इस बात को स्मरण रखो कि जिसके पास बड़ा संकल्प
है, उसी के पास
बड़ा समर्पण होगा; जिसके पास पका हुआ अहंकार है, वही तो चरणों में झुकने की क्षमता पाता है।
इसलिए मैं नहीं कहता कि तुम अहंकार को काटो, गलाओ। मैं कहता हूं पकाओ,
प्रखर करो, तेजस्वी करो; तुम्हारा अहंकार जलती हुई एक लपट बन जाए; तभी तुम
समर्पण कर सकोगे। तुमसे मैं यह नहीं कहता हूं कि तुम काहिल होकर गिर जाओ पैरों में,
क्योंकि खड़े होने की ताकत ही न थी। ऐसे गिरे हुए का क्या मूल्य होगा?
खडे हो ही न सकते थे, इसलिए गिर गए! सिर
उठा ही न सकते थे, इसलिए झुका दिया। ऐसे पक्षाघात और लकवे
से लगे लोगों के समर्पण का कोई भी मूल्य नहीं है।
मूल्य तो उसी का है, जिसने सिर को उठाया था और
उठाए चला गया था, और सब आकाशों में सिर को उठाए खड़ा रहा था।
बल था, बडे तूफान आए थे और सिर नहीं झुकाया था; बड़ी आधियां आई थीं और इंचभर हिला न सकी थीं। संसार में लड़ा था, जूझा था।
अर्जुन जैसा अहंकार चाहिए! योद्धा का अहंकार
चाहिए! इसलिए जब अर्जुन झुकता है,
तो क्षणभर में महात्मा हो जाता है।
अब तक संजय अर्जुन को महात्मा नहीं कहता, आज अचानक अर्जुन महात्मा
हो गया! इस आखिरी घड़ी में, पटाक्षेप होने को है, गीता अध्याय समाप्त होने को है, अचानक अर्जुन महात्मा
हो गया! क्या घटना घटी? वही ऊर्जा जो योद्धा बनाती थी,
वही अब समर्पित हो गयी।
तुम यह मत सोचना कि अर्जुन की जगह अगर कोई दुकानदार
होता, तो इतनी
आसानी से महात्मा हो जाता। नहीं; वह अपने हिसाब लगाता। वह
गणित बिठाता। वह देखता कि फायदा किस में है। जीवन दाव पर न लगता। वह इतनी सरलता से
न कहता, जो आपकी आज्ञा!
ऐसा नहीं कि अर्जुन लड़ा नहीं; लड़ा; लड़ा तभी तो कह सका; लड़ा, जूझा; कृष्ण से उसने कोई कमी नहीं रखी लड़ने में।
वह सब तरफ से उसने संघर्ष लिया; सब तरफ से कोशिश की अपनी ही
बात पर अडिग रहने की। लेकिन जब पाया कि अपनी बात गलत है; जब
सब तरफ से पाया, छिद्र ही छिद्र हैं; नाव सब तरफ से बचाने की उसने कोशिश की, लेकिन न
बचा पाया; नाव डूब गयी; तो झुका।
यह झुकना ऐसा ही नहीं है कि बस, झुक गया औपचारिकता से। नहीं;
संघर्ष किया, अपने संकल्प को बचाए रखने की
कोशिश की; कृष्ण को जल्दी और सरलता से झुक नहीं गया। झुका
तब, जब झुकने के सिवाय उपाय ही न रहा। जब संकल्प ने ही बता
दिया कि यही मार्ग है; जब अहंकार ने ही पककर कह दिया कि अब
फल को गिरना चाहिए; पक गया, पक गया,
अब कोई कच्चा नहीं है; तब गिरा।
इसलिए कहता हूं, इस युग को कृष्ण की जरूरत
है। अहंकार पक गया है। संकल्प प्रगाढ़ हुआ है। मनुष्य के हाथ में बड़ी ऊर्जा है। यह ऊर्जा
नर्क ले जाएगी। यह ऊर्जा पृथ्वी को हिरोशिमा और नागासाकी में बदल देगी। अगर जल्दी ही
इस ऊर्जा का रूपांतरण न हुआ, अगर यह ऊर्जा संकल्प से हटकर
समर्पण की तरफ न बही, तो यह रेगिस्तान में खो जाएगी,
मरुस्थल में खो जाएगी। इसके साथ आदमी भी खो जाएगा। एक महा अग्नि होगी,
महा विस्फोट होगा।
मनुष्य की प्रौढ़ता पकी है, और कृष्ण के संदेश की ऐसे
क्षण में जरूरत है।
गीता दर्शन
ओशो
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