रामपाल, अहोभाव की इस दशा को थिर रखना, इससे बड़ी कोई प्रार्थना नहीं है।
अहोभाव से बड़ा कोई सेतु नहीं है परमात्मा से जोड़ने वाला। जो कृतज्ञ है वह
धन्यभागी है। और जितने तुम कृतज्ञ होते चलोगे उतनी ही वर्षा सघन होगी अमृत
की। इस गणित को ठीक से हृदय में सम्हाल कर रख लेना।
जितना धन्यवाद दे सकोगे उतना पाओगे। शिकायत भूलकर न करना। और ऐसा नहीं
है कि शिकायत करने के अवसर न आएंगे। मन की अपेक्षाएं बड़ी हैं, तो हर पल हर
कदम पर शिकायतें उठ आती हैं; ऐसा होना था, नहीं हुआ। जब भी ऐसा लगे कि ऐसा
होना था नहीं हुआ, तभी स्मरण करना कि भूल होती है; क्योंकि शिकायत अवरोध बन
जाती है। शिकायत का अर्थ हुआ कि तुम परमात्मा पर अपनी आकांक्षा आरोपित
करना चाहते हो।
और ऐसा मत सोचना कि शिकायत तुमसे न होगी, जीसस जैसे परम पुरुष से भी
शिकायत हो गई थी। आखिरी घड़ी में सूली पर लटके हुए एक क्षण को निकल गई थी
पुकार, आकाश की तरफ सिर उठाकर जीसस ने कहा था. ‘हे प्रभु, यह तू क्या दिखला
रहा है?’ सोचा नहीं होगा कि सूली लगेगी। सोचा नहीं होगा कि परमात्मा इस
तरह से असहाय छोड़ देगा। पर तत्थण अपनी गलती पहचान गए, फिर आंखें झुका लीं
और क्षमा मांगी और कहा. तेरी मर्जी पूरी हो! तू कर रहा है तो ठीक ही कर रहा
होगा।
और इतना ही फासला है अज्ञान और ज्ञान में। इतना ही फासला है अंधेरे में
और प्रकाश में। इतना ही फासला है भटके हुए में और पहुंचे हुए में। बस इतने
से फासले में सारी घटना घट गई; जरा—सी कमी रह गई थी, वह भी पूरी हो गई। जो
तेरी मर्जी हो!
अहोभाव को बनाए रखना। उसकी तरफ से थोड़ा—सा भी प्रकाश मिले, नाचना, मस्त
होना। ऊर्जा उठे, धन्यवाद में बह जाना। और उठेगी ऊर्जा। और फूल खिलेंगे।
जितना तुम्हारा धन्यवाद का भाव बढ़ेगा, उतने ही फूलों पर फूल खिलेंगे।
शुभ हो रहा है। बस अहोभाव न चूके। मेरी दृष्टि में है, मेरे खयाल में
है, जो तुम्हारे भीतर हो रहा है। अकड न आ जाए। बस वहीं चूक होती है।
बड़ी से बड़ी चूक होती है। ऊर्जा उठने लगे, भीतर ज्योति जलने लगे, भीतर नाद
सुनाई पड़ने लगे, अहंकार पीछे के रास्ते से आकर पकड़ लेता है। अहंकार कहेगा.
देखो, रामपाल तुम खास हुए। अब तुम कोई साधारण पुरुष नहीं हो, तुम सिद्ध हो!
अहंकार की चालबाजियों से बचना। अहंकार अंत अंत तक पीछा करता है। धन से
ही नहीं अकड़ता, पद से ही नहीं अकड़ता, प्रार्थना से भी अकड़ जाता है, ध्यान
से भी अकड़ जाता है। और जहां अहंकार आया वहीं द्वार बंद हो गए; वहीं तुम
विच्छिन्न हो गए, टूट गईं तुम्हारी जड़ें परमात्मा से।
मरौ हे जोगी मरौ
ओशो
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