एक अमेरिकन यात्री ने लिखा है कि वह पहली दफा जापान गया और जब वह टोकियो
के एअरपोर्ट के बाहर आया कोई तीस साल पहले की घटना है तो उसने देखा कि
वहां दो आदमी लड़ रहे हैं। लड़ नहीं रहे हैं, सिर्फ एक दूसरे को गालियां देते
हैं, घूसे दिखाते हैं, मुंह बनाते हैं, जैसे जान ले लेंगे। और बड़ी एक भीड़
खड़ी हुई देख रही है। यह बड़ी देर तक चलता रहा। वह भी खड़े होकर देखता रहा।
उसे तो कुछ समझ में न आया कि मामला क्या है! जब लड़ाई ही होनी है और इतने
जोर शोर से तैयारी चल रही है, तो होती क्यों नहीं? वे बिलकुल पास आ जाते
हैं एक दूसरे के और फिर दूर हट जाते हैं।
तो उसने एक आदमी से पूछा कि मामला क्या है? यह इतनी देर से चल रहा है
शोरगुल। इतनी भूमिका बांधी जा रही है! इतनी देर में तो कभी का मामला खतम हो
जाता। और आप सब लोग खड़े होकर देख क्या रहे हैं?
उस आदमी ने कहा, हम यह देख रहे हैं कि इनमें से पहले कौन हारता है?
मतलब इनमें से पहले कौन क्रोधित होता है! ये दोनों एक दूसरे को क्रोधित
करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अभी दोनों क्रोधित नहीं हैं। सिर्फ यह देख
रहे हैं। जो क्रोधित हो गया, वह हार गया। भीड़ हट जाएगी, क्योंकि उसने संयम
खो दिया। वह आदमी गया; उसका कोई मूल्य नहीं है। मारपीट की जरूरत नहीं है।
क्रोधित कौन पहले होता है? ये अभी दोनों संयत हैं और ये सब गालियां वगैरह
दूसरे को उकसाने के लिए दी जा रही हैं! जैसे ही एक आदमी इनमें से फूट
पड़ेगा, वस्तुत: क्रोधित हो जाएगा, भीड़ विदा हो जाएगी। हार हो चुकी। कौन
जीतता है, यह सवाल नहीं है; कौन पहले क्रोध से हार जाता है, यह सवाल है।
जापान ने श्वास के ऊपर बड़े प्रयोग किए हैं। और बड़े से बड़ा प्रयोग यह है
कि जब भी कोई वासना मन को पकड़े, तो आप गहरी श्वास लें। सिर्फ गहरी श्वास न
लें, श्वास को होशपूर्वक भी लें श्वास भीतर गई, बाहर गई और उतने में ही आप
पाएंगे कि सारी वासना तिरोहित हो गई। उसे दमन भी नहीं करना पड़ा। उससे लड़ना
भी नहीं पड़ा। उसे हटाने के लिए भी कोई प्रयास नहीं करना पड़ा। सिर्फ चित्त
कहीं और चला गया। और जब चित्त हट जाता है, तो संपर्क टूट जाता है। जब चित्त
हट जाता है, तो सहयोग टूट जाता है। जब चित्त हट जाता है, तो जो ऊर्जा आप
दे रहे थे वासना को, वह उसे नहीं मिलती, वह मर जाती है।
सब वासनाएं आपके सहयोग से जीती हैं। जो व्यक्ति किसी भी तरह की सुरति को
साध ले, उस व्यक्ति का हृदय निर्मल हो जाएगा। बुद्धि शुद्ध हो जाएगी।
विवेक साफ सुथरा हो जाएगा। और ऐसे विवेक, ऐसे हृदय और ऐसी सुरति के सध गए
चित्त में परमात्मा की प्रतीति होती है।
जो इसको जानते हैं वे अमृतस्वरूप हो जाते हैं।
कठोपनिषद
ओशो
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