एक सूफी कहानी। एक चोर रात के समय किसी मकान की खिड़की में से
भीतर जाने लगा, कि खिड़की की चौखट टूट जाने से गिर पड़ा और उसकी टांग टूट
गयी। अगले दिन उसने अदालत में जाकर अपनी टांग के टूटने का दोष उस मकान के
मालिक पर लगाया। मकान-मालिक को बुलाकर पूछा गया, तो उसने अपनी सफाई में
कहा: इसका जिम्मेदार वह बढ़ई है, जिसने कि खिड़की बनायी। बढ़ई को बुलाया गया,
तो उसने कहा कि मकान बनाने वाले ठेकेदार ने दीवार का खिड़की वाला हिस्सा
मजबूती से नहीं बनाया था।
ठेकेदार ने अपनी सफाई में कहा: मुझसे यह गलती एक औरत की वजह से हुई, जो वहां से गुजर रही थी। उसने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया था।
जब उस औरत को अदालत में पेश किया गया, तो उसने कहा: उस समय मैंने बहुत
बढ़िया लिबास पहन रखा था। आमतौर पर मेरी तरफ किसी की नजर उठती नहीं है। सो,
कसूर उस लिबास का है जो इतना बढ़िया सिला हुआ था।
न्यायाधीश ने कहा: तब तो उसे सीने वाले दर्जी को बुलाया जाये, वही
मुजरिम है। उसे अदालत में हाजिर किया जाये। वह दर्जी उस स्त्री का पति
निकला और वही वह चोर भी था जिसकी टांग टूटी थी।
यह इस जगत का सर्वाधिक आश्चर्यजनक नियम है: जो गङ्ढे तुम दूसरों के लिये
खोदते हो, उनमें स्वयं गिरना पड़ता है। फिर तुमने चाहे गङ्ढे जानकर खोदे
हों चाहे अनजाने खोदे हों। जो कांटे तुम दूसरों के लिये बोते हो, वे
तुम्हारे ही पैरों में छिदेंगे। अगर फूलों पर चलना हो तो सभी के रास्तों पर
फूल बिखराना, क्योंकि तुम्हें वही मिलेगा जो तुम दोगे।
यह कहानी तो एक व्यंग्य है, एक मजाक है। मगर जिंदगी ऐसी ही है। अगर इस
नियम को तुम पहचानकर चलने लगे तो बस तुम्हारा रास्ता स्वर्ग की तरफ मुड़
गया। अगर इस नियम को न पहचाना, न समझे और इसके विपरीत चलते रहे तो नर्क ही
तुम्हारी मंजिल है।
सहज योग
ओशो
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