मुझको तुम्हारे लिए यह बात स्पष्ट करने दो : प्रेम के प्रति ईमानदार रहो
और साथियों की चिंता मत करो। भले ही साथी एक हो या अनेक साथी हों, प्रश्न
यह नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या तुम प्रेम के प्रति ईमानदार हो? यदि तुम
किसी स्त्री या पुरुष के साथ रहते हो और उसको प्रेम नहीं करते हो, तो तुम
पाप में जीते हो। यदि तुम्हारा किसी से विवाह हुआ है और तुम उस व्यक्ति को
प्रेम नहीं करते हो, और फिर भी तुम उसके साथ जीए चले जाते हो., उस स्त्री
या पुरुष के साथ प्रेम करते रहते हो, तो तुम प्रेम के विरोध में एक पाप कर
रहे हो… और प्रेम परमात्मा है।
तुम सामाजिक औपचारिकताओं, सुविधाओं, सहूइलयतों के लिए प्रेम के विपरीत
निर्णय ले रहे हो। यह उतना ही अनुचित है जितना कि तुम जाकर किसी स्त्री के
साथ बलात्कार कर लो जिससे तुम्हारा कोई प्रेम नहीं है। तुम किसी स्त्री के
साथ बलात्कार करते हो, तो यह एक अपराध है क्योंकि तुम उस स्त्री से प्रेम
नहीं करते और वह स्त्री तुमको प्रेम नहीं करती। लेकिन, यदि तुम किसी स्त्री
के साथ रहते हो और तुम उसको प्रेम नहीं करते, तब भी ऐसा ही होता है। तब एक
बलात्कार है यह, निःसंदेह यह सामाजिक रूप से स्वीकृत है किंतु यह बलात्कार
है और तुम प्रेम के देवता के विपरीत जा रहे हो।
इसलिए जैसे कि पूरब में लोगों ने अपने संपूर्ण जीवन के लिए एक साथी के
साथ रहने का निर्णय ले लिया है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यदि तुम प्रेम
के प्रति सच्चे बने रहते हो तो एक व्यक्ति के साथ रहते रहना सुंदरतम बात
है, क्योंकि घनिष्ठता विकसित होती है। लेकिन निन्यानबे प्रतिशत संभावनाएं
तो यही हैं कि वहां कोई प्रेम नहीं होता, केवल तुम साथ साथ रहते हो। और
साथ साथ रहने से एक प्रकार का संबंध विकसित हो जाता है, जो कि केवल साथ साथ
रहने से बन गया है, प्रेम के कारण नहीं बना है। और इसे प्रेम समझने की
गलती मत करना। किंतु यदि ऐसा संभव हो जाए, यदि तुम एक व्यक्ति को प्रेम करो
और उसके साथ पूरा जीवन रहते हो, तो एक गहरी घनिष्ठता विकसित होगी, और
प्रेम तुम्हारे लिए गहनतर और गहनतर रहस्योदघाटन करेगा।
यदि तुम अक्सर अपने
जीवनसाथी को बदलते रहो तो यह संभव नहीं है। यह इस प्रकार से है जैसे कि
तुम किसी वृक्ष को उखाड़ कर उसका स्थान बदल दो; कुछ समय बाद पुन: बदल दो, तब
यह कभी अपनी जड़ों को कहीं जमा नहीं सकता। जड़ें जमाने के लिए वृक्ष को एक
स्थान पर बने रहने की आवश्यकता है, तब यह गहराई में जाता है, तब यह और
शक्तिशाली हो जाता है। घनिष्ठता अच्छी बात है, और एक प्रतिबद्धता में बने
रहना सुंदर है, किंतु आधारभूत आवश्यकता हैं प्रेम। यदि वृक्ष को ऐसे स्थान
पर लगा दिया जाए जहां पर केवल चट्टानें हैं और वे वृक्ष को मारे डाल रही
हैं, तब वृक्ष को हटा देना ही बेहतर है। तब यह आग्रह मत करो कि उसको एक ही
स्थान पर बने रहना चाहिए। जीवन के प्रति सच्चे बने रहो, वृक्ष को हटा दो,
क्योंकि अब यह मामला जीवन के विपरीत जा रहा है।
पश्चिम में लोग बदल रहे हैं बहुत से संबंध। प्रेम की दोनों उपायों से
हत्या होती है। पूरब में इसको मार डाला गया है, क्योंकि लोग परिवर्तन से
भयभीत हैं, पश्चिम में इसकी हत्या की गई, क्योंकि लोग एक साथी के साथ लंबे
समय तक रहने से भयभीत हैं, भयग्रस्त हैं, क्योंकि यह एक प्रतिबद्धता बन
जाता है। इसलिए इससे पहले कि यह एक प्रतिबद्धता बन जाए, बदल डालों। इस
प्रकार तुम मुक्त और स्वतंत्र बने रहते हो और एक खास प्रकार की आवारगी बढ़ने
लगती है। ओर स्वतंत्रता के नाम पर प्रेम को करीब करीब कुचल दिया गया है,
मौत के मुहाने पर खड़ा है प्रेम। प्रेम को दोनों उपायों से क्षति पहुंची है
पूरब में लोग सुरक्षा, सुविधा तथा औपचारिकता से आसक्त हैं; पश्चिम में वे
अपने अहंकार की स्वतंत्रता, अप्रतिबद्धता से आसक्त हैं लेकिन प्रेम को
दोनों उपायों के कारण क्षति पहुच रही है।
मैं प्रेम के पक्ष में हूं। न मैं पूर्वीय हूं और न पाश्चात्य, और मैं
इस बात की जरा भी चिंता नहीं करता कि तुम किस समाज के हो। मैं किसी समाज का
नहीं हूं। मैं प्रेम के पक्ष में हूं। सदैव स्मरण रखो, यदि यह प्रेम का
संबंध है, तो शुभ है।
जब तक प्रेम जारी है, उसमें बने रहो, और जितना संभव हो सके उतनी गहराई से प्रतिबद्ध रहो।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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