इस देश को समाधिस्थ लोगों का नेतृत्व चाहिए। इस देश को ऐसे लोगों का
नेतृत्व चाहिए, जिनकी खुद की कोई समस्या नहीं है। तो कुछ हल हो; नहीं तो हल
नहीं हो सकता। हल की जगह हालतें और रोज बिगड़ती जाती हैं। लेकिन तुम इसी
तरह के लोगों के पीछे हो। तुम इन्हीं की चापलूसी में लगे हो। लोग इन्हीं के
चमचे हो गये हैं। और कारण है, क्योंकि चमचों को लगता है कि ये भी माल लूट
रहे हैं, कुछ चमचे के हाथ भी लग जायेगा। थोड़ा-बहुत हम भी…। और ऐसा नहीं है
कि वे गलती में हैं, कुछ-न-कुछ उनके हाथ लग भी जाता है। मगर देश से किस को
लेना-देना है?
एक साहब एक शानदार होटल में पहुंचे। और उन्होंने उमदा कीमती खाना खाया।
जब बैरा बिल लाया, तो उन्होंने पैसे देने से इनकार कर दिया। बैरा मैनेजर के
पास पहुंचा, उसे सारी बातें बताईं। मैनेजर ने आकर उनकी अच्छी तरह मरम्त
की। मार खाकर वह कराहते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ रहे थे कि अचानक बैरे ने
झपटकर उनके मुंह पर दो घूंसे रसीद दिये। मैनेजर ने बैरे को डांटा, जब मैं
मार चुका हूं, तो तुम्हें मारने की क्या जरूरत पड़ी? बैरे ने कहा: जी, वह तो
आपने अपना बिल वसूल किया था; मुझे भी तो अपना टिप वसूल करने दीजिए।
तो नेता हैं, वे अपना बिल वसूल कर रहे हैं; उनके चमचे हैं, वे अपना टिप
वसूल कर रहे हैं। तुम कुटे-पिटे जा रहो हो। मगर तुम इन्हीं को बार-बार
समर्थन दिये जा रहे हो, कोई करे भी तो क्या करे?
देश को जगाओ! देश को थोड़ा-सा होश से भरो। समस्याएं बड़ी हैं। तुम्हें बड़े
लोग चाहिए। जो तुम्हारी समस्याएं हल कर सकें। दूर-दृष्टि लोग चाहिए।
वैज्ञानिक क्षमता, प्रतिभा के लोग चाहिए। सड़े-गले लोगों को मुर्दों को तुम
बिठा दोगे दिल्ली में…इससे सिर्फ समय कटेगा। और समय के साथ समस्याएं बढ़ती
चली जाती हैं। अच्छे-अच्छे नाम…परिणाम कुछ भी नहीं हैं।
सहज योग
ओशो
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