अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम,
दास मलूका कह गए, सबकै दाता राम!
--मलूक कहते हैं: ज़रा देखो तो आंख उठाकर! अजगर भी पड़ा रहता है अपनी जगह
पर तो भी भोजन मिल जाता है। पक्षी नौकरी-चाकरी करने नहीं जाते, एम्लायमेंट-दफ्तर के सामने क्यू लगाकर खड़े नहीं होते, फिर भी भोजन मिल जाता है, फिर भी जीते हैं।
तुमसे कुछ कम जीते हैं? सच तो यह है, तुमसे ज्यादा जीते हैं। आदमी जमीन पर सबसे कम जी रहा है। करने-धरने से
फुर्सत नहीं मिल पाती, जिए कैसे? पहले इंतजाम तो जुटाए, तब जिए। इंतजाम
जुटाते-जुटाते ही जिंदगी चूक जाती है। आदमी कहता है: आज धन इकट्ठा कर लूं,
कल जीऊंगा; आज मकान बना लूं, कल रहूंगा। कल आता नहीं। मकान बनते-बनते आदमी के जाने का दिन आ जाता
है। किसका मकान कब पूरा बन पाया है? सभी को तो अधूरा
छोड़कर जाना पड़ता है। किसकी यात्रा कब पूरी होती है? सभी
को तो बीच से उठ जाना होता है।
तुम देखते नहीं, रोज लोगों को गिरते और
मरते! तुम सोचते हो उनका काम पूरा हो गया? तुम सोचते हो
उनके मकान पूरे बन गए थे? तुम सोचते हो उनकी दुकान पूरी
जम गयी थी? तुम सोचते हो वह घड़ी आ गयी थी जब वे जीना शुरू
कर सकते थे? अभी नहीं आयी थी।
इसीलिए तो मृत्यु में इतना दुःख होता है।
मृत्यु का दुःख मृत्यु के कारण नहीं होता है। मृत्यु का दुःख तो इसलिए होता है कि
जीवन तो जुटाने में बीत गया, जीए तो कभी थे ही नहीं और अब मौत आ गयी। जीवन हाथ में था, जिए नहीं, क्योंकि जुटाने में लगे रहे साधन;
अब मौत आ गयी, अब जीने का कोई समय नहीं
बचा।
ऐसे ही समझो कि एक आदमी सदा यात्रा की
तैयारी करता हो, बिस्तर बांधता हो, संदूक सजाता हो, बस यात्रा की तैयारी ही करता हो, यात्रा पर
कभी भी जाता न हो! और जब यात्रा की तैयारी करीब-करीब पूरी होने को आ जाए तो मौत की
घड़ी आ जाए। . . . तुम्हारी जिंदगी ऐसी ही है। तुम इंतजाम करते हो। लोग कहते हैं : आज मेहनत कर लें, कल भोगेंगे! आज कैसे भोग सकते हैं?
आज तो मेहनत कर लेंगे तो कल कुछ बचेगा तो भोगेंगे। फिर कल भी यही
होता है और परसों भी यही होता है। क्योंकि जब भी दिन आता है आज की तरह आता है। और
तुम्हारी एक आदत बन गयी होती है कल पर स्थगित कर देने की। तुम टालते ही चले जाते
हो। एक दिन मौत आ जाती है।
आदमी जमीन पर सबसे कम जीता है और सबसे
ज्यादा जीने के आयोजन जुटाता है। पशु-पक्षियों को ज़रा गौर से देखो, उनसे कुछ सीखो!
ज्योति से ज्योति जले
ओशो
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