जीवन में ऐसे जीना, जैसे एक दर्शक। जैसे
जीवन के बड़े पद पर एक कहानी चल रही है और हम देख रहे हैं। एक दिन भर के लिए प्रयोग
करके देखना और जिंदगी दूसरी हो जायेगी। एक दिन तय कर लें कि सुबह छह बजे से शाम छह
बजे तक इस तरह जीयेंगे, जैसे एक दर्शक। और जिंदगी को ऐसा
देखेंगे, जैसे कहानी एक पद पर चलती हो। और पहले ही दिन
जिंदगी में कुछ नया होना शुरू हो जायेगा।
आज ही करके देखें, एक छोटा-सा प्रयोग करके
देखें कि जिंदगी को ऐसे देखेंगे, जैसे एक दर्शक। एक बड़े
पद पर कहानी चलती हो और हम हों सिर्फ दर्शक। सिर्फ एक दिन के लिए प्रयोग करके
देखें। और उस प्रयोग के बाद आप दुबारा वही आदमी कभी नहीं हो सकेंगे, जो आप थे। उस प्रयोग के बाद आप आदमी ही दूसरे हो जायेंगे।
साक्षी होने का छोटा-सा प्रयोग करके देखें।
देखें आज घर जाकर और जब पत्नी गाली देने लगे या पति गर्दन दबाने लगे, तब इस तरह देखें,
जैसे कोई साक्षी देख रहा है। और जब रास्ते पर चलते हुए लोग दिखाई
पड़े, दुकानें चलती हुई दिखाई पड़ें, दफ्तर की दुनिया हो; तब खयाल रखें, जैसे किसी नाटक में प्रवेश कर गये हों और चारों तरफ एक नाटक चल रहा हो।
एक दिन भर इसका स्मरण रखकर देखें और आप कल दूसरे आदमी हो जायेंगे।
दिन तो बहुत बड़ा है, एक घंटे भी कोई आदमी
साक्षी होने का प्रयोग करके देखे, उसकी जिंदगी में एक मोड़
आ जायेगा, एक टघनग आ जायेगी। वह आदमी फिर वही कभी नहीं हो
सकेगा, जो एक घंटे पहले था। क्योंकि एक घंटे में जो उसे
दिखाई पड़ेगा, वह हैरान कर देने वाला हो जायेगा। और उस एक
घंटे में उसके भीतर, जो परिवर्तन होगा, जो ट्रांसफार्मेशन होगा, उससे कीमिया ही बदल
जायेगी। वह उसके भीतर चेतना के नये बिंदुओं को जन्म दे देगी। एक घंटे के लिए ऐसे
देखें।
अगर पत्नी गालियां दे रही हो, अगर मालिक गालियां दे
रहा हो, तो ऐसे देखें, जैसे आप
सिर्फ एक नाटक देख रहे हों। फिर देखें कि क्या होता है? सिवाय
हंसने के और कुछ भी नहीं होगा। भीतर एक हंसी फैल जायेगी और चित्त एकदम हल्का हो
जायेगा।
कल यही गाली बहुत भारी पड़ गयी होती, छाती पर पत्थर बनकर बैठ
गयी होती। इस गाली ने भीतर जहर पैदा कर दिया होता। इस गाली ने भीतर प्राणों को मथ
डाला होता। इस गाली ने भीतर जाकर जीवन में एक संकट, एक
अशांति पैदा कर दी होती। जिंदगी एक प्रतिक्रिया बन जाती, एक
रिएक्शन बन जाती। जिंदगी एक तूफान और एक आंधी हो जाती।
वही गाली आज आयेगी और इधर भीतर अगर साक्षी
है तो गाली ऐसे ही बुझ जायेगी,
जैसे अंगारा पानी में पड़कर बुझ जाये, राख
हो जाये। और आप देखते रह जायेंगे। और तब हैरानी होगी कि यही गाली कल पीड़ित करती थी,
और आज क्या हो गया है? यही बात कल बहुत
कष्ट देती थी और आज, आज क्या हो गया! आज आप बदल गये है।
दुनिया वही है, दुनिया हमेशा वही है,
सिर्फ आदमी बदल जाते हैं। और जब आदमी बदल जाता है तो दुनिया बदल
जाती है।
नेति नेति (सत्य की खोज)
ओशो
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