मुल्ला नसरुद्दीन के संबंध में कहानी है कि जब वह बच्चा था तभी उसके
मां-बाप, पड़ोसी परिचित हो गए कि वह उलटी खोपड़ी है। तो सब उसको उलटी खोपड़ी
जानते थे। जैसे अगर दरवाजा खुला हो और तुम्हें दरवाजा बंद करवाना हो तो
उसके मां-बाप समझ गए थे कि कभी भूल कर उससे मत कहना कि दरवाजा बंद करो,
नहीं तो बंद दरवाजे को खोल देगा। उलटी खोपड़ी! खुला भी हो दरवाजा तो भी उससे
कहो कि बेटा, जरा दरवाजा खोल दे। वह फौरन बंद कर देगा। तो वे उलटी आज्ञा
देते थे उसको।
एक दिन नसरुद्दीन अपने बाप के साथ गधे पर रेत की बोरियां लाद कर आ रहा
है। पीछे बाप है, आगे-आगे नसरुद्दीन है। एक बोरी बाएं तरफ ज्यादा झुकी जा
रही है और ऐसा लग रहा है कि वह पानी में गिर जाएगी। दो बोरियां दोनों तरफ
समतुल हों तो टिकी रह सकती हैं। बाईं बोरी झुकी जा रही है, खुद भी गिरेगी
और दाईं बोरी को भी गिरा लेगी। और रेत अगर गीली हो गई हो इतनी भारी हो
जाएगी कि फिर गधा खींच नहीं सकेगा। तो बाप ने कहा, बेटा, जरा बोरी को बाईं
तरफ झुका दे।
बाईं तरफ गिर रही है, मगर उलटी खोपड़ी है, तो उससे कहना पड़ा कि बेटा, जरा
बोरी को बाईं तरफ झुका दे। और बाप तो हैरान हो गया, उसने बाईं तरफ झुका
दिया। बोरियां गिर गईं पानी में। बाप ने कहा, नसरुद्दीन, तुझे क्या हुआ आज?
नसरुद्दीन ने कहा, आज मैं इक्कीस साल का हो गया, अब क्या समझते हैं आप!
अब मैं बालिग हो गया। अब मुझे धोखा न दे सकेंगे। अब मैं सिर्फ उलटी खोपड़ी
ही नहीं हूं, बालिग भी हूं। मैं समझ गया आपका मतलब क्या था। आप सोचते थे
मैं दाईं तरफ झुकाऊंगा। वे बचपन की बातें थीं। बचपन में आपने मुझे खूब धोखा
दे लिया।
आदमी बालिग हो गया है आज का, बस इतना ही फर्क पड़ा है। पहले भी आदमी उलटी
खोपड़ी था, आज बालिग और हो गया, और मुसीबत आ गई। प्रौढ़ हो गया है। इसमें
ईश्वर का कोई हाथ नहीं है। मनुष्य अकेला प्राणी है, जिसे परमात्मा ने
स्वतंत्रता दी है। कुत्ता कुत्ता है, बिल्ली बिल्ली है। बिल्ली बिल्ली ही
पैदा होती है, बिल्ली ही मरती है। कुत्ता कुत्ता पैदा होता है, कुत्ता ही
मरता है। तुम किसी कुत्ते से यह नहीं कह सकते कि तुम थोड़े कम कुत्ते हो। सब
कुत्ते बराबर कुत्ते हैं। लेकिन आदमी से तुम कह सकते हो कि तुम थोड़े कम
आदमी हो। क्यों? क्योंकि आदमी अकेला है जो स्वतंत्र है।
आदमी चाहे तो पशुओं से नीचे गिर जाए और चाहे तो देवताओं से ऊपर उठ जाए।
लेकिन ऊपर उठने में चढ़ाई है और चढ़ाई श्रमपूर्ण है। नीचे उतरने में ढलान है,
श्रम नहीं लगता। इसलिए आदमी नीचे की तरफ जाना आसान पाता है। जैसे कि कार
अगर पहाड़ी से नीचे की तरफ आ रही हो तो कंजूस आदमी पेट्रोल बंद कर देते हैं।
पेट्रोल की जरूरत ही नहीं है, कार अपने से ही चली आती है। ढलान है। लेकिन
तुम पेट्रोल बंद करके पहाड़ी नहीं चढ़ सकते; ऊर्जा लगेगी, शक्ति लगेगी, श्रम
लगेगा, साधना लगेगी। ऊंचाइयां मांगती हैं साधना। पुण्य मांगते हैं साधना।
परमात्मा तक पहुंचना है तो जैसे कोई गौरीशंकर का पर्वत चढ़े। पसीना-पसीना हो
जाओगे। खून पसीना बनेगा। कौन उतनी झंझट ले! और अगर कभी कोई झंझट लेने भी
लगे तो बाकी नहीं लेने देते, बाकी उसकी टांग पकड़ कर नीचे खींच लेते हैं। वे
कहते हैं, कहां जाते हो? पागल हो गए हो! क्योंकि बाकी को भी कष्ट होता है
यह देख कर कि कोई ऊपर जाए, कोई हम से ऊपर जाए!
परमात्मा की कोई मर्जी नहीं है। परमात्मा ने तुम्हें स्वतंत्रता दी है कि चाहो तो पैर से खड़े होओ, चाहो तो सिर से खड़े होओ। परमात्मा ने तुम्हें स्वतंत्रता दी है, चाहे बाएं जाओ, चाहे दाएं जाओ; चाहे अच्छा करो, चाहे बुरा; चाहे नरक खोजो, चाहे स्वर्ग। परमात्मा ने स्वतंत्रता दी है–यह उसका महान दान, उसका प्रसाद, उसकी भेंट। और तुम उसका दुरुपयोग कर रहे हो। इसलिए जीवन उलटा-पुलटा है। इसलिए सब अस्तव्यस्त है।
कहे होत अधीर
ओशो
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