भारतवर्ष कितने हजारों साल से अहिंसा की
बातें करता है, कितने हजारों साल से हमने अहिंसा के गीत गाये हैं, अहिंसा के शास्त्र रचे हैं, अहिंसा की बात हम
करते रहे हैं और एक भी आदमी अहिंसक नहीं है!
इधर बीस, पच्चीस, चालीस
सालों से तो हम बहुत ही अहिंसा की बातें कर रहे हैं! लेकिन जब स्वयं पर मुसीबत आती
है तो हम उतने ही हिंसक सिद्ध होते हैं, जितना कोई और!
चीन ने देश पर हमला किया, फिर हमारी अहिंसा खो गयी!
पाकिस्तान के साथ मुठभेड़ होते ही हमारी अहिंसा खो जाती है! फिर कोई अहिंसा की बात
नहीं करता। फिर हम कहते हैं, अहिंसा की रक्षा के लिए
हिंसा की जरूरत है!
अहिंसा की रक्षा के लिए भी हिंसा की जरूरत
पड़ती है तो अहिंसा बहुत नपुंसक है। अगर अहिंसा की रक्षा हिंसा से की जा सकती है, तब तो फिर अमृत की
सुरक्षा के लिए जहर का इंतजाम करना पड़ेगा, और प्रेम की
रक्षा के लिए घृणा सीखनी पड़ेगी, और जिंदा रहने के लिए
मरना पड़ेगा!
अहिंसा हमारी बातचीत है हजारों साल की और
उससे सिर्फ एक बात घटी है कि हमने हिंसा को देखना बंद कर दिया है! अहिंसा की बातों
में हिंसा का तथ्य भूल गये हैं और हमें दिखाई नहीं पड़ता!
चित्त अशांत है तो हम कहेंगे, कल हम शांत हो जायेंगे!
कुछ विधि का उपयोग करेंगे, किसी जाप का उपयोग करेंगे! फिर
कल भी आ जायेगा। कल तो आता नहीं, वह आज होगा। और आप
कहेंगे, आज अशांत हूं, कोई बात
नहीं, कल शांत हो जायेंगे।
यह स्थिति करण आत्मवंचना है। इस स्थिति से
फिर जिंदगी में कभी परिवर्तन नहीं होगा। फिर तने ही रह जायेंगे, तनाव ही रह जायेगा। पीछे
लौटकर देखिये, जिंदगी में कितनी बार सोचा होगा, कल यह कर लेंगे, कल वह कर लेंगे। मनोवैज्ञानिक
बात कहें तो भीतर वह "आज' आज तक नहीं हुआ। वह कभी
नहीं होगा। वह उपाय तथ्यों को झुठलाने और पलायन का है।
किसी तथ्य को भूलने से कभी उसको बदला नहीं
जा सकता।
अगर हिंसा बदलनी है तो अहिंसा की बातचीत बंद
कर दें। हिंसा को देखें। वह जो अभी है,
उसे देखें, उसे पहचानें, उसे खोजें कि क्या है। और जितना उसे जानेंगे, जितना
पहचानेंगे, जितना उसको देखने में समर्थ हो जायेंगे,
वह हिंसा का तथ्य उतना ही बदलना शुरू हो जायेगा--अभी और यहीं,
कल नहीं।
अगर भीतर घृणा है, चोरी है तो उसे देखें और
पहचानें। यह मत कहें कि कल मैं चोरी छोड़ दूंगा। अगर चोरी गलत हो गई है तो कल की
बात क्यों करते हैं?
अभी सांप रास्ता काटता है तो आप ऐसा नहीं
कहते कि कल मैं बच जाऊंगा। अभी छलांग लगाते हैं, क्योंकि सांप सामने खड़ा है फन फैलाये हुए।
तो आप यह नहीं कहते, ठीक है, अभी
खड़े रहो। सांप से कल हम बच जायेंगे। कल हम छलांग लगा लेंगे। सांप सामने खड़ा होता
है तो आप अभी, इसी वक्त छलांग लगाते हैं। क्यों? क्योंकि सांप दिखाई पड़ता है। सांप के साथ मौत दिखाई पड़ती है। सांप का
जहर दिखाई पड़ता है। एक छलांग में आप बाहर हो जाते हैं।
हिंसा सामने खड़ी है और आप कहते हैं, कल हम अहिंसक हो
जायेंगे! तो फिर आपको हिंसा का जहर दिखाई नहीं पड़ता, हिंसा
की मौत दिखाई नहीं पड़ती, हिंसा का पागलपन दिखाई नहीं
पड़ता। इसलिए आप कहते हैं, कल। अभी क्या जल्दी है, कल!
अभी घर में आग लगी है, तब आप यह नहीं कहते हैं
कि कल बाहर निकल जायेंगे। तब आप कहते हैं, अभी इसी क्षण
मुझे बाहर निकलना है। आप यह कहते भी नहीं हैं, इसी क्षण
बाहर निकलना है; आप निकलना शुरू हो जाते हैं, आप निकल ही जाते हैं!
जिंदगी के तथ्य भी आग लगे होने से या सांप
के तथ्यों से ज्यादा खतरनाक हैं। लेकिन कल की तरकीब से आप झुठला जाते हैं और उनको
नहीं बदल पाते!
जीवन की बदलाहट, जीवन की क्रांति,
जीवन का रूपांतरण इस क्षण होगा, अभी
होगा। कल कभी नहीं होगा।
नेति नेति (सत्य की खोज)
ओशो
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