एक खजाने हो तुम, जिसकी चाबी खो गई है। या
कि एक बीज हो जिसे अपनी भूमि नहीं मिल पाई है। एक ऐसे सम्राट हो, जिसने अपने को भिखारी समझ रखा है।
और गहरी नींद है। और उस नींद में तुम स्वयं
जाग सकोगे इसकी संभावना नहीं है। तुम चाहो भी, कि तुम अपने ही हाथ से जग जाओ, तो भी यह घट न सकेगा। घट इसलिए न सकेगा, कि जो
सोया है स्वयं, वह स्वयं को कैसे जगाएगा? जगाने के लिए जागा होना जरूरी है।
और तुम अगर अपने अस्मिता और अहंकार से भरे
हुए सोचते रहे कि क्यों किसी से कहें,
कि जगाओ। अपने को ही जगा लेंगे; तो
ज्यादा से ज्यादा इसी बात की संभावना है, कि तुम एक सपना
देखो, जिसमें कि तुम मान लो, कि
तुम जाग गए हो। सोया हुआ आदमी जागने का सपना देख सकता है; जाग नहीं सकता; सोए हुए आदमी की ज्यादा से
ज्यादा संभावना यही है कि वह सपने में देख ले, कि जाग गया
है। नींद को तोड़ने के लिए बाहर से कोई—तुमसे बाहर से कोई चाहिए जो तुम्हें चौंका
दे।
गुरु का कोई और अर्थ नहीं है; गुरु का इतना ही अर्थ है,
कि जो जागा हुआ है और जो तुम्हारी नींद को तोड़ सकता है। कुछ और
करना भी नहीं है। कुछ पाना नहीं है, क्योंकि जो भी पाने
योग्य है, वह तुम अपने साथ ही लेकर आए हो। कुछ खोना भी
नहीं है सिवाय निद्रा के; सिवाय मूर्च्छा के; सिवाय एक बेहोशी के।
इसलिए गुरु तुम्हें आचरण नहीं देता और जो
गुरु तुम्हें आचरण दे, समझना कि वह गुरु नहीं है। गुरु तुम्हें सिर्फ जागरण देता है। और जागरण
के पीछे चला आता है आचरण अपने आप। वह जागे हुए आदमी की जीवन—प्रक्रिया है आचरण। और
सोया हुआ आदमी लाख उपाय करे आचरण को साधने के, साध भी ले,
तो भी सब सपना ही है। सब पानी पर उठा हुआ बबूला है। उसकी कोई
सार्थकता नहीं है।
तुम सपने में साधु भी हो जाओ तो क्या फर्क
पड़ता है? तुम
सपने में चोर थे, तुम सपने में साधु हो गए; पर दोनों ही सपने हैं। जागकर तुम पाओगे, न तो
सपने का चोर सच था, न सपने का साधु सच था।
इसलिए असली सवाल चोर से साधु होने का नहीं
है; न बेईमान
से ईमानदार होने का है; न बुरे से भला होने का है;
न पापी से पुण्यात्मा होने का है; असली
सवाल जागे हुए होने का है। सोए से जागे हुए होने का है।
पिव पिव लागी प्यास
ओशो
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