परमात्मा की यात्रा बड़ी अजीब है। परमात्मा
की यात्रा वही करता है; वही कर सकता है,
जो सब यात्रा छोड़ देता है। इतना शांत हो जाता है कि उसे कहीं भी
नहीं पहुंचना है।
एक फकीर था। एक पहाड़ी के किनारे चुपचाप बैठा
रहता, सोया
रहता। एक युवक सत्य की, ईश्वर की खोज में पहाड़ पर गया था।
उसने उस फकीर से पूछा कि आप चुपचाप यहां क्यों बैठे हैं? ईश्वर
को नहीं खोजना है? उस फकीर ने कहा, जब तक खोजता था, तब तक नहीं मिला। फिर मैं ऊब
गया और मैंने वह खोज छोड़ दी और जिस दिन मैंने सब खोज छोड़ दी, मैं हैरान हो गया। मैं तो उसमें मौजूद ही था। खोज रहा था, इसलिए दिखाई नहीं पड़ रहा था।
कई बार खोजने का तनाव ही खोजने में बाधा बन
जाता है। कई बार हम जिस चीज को खोजते हैं,
खोजने के कारण ही उसको नहीं उपलब्ध हो पाते हैं।
कभी खयाल किया आपने--किसी आदमी का नाम खो
गया है आपके मन में और आप खोजने को लगे हुए हैं। खोजते हैं और परेशान हो जाते हैं, सिर ठोंक लेते हैं कि
बिलकुल जबान तक आता है, लेकिन आता नहीं। पता नहीं चलता,
कहां गया, कैसे खो गया! मालूम है मुझे!
यह भी मालूम है कि मुझे मालूम है। भीतर आता है, पर न
मालूम कहां अटक जाता है। फिर आप खोज छोड़ देते हैं। फिर आप अपनी बगिया में गङ्ढा
खोद रहे हैं, या अपने कुत्ते के साथ खेल रहे हैं, या अपने बच्चे से गपशप कर रहे हैं और एकदम आप हैरान हो जाते हैं,
वह नाम मौजूद हो गया, वह आ गया है। और
तब आप समझ भी नहीं पाते कि यह कैसे आ गया।
आप खोजते थे--खोजने के तनाव की वजह से मन
अशांत हो गया। अशांत होने की वजह से उसे रास्ता नहीं मिलता था आने का। वह अटका रह
गया पीछे। आप शांत हो जाओ तो वह आ जाए। आप अशांत हो तो वह आए कहां से, द्वार कहां मिले,
रास्ता कहां मिले?
भीतर परमात्मा निरंतर आप तक आने की कोशिश कर
रहा है। लेकिन आप? आप इतने व्यस्त हैं कि आपकी इस व्यस्तता में बाधा देने जैसी अशिष्टता
परमात्मा न करेगा। वह आपको परेशान नहीं करेगा। जब आप शांत हो जाएं तो वह आ जाएगा।
वह उन मेहमानों में से नहीं है कि आप कुछ भी कर रहे हों और वह आ जाए। जब देखेगा कि
आप तैयार हैं, तो वह तो हमेशा मौजूद है। भीतर कोई हमारे
रास्ता खोज रहा है। लेकिन हम इतने, सतह पर इतने व्यस्त
हैं, इतनी लहरों से भरे हैं कि उसे रास्ता नहीं मिलता है।
कृपा करें रास्ता दें।
आपको परमात्मा को नहीं खोजना है--परमात्मा
आपको ही खोज रहा है। आप इतनी ही कृपा करें कि रास्ता दे दें। आप बीच में न खड़े हों
अपने और परमात्मा के, तो सारी बात हल हो जाती है।
असंभव क्रांति (साधना शिविर)
ओशो
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