसकी आवश्यकता न रही। एक बार तुम संन्यासी बन गए, तो
तुमने मुझको सारी अनुमति दे दी है, तुमने मुझको पूरा अधिकार दे दिया है। जब
तुम संन्यास लेते हो तो तुम मुझको अपना हृदय दिखा कर सहमति दे रहे हो। तुम
कह रहे हो : ‘अब मैं यहां हूं जो कुछ आप करना चाहें कर लें।’ और निःसंदेह
मुझको अनेक ऐसे भाग काटने पड़ते हैं जो गलती से तुम्हारे साथ जुड़ गए हैं। यह
करीब करीब एक शल्य क्रिया होने जा रही है। अनेक चीजों को हटाना,
निष्क्रिय करना पड़ता है।
अनेक चीजों को तुम्हारे साथ जोड़ना पड़ता है।
तुम्हारी ऊर्जा को नये रास्तों पर जाने के लिए व्यवस्थित करना पड़ता है; यह
गलत दिशाओं में गति कर रही है। इसलिए यह लगभग विध्वंस करने और फिर पुन:
निर्माण करने जैसा है। यह करीब करीब एक उपद्रव होने जा रहा है। किंतु स्मरण
रखो, कि नृत्य करते हुए सितारों का जन्म उपद्रव में से ही होता है, दूसरा
कोई रास्ता नहीं है।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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