इस्लाम कहता है कि स्वर्ग में शराब के चश्मे
बह रहे हैं। पूछना चाहिए कि क्या करोगे,
इन शराब के चश्मों का! क्योंकि यहां तो तुम लोगों को सिखाते
हो--शराब न पीयो। जो शराब पीते हैं, वे तो नर्क जायेंगे।
वे तो बहिश्त जायेंगे नहीं। जाहिर है--गणित साफ है। जो यहां शराब नहीं पीते,
शराब छोड़े हुए हैं, जीवन का सब राग-रंग
तोड़ा हुआ है, गृहस्थ नहीं है--विरागी हैं, उदासी हैं--वे जायेंगे स्वर्ग। मगर वे करेंगे क्या कहां--शराब के
चश्मों का--जिन्होंने कभी पी ही नहीं।
व इल न तुम पियो--धर्म-गुरु न तो तुम पीते
हो, न किसी
को पिला सको।--और न तुम किसी को पिला सकते हो; क्या बात
है तुम्हारी शराब-एत्तहूर की; फिर सार क्या हुआ--तुम्हारे
स्वर्ग की शराब का? न तुम खुद पीओगे, न किसी को पिला सकोगे। न पीने की हिम्मत है, न
पिलाने की हिम्मत है, और वहां जो लोग होंगे, वे न पीने वाले होगे। कसमें खाये हुए लोग होगे। वहां शराब के चश्मे
बहाने से सार भी क्या है!
ये पंक्तियां महत्वपूर्ण हैं। इसका अर्थ यह
हुआ कि अगर तुम्हें परमात्मा के जीवन में कभी प्रवेश करना हो, तो उदास हो कर प्रवेश मत
करना। इस जीवन में जहां, भी जैसे भी, जितना भी, क्षण-भंगुर सही, जो सुख मिलता हो, उसका स्वाद लो। उस स्वाद में
भी परमात्मा का स्वाद अनुभव करो। बूंद सही, लेकिन बूंद
में से भी है तो सागर ही। क्षण-भंगुर सही, लेकिन
क्षण-भंगुर में भी छाया तो पड़ी शाश्वत की।
इसलिए भक्त कहता है: जीवन से भागो मत; जीवन को छोड़ो मत;
जीवन को जीओ।
मलूक कहते हैं; घर में रहे उदासी। भागो
मत कहीं; बीच बाजार में रहो। घर में रहे उदासी।
और उदासी का अर्थ मैंने समझाया--उदास नहीं।
उदासी का अर्थ है--उद आसीत--परमात्मा के पास बैठा रहे। रहे बाजार में, लेकिन मन परमात्मा के
पास रहे। बैठक उसके पास लगी रहे। शरीर बाजार में रहे और प्राण उसके पास रहें। ऐसे
आदमी का नाम उदासी।
नाचो--गाओ--गुनगुनाओ। वसंत है तो
खिलो--फूलों जैसे। और जब वृक्ष नाचते हो हवाओं में, तो तुम भी नाचो। और जब सूरज उगे, तो गुनगुनाओ--गीत गाओ, प्रार्थना करा। सब तरह
से अपनी जीवन को आनंद से भरो और हर आनंद में परमात्मा का अनुग्रह स्वीकार करो,
तो ही तुम किसी दिन स्वर्ग के आनंद को पाने के योग्य बन सकोगे।
नहीं तो स्वाद ही नहीं रहेगा!
जरा सोचो तो, तुम्हारे सब उदासी--तथाकथित उदासी और विरागी
और संन्यासी--सब स्वर्ग पहुंच जाए, तो स्वर्ग की हालत नरक
से भी बदतर हो जाए। हो गई होगी तब तक। तुम्हें नरक में चाहे थोड़े भले आदमी भी मिल
जाए--मुस्कुराते, गुनगुनाते, गीत
गाते, नाचते, मगर स्वर्ग में
कहां मिलेंगे!
स्वर्ग बड़ा उदास हो गया होगा! स्वर्ग में
धूल जम गई होगी। स्वर्ग में कोई उत्सव तो नहीं हो रहा होगा।
ये पंक्तियां ठीक ही हैं कि--वाइज, न तुम पीयो, न किसी को पिला सको। क्या बात है तुम्हारी शराब-एत्तहूर की!
पीना तो यहीं सीखो। संसार पाठशाला है। संसार
छोटा सा आंगन है, जिसमें तुम उड़ना सीखो, ताकि एक दिन तुम विराट
के आंगन में भी उड़ सको।
इस संसार में और परमात्मा में कोई अनिवार्य
विरोध नहीं है। यह परमात्मा की ही सीढ़ी है। होना ही चाहिए। उसका है, तो उसकी ही सीढ़ी होगी।
उसका हो कर उसके विपरीत कैसे होगा? इन सीढ़ियों का उपयोग
करो। निश्चित इसके पार जाना है। सीढ़ियों पर अटक नहीं जाना है। लेकिन इसका उपयोग
करो।
कन थोरे कांकर घने
ओशो
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