तुम पैदा हुए हो प्रेम की किसी ऊर्जा से। सारे जगत का खेल चलता है प्रेम
की ऊर्जा से। अब तो वैज्ञानिकों को भी शक होने लगा है कि शायद जिसे वे
गुरुत्वाकर्षण कहते हैं पृथ्वी का, वह पृथ्वी का प्रेम हो! और जिसे वे ऋण
और धन विद्युत का आकर्षण कहते हैं, वह शायद विद्युतीय प्रेम हो! शायद जिसे
वे तारों के बीच का संबंध और जोड़ कहते हैं, वह भी चुंबकीय प्रेम हो! शायद
अणु-परमाणु जिससे गुंथे हैं–टूटकर छितर नहीं जाते, वह भी प्रेम की ही गांठ
हो, वह भी प्रेम का ही गठबंधन हो! होना भी चाहिए, क्योंकि आदमी कुछ अलग-थलग
तो नहीं। आया है इसी विराट से, जाएगा, इसी विराट में। जहां से आदमी आता
है, वहीं से पौधे आते हैं, वहीं से पत्थर आते हैं। जरूर कोई चीज तो समान
होनी ही चाहिए। स्रोत समान है तो कुछ चीज तो समान होनी ही चाहिए। तभी तो
तुम पत्थर के पास बैठकर भी अजनबी अनुभव नहीं करते। वृक्ष के पास बैठकर भी
अपनापन अनुभव करते हो। सागर भी बुलाता है। हिमालय से भी बात हो जाती है।
आकाश को देखते हो तो भी संबंध बनता है, परिवार मालूम होता है।
अस्तित्व परिवार है। और अगर परिवार को तुम समझो, तो परिवार को जोड़नेवाला सेतु और धागे का नाम ही प्रेम है।
इसलिए जीसस का वचन अनूठा है, जब जीसस ने कहा: परमात्मा प्रेम है। जीसस
ने यह कहा कि परमात्मा को छोड़ दो तो भी चलेगा, प्रेम को मत छोड़ देना।
परमात्मा को भूल जाओ, कुछ हर्जा न होगा; प्रेम को मत भूल जाना। प्रेम है तो
परमात्मा हो ही जाएगा। और अगर प्रेम नहीं है तो परमात्मा पत्थर की तरह
मंदिरों में पड़ा रह जाएगा, मुर्दा, लाश होगी उसकी, उससे जीवन खो जाएगा।
भक्ति का सारा सूत्र प्रेम है। और प्रेम से सब निकला है पदार्थ ही नहीं,
परमात्मा भी। परमात्मा प्रेम की आत्यंतिक नियति है–अंतिम खिलावट! आखिरी
ऊंचाई! संगीत की आखिरी छलांग! परमात्मा प्रेम का ही सघन रूप है। प्रेम को
समझा तो परमात्मा को समझा। प्रेम को न समझ पाए तो परमात्मा से चूक हो
जाएगी।
भक्ति सूत्र
ओशो
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