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Thursday, July 14, 2016

भक्ति का गणित

भक्ति कोई गणित की व्यवस्‍था नहीं है हृदय का आदोलन है। गीत में प्रगट हो सकती है। भाषा तो वैसे ही कमजोर है। फिर भाषा में ही चुनना हो तो भक्ति गद्य को नहीं चुनती, पद्य को चुनती है। ऐसे तो पद्य से भी कहां कहा जा सकेगा, लेकिन शब्‍दों के बीच में लय को समाया जा सकता है। शब्‍द से न कहा जा सके, लेकिन शब्‍दों के बीच समाहित धुन से शायद कहा जा सके।


तो भक्त के जब शब्‍द सुनो तो शब्‍दों पर बहुत ध्यान मत देना। भक्त के शब्‍दों में उतना अर्थ नहीं है जितना शब्‍दों की धुन में है, शब्‍दों के संगीत में है। शब्‍दों अपने आप में तो अर्थहीन हैं। जिस रंग में और जिस रस में लपेटकर शब्दों के भक्त ने पेश किया है, उस रंग और रस का स्वाद लेना।


लेकिन अकसर अनुवाद में मूल खो जाता है, और कभी- कभी तो इतनी सरलता से खो जाता है कि खयाल में भी नहीं आता। क्योंकि हम सोचते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है कि आचार्यों ने गाया कि आचार्यों ने कहा, बात तो एक ही है।

भक्ति सूत्र

ओशो 

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