पहली तो बात;
जन्मों-जन्मों की बात ही तुमने सुनी है, जानी
नहीं, यह तुम्हारा बोध नहीं है कि तुम जन्मों-जन्मों से यहां
हो।
और जन्मों की तो तुम बात ही छोड़ो, इस जन्म का भी तुम्हें बोध है? तुम जब पैदा हुए थे, तुम्हें कुछ याद है? कुछ भी तो याद नहीं। वह भी लोग कहते हैं, कि यह
तुम्हारी मां है, ये तुम्हारे पिता हैं। तुम फलां-फलां तारीख
को फलां-फलां समय पैदा हुए थे। ज्योतिषी सर्टिफिकेट देते हैं, या म्यूनिसिपल कारपोरेशन के रजिस्टर में लिखा है। बाकी तुम्हें कुछ याद है?
तुम नौ महीने इस जन्म में गर्भ में रहे हो, तुम्हें उन नौ महीने की कुछ
याद है? तुम पैदा हुए हो उसकी तुम्हें कुछ याद है? पीछे लौटोगे, तो बहुत पीछे गए तो बस, चार साल की उम्र तक जा पाओगे। उसके बाद फिर स्मृति तिरोहित हो जाती है।
फिर कुछ याद नहीं आता; फिर सब धुंधला है; फिर अंधकार है। कभी कोई फुटकर एकाध दो याददाश्तें मालूम होतीं हैं,
वे भी चार साल की उम्र की आखिरी-उसके बाद फिर अंधेरी रात है। और बात
तुम करते हो जन्मों-जन्मों की।
इस जन्म का भी तुम्हें पूरा पता नहीं है। इस जन्म में भी तुम
पैदा हुए कि नहीं या यह भी तुम्हारा अनुभव नहीं है। यह भी लोग कहते हैं। यह, भी सुनी-सुनाई बात है।
तुम्हारा जन्म भी, तुम्हारे प्रमाण पर नहीं, वह भी लोग-प्रमाण से है। अब और इससे ज्यादा झूठा जीवन क्या होगा'! अपने र्जंन्म का ही पता नहीं। अगर समाज तय कर ले धोखा देने का, तो तुम कभी अपने असली पिता या मां को न खोज पाओगे। और कई बार आदमी,
जो पिता नहीं हैं, उसे पिता माने चला जाता है।
मैंने सुना है इक्कीसवीं सदी में सौ वर्ष भविष्य में कंप्यूटर
बन चुके। उनसे तुम कुछ भी पूछो वे जवाब दे देते हैं। एक आदमी थोड़ा संदिग्ध है।
उसने जाकर कंप्यूटर को पूछा, कि मेरे पिता इस समय क्या कर रहे हैं? तो कंप्यूटर
ने कहा, वे समुद्र के तट पर मछलियां मार रहे हैं। वह आदमी
हंसने लगा, उसने कहा, सरासर झूठ। मेरे
पिता को तो मैं अभी घर बिस्तर पर सोया हुआ छोड़कर आया हूं। कंप्यूटर ने कहा,
वह तुम्हारे पिता नहीं हैं, जिनको तुम घर पर
छोड़ आए हो। उसने कहा, कि तुम्हारे पिता तो समुद्र के किनारे
मछलियां मार रहे हैं।
पिता होने तक का कुछ पक्का भरोसा नहीं है, कि जिनको तुम पिता मानते हो,
वे तुम्हारे पिता हैं जिनको तुम मां मानते हो, वह तुम्हारी मां हो। तुम जन्मों-जन्मों की बात कर रहे हो? तुमने सुन लिया। सुन-सुनकर धीरे-धीरे, तुम इतनी बार
सुन चुके हो यह बात, कि तुम यह भूल ही गए, कि तुम्हारा यह बोध नहीं है। इस देश में तो जन्मों-जन्मों की बात इतने काल
से चल रही है, और तुमने इतनी बार सुनी है, कि तुम्हारे भीतर लकीर खिंच गई है।
ध्यान रखो, जितना अपना बोध हो, उससे आगे मत जाओ; अन्यथा झूठ शुरू हो जाता है। महावीर, बुद्ध कहते हैं,
कि और भी जन्म थे क्योंकि उन्हें उन जन्मों की याद आ गई है। तुम मत
कहो। तुम अपनी सीमा में रहो, मैं नहीं कहता, कि तुम यह कहो, कि नहीं होते। क्योंकि यह भी सीमा के
बाहर जाना होगा। होते हैं, नहीं होते, तुम्हें
कुछ पता नहीं है। तुम कृपा करके ठहरो उतने ही तक जहां तक तुम्हें याद है। और
चेष्टा करो कि किस भांति याद गहरी हो सके। और कैसे तुम्हें स्मृति की शृंखला का
बोध हो सके, कैसे तुम्हारी जीवनधारा प्रकाशित हो सके और तुम
पीछे की तरफ जान सको।
सिद्धांतों को चुपचाप स्वीकार कर लेने से कुछ हल नहीं होता, उनसे और उलझनें खड़ी होती
हैं। अब तुम पूछते हो, जन्मों-जन्मों से हमने दुख का अनुभव
किया है। पहली तो बात जन्मों-जन्मों की झूठ। वह कभी बुद्ध, किसी
महावीर को होता है स्मरण। तुम्हें है नहीं स्मरण।
पिव पिव लागी प्यास
ओशो
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