ओशो कुछ सप्ताह ही अस्वस्थ रहे और मार्च में फिर प्रवचन के लिए आने लगे।
मैने उनसे अंतिम प्रश्न पूछा और पहली बार हमने अपने प्रश्न बिना
हस्ताक्षर के भेजे। यद्यपि मैंने पुनर्जन्म के सम्बंध में कुछ नहीं पूछा
था, ओशो ने उत्तर दिया:
…..पुनर्जन्म की धारणा जो पूर्व के सभी धर्मों में है, कहती है
कि आत्मा एक शरीर से दूसरे में, एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रवेश करती
है। यह धारणा उन धर्मों में नहीं है जो यहूदी धर्म से निकले है। जैसे ईसाई
और मुस्लिम धर्म। अब तो मनोवैज्ञानिकों को भी यह बात सत्य प्रतीत होती
है, क्योंकि लोगों की लोगो की अपने पूर्व जन्म की स्मृति रहती है।
पुनर्जन्म की धारणा जड़ पकड़ रही है। परंतु मैं तुम से एक बात कहना
चाहूंगा: ‘पुनर्जन्म की धारणा मिथ्या है। यह सच है कि जब व्यक्ति मरता
है उसका जीवन पूर्ण का भाग हो जाता है। चाहे वह पापी हो या पुण्यात्मा
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता,परंतु उसके पास कुछ होता है उसे मन कहो या
स्मृति। प्राचीनकाल में कोई ऐसी जानकारी उपलब्ध नहीं थी जो यह स्पष्ट कर
सके कि स्मृति विचारों को, विचार तरंगों का समूह है, परंतु अब सरल है।’
‘और मैं यही देखता हूं कि कई बातों में बुद्ध अपने समय से बहुत
आगे है। केवल वे ही है जो मेरी इस बात से सहमत होते। उन्होंने संकेत तो
दिए है परंतु उनके पास इसे सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण नहीं था।
उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति मरता है तो उसकी स्मृति नए गर्भ में प्रवेश
कर जाती है। आत्मा नहीं। और अब हम इस बात को समझ सकते है कि जब तुम मर
रहे होगे,तुम चारों और वायु में अपने स्मृतियां छोड़ जाओगे। और यदि तुम
दुःखी रहे हो तो तुम्हारे सारे दुःख कोई स्थान ढूंढ लेंगे। वे किसी दूसरे
स्मृति-तंत्र में प्रविष्ट हो जाएंगे, इसी प्रकार कसी को अपना पूर्व
जन्म याद रह जाता है। यह तुम्हारा पूर्व जन्म नहीं है। यह किसी और का मन
है जो तुम्हें विरासत में मिला है।’
‘अधिकतर लोगों को स्मरण नहीं रहता क्योंकि उन्हें किसी स्मृति
तंत्र की सम्पूर्ण सम्पति उपलब्ध नहीं हुई है। उन्हें यहां-वहां से
कुछ खंड मिल गए है। वही खंड तुम्हारे दुःख तंत्र को निर्मित करते है। वे
सभी लोग जो इस धरती पर मृत्यु को प्राप्त हुए है, वे दुःख में मरे है।
बहुत कम लोग सूख में मरे है। बहुत कम लोग है जो अ-मन की अवस्था में मरे
है। ये अपने पीछे कोई चिन्ह नहीं छोड़ जाते: वे अपनी स्मृति को बोझ किसी
पर डालकर नहीं जाते। वे तो बस ब्रह्मांड में बिखर जाते है। उनका मन नहीं
होता। कोई स्मृति नहीं होती। उसे उन्होंने पहले ही ध्यान में विलीन कर
दिया था। तभी तो बुद्ध पुरूष पुन: जन्म नहीं लेते।’
परंतु जो लोग बुद्धत्व को उपल्बध नहीं हुए वे प्रत्येक मृत्यु
के साथ सभी प्रकार के दुखों के ढांचे को फेंकते चले जोते है। जैसे धन-धन
को खींचता है उसी तरह दुःख और दुखों को अपनी और आकर्षित करते है। यदि तुम
दुःखी हो तो दुःख मीलों दूर से तुम्हारी और चला आएगा। तुम उसके लिए एक
अच्छा वाहन सिद्ध होते हो। और यह एक अति अदृश्य घटना है, रेडियों-तरंगों
की भांति। वे तुम्हारे आसपास संचरण करती है। वे तुम्हें सुनाई नहीं देती।
एक बार तुम्हारे पास उन्हें प्राप्त करने का उपयुक्त उपकरण हो तो वे
शीध्र तुम्हें उपलब्ध हो जाती है। रेडियों के आविष्कार से पहले भी वे
तुम्हारे आसपास घूम रही थी।
कहीं कोई पूर्वजन्म नहीं है। केवल दुखों का पुनर्जन्म होता है।
लाखों लोगों के घाव तुम्हारे आसपास घूम रहे है। किसी ऐसे व्यक्ति की खोज
में जो दुःखी होने को तैयार है। निश्चित ही आनंदपूर्ण व्यक्ति कोई
चिन्ह पीछे छोड़ कर नहीं जाता। जाग्रत व्यक्ति ऐसे मर जाता है। जैसे कोई
पक्षी आकाश में बिना किसी पगडंडी या पथ बनाए उड़ जाता है। इसी कारण
बुद्धों से तुम्हें कोई धरोहर नहीं मिलती; वे बस मिट जाते है। और सभी
प्रकार के मूढ़ तथा मंद बुद्धि लोग अपनी स्मृतियों को लेकर पुन: जन्म
लेते है और यह दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।
‘अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं के प्रति सचेत रहो क्योंकि वे
तुम्हारे नए रूप को निर्मित कर रही है। तुम्हें उसका पता भी नहीं चलता।’
माय डायमंड डे विथ ओशो
माँ प्रेम शून्यो
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