तुम अपवाद नहीं हो; यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि मैं
अपवाद हूं। अगर तुम सोचते हो कि मैं अपवाद हूं तो भलीभाँति जान लो कि ऐसे
ही हर सामान्य मन सोचता है। यह जानना कि मैं सामान्य हूं जगत में सबसे
असामान्य घटना है।
किसी न सुजुकी से पूछा कि तुम्हारे गुरु में असामान्य क्या था?
सुजुकी स्वयं झेन गुरु था। सुजुकी ने कहा कि उनके संबंध में मैं एक चीज
कभी न भूलूंगा कि मैंने कभी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो अपने को इतना
सामान्य समझता हो। वे बिलकुल सामान्य थे और वही उनकी सबसे बड़ी
असामान्यता थी। अन्यथा साधारण व्यक्ति भी सोचता है कि मैं असामान्य
हूं, अपवाद हूं।
लेकिन कोई व्यक्ति असामान्य नहीं है। और तुम अगर यह जान लो तो
तुम असामान्य हो जाते हो। हर आदमी दूसरे आदमी जैसा है। जो वासनाएं
तुम्हारे भीतर चक्कर लगा रही है वे ही दूसरों के भीतर घूम रही है। लेकिन
तुम अपनी कामवासना को प्रेम कहते हो और दूसरों के प्रेम को कामवासना कहते
हो। तुम खुद जो भी करते हो, उसका बचाव करते हो तुम कहते हो कि वह शुभ काम
है। इसलिए कहता हूं। और वही काम जब दूसरे करते है तो वह वही नहीं रहते, वह
शुभ नहीं रहते।
और यह बसत व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है। जाति और राष्ट्र भी
यही करते है। अगर भारत अपनी सेना बढ़ाता है तो वह सुरक्षा का प्रयत्न है
और जब चीन अपनी सेना को मजबूत करता है तो वह आक्रमण की तैयारी हे। दुनिया
की हर सरकार अपने सैन्य संस्थान को सुरक्षा संस्थान कहती है। तो फिर
आक्रमण कौन करता है? जब सभी सुरक्षा में लगे है तो आक्रामक कौन है? अगर तुम
इतिहास देखोगें तो तुम्हें कोई आक्रामक नहीं मिलेगा। हां, जो हार जाते है
वह आक्रामक करार दे दिए जाते है। पराजित लोग सदा आक्रामक माने गए है।
क्योंकि वे इतिहास नहीं लिख सकते है। इतिहास तो विजेता लिखते है।
अगर हिटलर विजयी हुआ होता तो इतिहास दूसरा होता। तब वह आक्रामक
नहीं, संसार का रक्षक माना जाता। तब चर्चिल, रूजवेल्ट और उनके मित्र गण
आक्रामक माने जाते। और कहा जाता कि उन्हें मिटा डालना अच्छा हुआ। लेकिन
क्योंकि हिटलर हार गया। वह आक्रामक हो गया। तो न सिर्फ व्यक्ति, बल्कि
जाति और राष्ट्र भी वही तर्क पेश करते है; अपने को औरों से भिन्न बताते
है।
कोई भी भिन्न नहीं है। धार्मिक चित वह है जो जानता है कि
प्रत्येक व्यक्ति समान है। इसलिए तुम जो तर्क अपने लिए खोज लेते हो वही
दूसरों के लिए भी उपयोग करो। और अगर तुम दूसरों की आलोचना करते हो तो उसी
आलोचना को अपने पर भी लागू करो। दोहरे मापदंड मत गढ़ो। एक मापदंड रखने से
तुम पूरी तरह रूपांतरित हो जाओगे। एक मापदंड तुम्हें ईमानदार बनाएगा। और
पहली दफा तुम सत्य को सीधा देखोगें जैसा वह है।
तुम उन्हें स्वीकार कर लो और वे रूपांतरित हो जाएंगी। लेकिन हम
क्या कर रहे है? हम स्वीकार करते है कि विषय-वासना दूसरों में है। जो-जो
गलत है वह दूसरों में है और जो-जो सही है वह तुम में है। तब तुम रूपांतरित
कैसे होगे? तुम तो रूपांतरित हो ही। तुम सोचते हो कि मैं तो अच्छा ही हूं।
दूसरे सब लोग बुरे है। रूपांतरण की जरूरत संसार को है। तुम्हें नहीं।
विज्ञान भैरव तंत्र
ओशो
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