ऊर्जा का एक नियम है कि ऊर्जा तो जाएगी ही। ऊर्जा का नियम है कि
ऊर्जा गत्यात्मक है। अगर बाहर न जाएगी तो भीतर जाएगी। ऊर्जा चलेगी। ऊर्जा
में गति है। ऊर्जा बहेगी। जीवन दुख है ऐसा जानते ही बाहर जाने के सब द्वार
तत्क्षण बंद हो गए। अब इस ऊर्जा का क्या होगा? यह भीतर की तरफ मुड़ेगी, यह
अंतस्तल की तरफ चलेगी, यह अपने ही केंद्र की तलाश में लग जाएगी , बाहर तो कुछ
पाने को नहीं है, भीतर खोजो।
इस क्रांति का नाम ही धर्म है। इस रूपांतरण की प्रक्रिया का नाम ही
ध्यान है, जिसको बुद्ध ने कहा है परावृत्ति, जब ऊर्जा खड़ी रह जाती है, बाहर
जाने को जगह न रही। तुम द्वार पर खड़े हो, बाहर जाने को तैयार खड़े थे। बाहर
जाने में कोई अर्थ न रहा, अब क्या करोगे? लौटकर अपने घर में विश्राम न
करोगे?
मुल्ला नसरुद्दीन अपने द्वार पर खड़ा था। हाथ में छड़ी लिए अपनी टोपी ठीक
कर रहा था। इतने में एक मित्र आ गए। मित्र ने पूछा कि मुल्ला, कहां जा रहे
हो? मुल्ला ने मित्र को देखकर कहा कि कहीं नहीं जा रहा हूं आ रहा हूं, बाहर
से आ रहा हूं।
पर मित्र को यह बात जंची नहीं, क्योंकि बाहर से वह खुद आ रहा था, मुल्ला
को उसने आते नहीं देखा। और ठीक जूता उतारते, छड़ी सम्हालते या जूता पहनते,
कुछ पक्का नहीं हो सका उसने कहा, मैं समझा नहीं। तो मुल्ला ने कहा, तुम्हें
समझा देता हूं। मेरे हो, अपने हो, समझाने में कुछ बात नहीं, यह मेरी तरकीब
है। जैसे ही कोई आदमी दरवाजे पर दस्तक देता है, मैं जल्दी से जूता पहनने
की, टोपी लगाने की, छड़ी उठाने की कोशिश करने लगता हूं।
मित्र ने पूछा, इसका क्या सार है? उसने कहा, इसका सार यह है कि अगर देखा
कि ऐसा आदमी है जिसको भीतर बिठालना ठीक नहीं, व्यर्थ सिर खाएगा, तो मैं
कहता हूं मैं बाहर जा रहा हूं। और अगर ऐसा आदमी है, अपना है, प्यारा है,
बैठकर मजा आएगा, रस आएगा, तो मैं कहता हूं लौटकर आ रहा हूं। ऐसा बीच में
स्वागत करता हूं, दोनों तरफ खुली रहती है, दोनों तरफ द्वार खुले हैं, जैसा
आदमी हुआ वैसा या तो जाता, या आता।
जब तुम्हारी जीवन ऊर्जा बाहर न जाएगी तो घर तो आओगे ही! गंगा गंगासागर में न गिरेगी तो गंगोत्री में गिर जाएगी।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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