तर्तूलियन कहता है, आई बिलीव इन गाड बिकाज गाड इज एब्सर्ड। तर्कहीन है।
बेबूझ है। किसी तरह सिद्ध नहीं किया जा सकता, इसीलिए ही विश्वास करता हूं।
तब विश्वास का फिर और क्या आधार होगा? विश्वास का आधार अगर तर्क न हो,
विचार न हो, मनन न हो, चिंतन न हो, तो फिर विश्वास का आधार सिर्फ हृदय ही
हो सकता है।
जैसे आप किसी के प्रेम में पड़ जाते हैं, कोई तर्क नहीं होता। और अगर कोई
तर्क करने चले, तो आप सिद्ध न कर पाएंगे कि आपके प्रेम का कारण क्या है।
और जो भी बातें आप कहेंगे, वस्तुत: असार होंगी। जैसे आप कहेंगे कि जिस
व्यक्ति को मैं प्रेम करता हूं वह बहुत सुंदर है। लेकिन किसी और को वह
सुंदर मालूम नहीं पड़ता, बस आपको ही मालूम पड़ता है। सचाई कुछ उलटी है। आप,
सुंदर है इसलिए प्रेम करते हैं, ऐसा नहीं है। आप प्रेम करते हैं, इसलिए वह
व्यक्ति सुंदर दिखाई पड़ता है। आपके प्रेम ने ही उसे सुंदर बना दिया है।
सौंदर्य कोई वस्तुगत घटना नहीं है, आपके हृदय का भाव है। हम सुंदर को प्रेम
नहीं करते हम जिसे प्रेम करते हैं, वह सुंदर हो जाता है। प्रेम हर चीज को
सुंदर कर देता है।
प्रेम जिसको भी घेर लेता है, उसे सुंदर कर जाता है। इसलिए प्रेमी को
प्रेयसी सुंदर दिखाई पड़ती है। शेष किसी को न भी दिखाई पड़े। कोई तर्क सिद्ध न
कर पाएगा कि प्रेम क्यों है। और जो भी बातें अज़ा कहेंगे, वे पीछे से सोची
गई होंगी। प्रेम की घटना पहले घट जाएगी, फिर आप सोचेंगे, रेशनलाइज करेंगे
तर्क खोजेंगे कि क्यों मैं प्रेम में हूं। लेकिन क्या गणित की तरह किसी ने
कभी कोई प्रेम किया है कि पहले सब सोचा हो, सब तर्क बिठाया हो, निष्पत्ति
निकाली हो, निष्कर्ष हाथ में लिया हो, फिर प्रेम किया हो! आदमी प्रेम पहले
करता है, कारण पीछे खोजता हैं। तो जो कारण पीछे खोजे जाते हैं, वे कारण हो
ही नहीं सकइrते। कारण तो पहले खोजे जाने चाहिए।
प्रेम तर्क से निष्पन्न नहीं होता, प्रेम हार्दिक घटना है। और हार्दिक
घटना का अर्थ होता है, जिसे हम अनुभव करते हैं कि है, और जिसके लिए हम कोई
उत्तर नहीं दे सकते। जिसे हमारे पूरे प्राण कहते हैं कि है, लेकिन जिसे हम
किसी दूसरे को समझा नहीं सकते कि क्यों। जिसके लिए कोई उत्तर नहीं दिया जा
सकता, और फिर भी जिसके लिए हम मरने को तैयार हो सकतै हैं। हार्दिक घटना का
अर्थ यह है जिसके लिए हम मरने को तैयार हो सकते हैं और जिसके लिए कोई तर्क
पास में नहीं होता।
निश्चित ही, जिसके लिए हम अपना जीवन खो सकते हैं, वह हमारे जीवन से बड़ा
होगा। वह हमारे पूरे जीवन को घेर लेता होगा, लेकिन उसके लिए हम कोई तर्क
नहीं दे पाते।
कठोपनिषद
ओशो
No comments:
Post a Comment