Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Tuesday, March 21, 2017

ध्यान एक अक्रिया है।



पहली बात, अभी जब हम ध्यान के लिए बैठेंगे, हमारी सारी भाषा करने की भाषा है।  ध्यान करने बैठेंगे, ऐसा कहेंगे तो गलत है कहना, क्योंकि ध्यान में करने जैसी कोई संभावना नहीं है।  लेकिन हमारी सारी भाषा, मनुष्य की सारी भाषा करने की भाषा है, न-करने की हमारे पास कोई भाषा नहीं है। 


जापान में कोई डेढ़ सौ वर्ष पहले एक बहुत बड़ी मॉनेस्ट्री थी, एक बड़ा आश्रम था।  वहां कोई पांच सौ भिक्षु साधना करते थे।  सम्राट उत्सुक हो गया उस आश्रम को देखने और गया।  दूर-दूर जंगल में फैला हुआ वह आश्रम था, दूर-दूर फैली हुई कुटिया थीं।  एक-एक कुटी को दिखाने लगा भिक्षु, जो प्रधान था और बताने लगा, इस कुटी में हमारे भिक्षु भोजन बनाते हैं, इस कुटी में हमारे भिक्षु अध्ययन करते हैं, इस कुटी में गीत गाते हैं; यहां यह करते हैं, वहां वह करते हैं; वहां स्नान करते हैं।


बीच में बड़ा भवन है आश्रम का, वह भिक्षु उस भवन के बाबत कुछ भी नहीं कहता है! राजा बार-बार पूछने लगा, कि ठीक है, ठीक है, लेकिन इस बड़े भवन में क्या करते हैं? यह बात सुनते ही वह भिक्षु चुप हो जाता, जैसे बहरा हो गया हो, जैसे उसे सुनायी नहीं पड़ता हो! फिर दूसरी कुटिया के बाबत बताने लगता है।  फिर पूरा आश्रम घूम लिया गया।  उस बड़े भवन के आसपास चक्कर लग गया, लेकिन उस बड़े भवन के संबंध में एक शब्द नहीं कहा! फिर वे द्वार पर आ गये और राजा विदा होने लगा और राजा ने कहा, मैं समझता हूं, या तो मैं पागल हूं या तुम।  जो भवन मैं देखने आया था उसके संबंध में तुमने एक शब्द भी नहीं कहा! मैंने बार-बार पूछा, तुम बहरे हो जाते हो! इस बड़े भवन में क्या करते हो?



वह भिक्षु कहने लगा, बड़ी मुश्किल में डाल देते हैं आप।  आप बार-बार पूछते हैं कि इस बड़े भवन में क्या करते हो।  तो मैं समझ गया कि आप करने की भाषा समझ सकते हैं; इसलिए मैंने बताया कि यहां हम स्नान करते हैं, यहां हम भोजन बनाते हैं, यहां हम भोजन करते हैं, यहां हम किताब पढ़ते हैं।



तो मैंने करने की भाषा में बताया, मैंने एक्शन की भाषा में बताया।  अब रह गया बीच का भवन।  बड़ी मुश्किल है।  वहां हम कुछ भी नहीं करते हैं, वहां तो जब कोई भिक्षु कुछ भी नहीं करना चाहता तो चला जाता है।  वह हमारे ध्यान का भवन है।  वह मेडिटेशन हाल है।  और आप पूछते हैं, वहां क्या करते हो? तो आप मुझे मुश्किल में डालते हैं।  अगर मैं कहूं कि हम वहां ध्यान करते हैं तो गलती होगी, क्योंकि ध्यान का करने से कोई संबंध नहीं है।  वहां हम कुछ भी नहीं करते हैं।



यह जो ध्यान की बात मैं कर रहा हूं, यह कुछ भी न-करने की बात है। 



आपने राम राम जपा होगा, उसको ध्यान कहा होगा।  आपने माला फेरी होगी, उसको ध्यान कहा होगा।  आपने गायत्री पढ़ी होगी, उसको ध्यान कहा होगा।  आपने नमोकार जपा होगा, उसको ध्यान कहा होगा।  वह कोई भी ध्यान नहीं है।  जब तक आप कुछ कर रहे हैं, तब तक आप ध्यान में नहीं जा सकते, चाहे माला फेरते हों, चाहे राम राम जपते हों, चाहे गायत्री, चाहे नमोकार, चाहे कुछ और।  जब तक आप कुछ कर रहे हैं, तब तक आप ध्यान के बाहर हैं।  जब आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं, सब मौन, सब शांत हो गया, सब शिथिल हो गया, करने का सारा यंत्र चुप हो गया, तब आप ध्यान में प्रविष्ट होते हैं। 


नेति नेति (सत्य की खोज)

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts