मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि आपने स्वप्न में हमसे ऐसा कहा!
मैं उनसे कहता हूं कि तुम पहले चुप होना सीखो। नहीं तो स्वप्न भी तुम्हारा
है और तुम्हारे स्वप्न में आया हुआ मैं भी तुम्हारा ही हूं, मैं नहीं हूं।
स्वप्न भी तुम्हीं निर्मित कर रहे हो, मुझे भी तुम्हीं निर्मित कर रहे हो,
और मुझसे जो वाणी तुम बुलवा रहे हो, वह भी तुम्हारी ही है। लेकिन तुम
होशियार हो, क्योंकि तुम अपने पर तो भरोसा नहीं कर सकोगे, इसलिए तुम मुझसे
बुलवा रहे हो। और तुम जो चाहते हो वही बुलवा रहे हो।
आदमी को स्वयं के साथ छल करने की इतनी संभावना है कि जिसका कोई हिसाब
नहीं, अंत नहीं। मेरे पास ही आ कर लोग मुझसे कहते हैं कि आपने ही आदेश दिया
था, इसलिए हमने ऐसा किया! कब तुमने मुझसे आदेश लिया था? कहते हैं, स्वप्न
में आपने कह दिया था! और किया उन्होंने वही, जो वे करना चाहते थे! और कई
दफे तो मैं इतना चकित हो जाता हूं कि मैं सामने ही उनको आदेश दे रहा हूं कि
ऐसा मत करना, वे उसको सुन ही नहीं रहे हैं! वे कह रहे हैं कि आपने आदेश
दिया था स्वप्न में, उसको हमने किया! और मैं सीधा आदेश दे रहा हूं वह उसको
सुन ही नहीं रहे हैं, करने की तो बात ही अलग है! इसको कहता हूं मैं छल। पर
इसका उन्हें पता भी नहीं कि वे क्या कर रहे हैं! मैं उनसे कह रहा हूं प्रकट
में कि ऐसा करो, उसको वे सिर हिला रहे हैं कि यह हमसे न होगा! लेकिन
स्वप्न में मैंने कहा था, उसको मान कर उन्होंने किया! निश्चित ही, जो वे
करना चाहते हैं, वही कर रहे हैं।
जब तक तुम्हारा मन पूरी तरह शांत न हो गया हो, तब तक तुम वही सुनोगे, जो
तुम सुनना चाहते हो। तब तक तुम वही करोगे, जो तुम करना चाहते हो। तब तक इस
जगत के रहस्य तुम्हारे सामने न खुल सकेंगे। क्योंकि तुम अपनी ही भावनाओं,
अपनी ही वासनाओं, अपनी ही कामनाओं से इस बुरी तरह भरे हो कि जगत कुछ प्रकट
भी करना चाहे, तो प्रकट कर नहीं सकता है। लेकिन अगर ध्यान तुम्हारा सधता
जाए और ऐसी घड़ी आ जाए, जब तुम अनुभव कर सको कि अब कोई भी विचार नहीं है, तो
थोड़ा प्रयोग करना।
थोड़ा प्रयोग करना। ऐसे ध्यान की अवस्था में किसी वृक्ष के नीचे कुछ दिन
प्रयोग करना। किसी भी वृक्ष के नीचे प्रयोग हो सकता है। लेकिन अगर कोई
विशेष वृक्ष हो तो परिणाम बहुत शीघ्र और साफ होंगे। जैसे बुद्ध गया का
बोधिवृक्ष है। अगर उसके नीचे बैठ कर तुम सात दिन ध्यान करते रहो। और
तुम्हारा ध्यान जम गया हो, ठीक आ गया हो, तो फिर तुम वहां चले जाओ और सात
रात बैठे रहो वृक्ष के नीचे, ध्यान करते हुए। और जब तुम्हें लगे कि तुम
बिलकुल शून्य हो गए हो, तब तुम वृक्ष को सिर्फ इतना कह दो, कि तुझे कुछ
मेरे लिए कहना हो तो कह दे। और तब तुम मौन बैठ कर प्रतीक्षा करते रहो। तुम
हैरान हो जाओगे कि वृक्ष तुमसे कुछ कहेगा। और कुछ ऐसा कहेगा जो तुम्हारे
पूरे जीवन को रूपांतरित कर दे।
वृक्ष कुछ संजोए हुए है, कुछ संगृहीत किए हुए है, और केवल उन्हीं के लिए
संजोए हुए है, जो पूछने की सामर्थ्य रखते हैं। वे पूछेंगे तो उनको उत्तर
मिल जाएगा। लेकिन उतनी दूर जाने की भी कोई जरूरत नहीं है। यह आकाश सारे
बुद्धों को अपने में समाए हुए है। इस पृथ्वी पर सारे महावीर और सारे जीसस
और सारे कृष्ण चले और उठे हैं। इस पृथ्वी से ही पूछ सकते हो।
पूरी तरह ध्यान की अवस्था में पृथ्वी पर नग्न लेट जाओ, जैसे कोई छोटा
बच्चा मां की छाती पर लेटा हो। और ऐसा ही खयाल कर लो कि यह पूरी पृथ्वी
तुम्हारी मां है, तुम उसके स्तन अपने हाथ में लिए हुए उसकी छाती पर लेटे
हुए हो। बिलकुल शांत और शून्य हो जाओ। और जब तुम्हें लगे कि अब तुम्हारे
शरीर की मिट्टी में और उसकी मिट्टी में कोई फर्क न रहा, दोनों एक हो गई
हैं, और तुम्हारे भीतर शून्य विराजमान हो गया है, तब तुम पूछ लो। यह पृथ्वी
अगर तुम्हारे लिए कोई संदेश रखे है, तो तुम्हें उपलब्ध हो जाएगा। और तुम
पाओगे कि ऐसा बलशाली संदेश तुमने कभी कहीं से नहीं पाया। उसके पाने के बाद
तुम वही न रह जाओगे, जो तुम थे। और तब इस प्रक्रिया में गहरा उतरा जा सकता
है। और इस तरह से बहुत सी चीजें उपलब्ध की जा सकती है; जो वैसे खो गई है।
साधना सूत्र
ओशो
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