इसलिए मिट जाइएगा कि मैं हूं, यह भी भाव का ही परिणाम
है, यह कोई सत्य नहीं है। अगर मैं यहां बैठ कर यह भाव
करूं कि मकान मिट रहा है, तो मकान नहीं मिटेगा। क्योंकि
मकान मेरे भाव पर निर्भर नहीं है। मैं कितना ही भाव करूं कि मकान मिट रहा है,
मकान मिट रहा है...आंख खोल कर देखूंगा, पाऊंगा
कि मकान अपनी जगह है। क्योंकि मकान मेरे भाव से निर्मित नहीं है। लेकिन अगर मैं
भाव करूं कि मैं मिट रहा हूं, तो मैं मिट जाऊंगा, क्योंकि मेरा होना मेरा भाव ही है। इसलिए दूसरे भाव से मिट सकता है;
विपरीत भाव से मिट सकता है।
आपको पता होना चाहिए, कुछ बीमारियां हैं जो
इलाज से कभी ठीक नहीं होती हैं। वे इसलिए ठीक नहीं होतीं कि पहली तो बात वे
बीमारियां झूठी हैं और इलाज सच्चा है। तो वैसा आदमी और बीमार हो जाएगा। अगर झूठी
बीमारी का सच्चा इलाज होगा तो मुश्किल पड़ जाएगी। अगर एक आदमी को सांप ने काटा हो,
तो सांप के काटने के लिए जो इंजेक्शन दिया जाना चाहिए वह उसको
लाभ करेगा। लेकिन अगर एक आदमी को सांप ने काटा ही न हो और उसको खयाल पैदा हो गया
हो कि मुझे सांप ने काटा, काटा चूहे ने हो या सपने के
सांप ने काटा हो, तो उसको इंजेक्शन देना बहुत खतरनाक हो
जाएगा। जितना सांप के काटने से खतरा नहीं है, उतना
इंजेक्शन खतरनाक हो जाएगा। झूठी बीमारी के लिए झूठा इलाज चाहिए।
मैंने सुना है, एक रात एक सराय में कुछ
लोग मेहमान थे। और एक आदमी सुबह चार बजे उठा और अपनी यात्रा पर आगे निकल गया। कई
जगह के लोग ठहरे हुए थे, रात उन्होंने भोजन किया था। साल
भर बाद वह आदमी उस सराय में वापस लौटा। उस सराय के मालिक ने उसे देखा और कहा,
आप जिंदा हैं!
उस आदमी ने कहा, क्या मतलब? जिंदा क्यों नहीं रहूंगा?
उसने कहा कि अरे! लेकिन बाकी जितने लोगों ने
उस रात भोजन किया था, वे सब मर गए। फूड-पायज़न हो गया था, भोजन में
जहर हो गया था। आप जिंदा हैं, आश्चर्य! लेकिन सब लोग तो
मरे हुए उठे सुबह। आप तो चार बजे निकल गए थे।
उस आदमी ने इतना सुना और वहीं गिर पड़ा। उसे
बहुत हिलाया, लेकिन वह तो मर चुका था।
साल भर पहले किया था भोजन! फूड-पायज़न हो
गया! साल भर बाद मरा! मर सकता है। लेकिन ऐसी बीमारी का इलाज नहीं हो सकता। अगर जहर
हो गया हो भोजन में तो इलाज हो सकता है। अब इस आदमी का कैसे इलाज करिएगा? इसका इलाज करना बहुत
मुश्किल है। इसकी बीमारी झूठी है। झूठी बीमारी का झूठा इलाज करना होता है।
मैं जिसे समाधि का प्रयोग कह रहा हूं, झूठा इलाज है, सच्चा इलाज नहीं है। क्योंकि आपकी बीमारी झूठी है। मैं झूठी बीमारी है।
उसे मिटाने के लिए उसी तरह झूठा इलाज करना पड़ता।
मेरे पैर में असली कांटा गड़ जाए, असली, तो दूसरा कांटा असली लाकर निकालना पड़े। लेकिन असली कांटा न गड़े,
सिर्फ मुझे खयाल हो जाए कि पैर में कांटा गड़ा है। अब असली कांटा
लाकर मत निकालना, अन्यथा व्यर्थ का घाव हो जाएगा। कांटा
गड़ा न हो, तो फिर झूठे कांटे की जरूरत पड़ती है।
धर्म की सारी प्रक्रियाएं झूठी प्रक्रियाएं
हैं, क्योंकि
अधर्म की बीमारी झूठ है। समस्त योग झूठी प्रक्रिया है। समस्त साधना झूठी प्रक्रिया
है। इसलिए झूठी प्रक्रिया है कि जिसे हम मिटाने चल रहे हैं, वह बीमारी झूठी है। वहां कोई आदमी बीमार नहीं है। मैं अगर होता,
तो हमें कोई असली तलवार खोज कर मैं को काटना पड़ता।
समाधि के द्वार पर
ओशो
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