समाधि भी कोई बहुत प्रकार की होती है? कि हठयोग की समाधि कोई
अलग होती है और राजयोग की समाधि कोई अलग होती है?
हम तो हर चीज में विभाजन किए हुए हैं और हर
चीज में लेबल लगाए हुए हैं। हर चीज में ग्रेडेशन किए हुए हैं। वह दुकान की आदत है
न दिमाग में। बाजार की आदत है। वहां हर चीज पर लेबल है। हर चीज का अलग-अलग डिब्बा
है। हर चीज का अलग-अलग खांचा है। वही हमारा धर्म के बाबत भी है। वही हमारा हर चीज
के बाबत है। हर चीज में हम सोचते हैं कि चीजें अलग-अलग होंगी।
एक बाउल साधु हुआ बंगाल में। वह वैष्णव साधु
था। बाउल तो प्रेम की बात करते हैं। वे तो कहते हैं कि प्रेम ही सब कुछ है। वही
परमात्मा है। एक बहुत बड़ा पंडित उसके पास गया। उस पंडित ने कहा कि कितने प्रकार का
प्रेम होता है मालूम है?
उस बाउल ने कहा, प्रेम और प्रकार! मैंने
कभी सुना नहीं। प्रेम तो हम जानते हैं, प्रकार हम नहीं
जानते।
तो उसने कहा, कुछ भी नहीं जाना। जीवन तुम्हारा व्यर्थ
गया। हमारे शास्त्र में प्रेम पांच प्रकार का लिखा हुआ है। और तुम्हें यह भी पता
नहीं है कि कितने प्रकार का प्रेम होता है, तो तुम प्रेम
क्या जानोगे!
वह साधु बोला, जब शास्त्र में लिखा है तो ठीक ही लिखा
होगा। मैं ही गलत होऊंगा। लेकिन मैं तो प्रेम को ही जानता हूं, प्रकार को नहीं जानता। फिर भी तुम कहते हो तो मैं सुन लूं। तुम्हारे
शास्त्र को मुझे सुना दो।
तो उस पंडित ने अपने शास्त्र को खोला और
बताया कि कितने प्रकार का प्रेम होता है। सब समझाया। जब वह पूरी बात समझा चुका, तो उसने फकीर से पूछा कि
समझे कुछ? क्या प्रभाव पड़ा?
वह बाउल हंसने लगा और उसने कहा, क्या प्रभाव पड़ा?
जब तुम शास्त्र को पढ़ने लगे तो मुझे ऐसा लगा, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई सुनार सोने के कसने के पत्थर को लेकर फूलों
की बगिया में आ गया है और फूलों को उस पत्थर पर कस-कस कर देख रहा है कि कौन सा फूल
असली, कौन सा फूल नकली। मुझे ऐसा लगा। उसने कहा, पागल! प्रेम के कहीं प्रकार हुए हैं? और जहां
प्रकार हैं, वहां कोई प्रेम होगा?
प्रेम तो बस एक है। समाधि भी बस एक है। कोई
पच्चीस तरह की समाधि नहीं होती। बीमारियां बहुत तरह की होती हैं, खयाल रखें, स्वास्थ्य एक ही प्रकार का होता है। अशांतियां बहुत प्रकार की होती हैं,
शांति एक ही प्रकार की होती है। तो असमाधान बहुत प्रकार के होते
हैं, लेकिन समाधि एक ही प्रकार की होती है। लेकिन जो
किताबी जिनके दिमाग हैं, वे विभाजन कर लेते हैं। वे
विश्लेषण कर देते हैं कि यह इस प्रकार की--यह राजयोग की, यह
हठयोग की, यह फलां योग की, यह
भक्तियोग की। कोई योग-वोग नहीं है। सिर्फ एक ही योग है। यह सारा का सारा पंडित का
विभाजन है, यह कोई साधक की दृष्टि नहीं है। और पंडित को
मजा आता है विश्लेषण करने में। अगर शास्त्रों को पढ़िए, तो
कैसे बारीक विश्लेषण हैं। हवा में सारी की सारी बातें हैं और उनके खूब विश्लेषण
हैं, खूब विभाजन हैं। पर कुछ पागल होते हैं जो विभाजन और
विश्लेषण से बहुत प्रभावित होते हैं और समझते हैं कि यह कोई खास बात है।
अमृत की दशा
ओशो
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