मैं एक अपने मित्र को लेकर, एक नाव पर उन्हें बिठा
कर पहाड़ियों को दिखाने और नदी की यात्रा को ले गया। वे दूर से बाहर के मुल्कों से
घूम कर लौटे थे। बड़े कवि थे। बहुत उन्होंने यात्रा की है। बहुत नदियां, बहुत पहाड़ देखे हैं। बहुत प्रकार के सुंदर स्थानों में वे घूमे हैं।
मैं उन्हें घुमाने ले गया। वे मुझसे बोले, वहां क्या होगा?
मैं तो बहुत झीलें, बहुत सुंदर पहाड़,
बहुत प्रपात देखा हूं। मैंने कहा, फिर
भी चलें। क्यों? क्योंकि मेरी मान्यता है कि हर चीज का
अपना सौंदर्य है और किसी सौंदर्य की किसी दूसरे सौंदर्य से कोई तुलना नहीं हो
सकती। क्योंकि इस जगत में हर चीज अनूठी है और कोई चीज दूसरी चीज जैसी नहीं है। एक
छोटा सा कंकड़ का टुकड़ा भी अपने में यूनीक है, बेजोड़ है।
आप सारी जमीन खोज लें, तो उस जैसा दूसरा टुकड़ा नहीं
मिलेगा। एक छोटा सा फूल भी अपने में बेजोड़ है। वैसा दूसरा फूल पूरी जमीन पर खोजने
से नहीं मिलेगा। लेकिन, मैंने उनसे कहा, चलें। जो छोटी सी पहाड़ियां हैं और छोटी सी नदी है, उसको ही देख लें।
मैं उन्हें लेकर गया। दो घंटे तक हम उन
पहाड़ियों में, उस नदी के किनारे पर, नाव में सब तरफ घूमे। वे
स्विटजरलैंड की झीलों की बातें करते रहे। कश्मीर की झीलों की बातें करते रहे। मैं
सुनता रहा। फिर जब हम वापस लौटे दो घंटे बाद, तो उन्होंने
कहा, बड़ी सुंदर जगह थी। मैंने उनके मुंह पर हाथ रख दिया।
मैंने कहा, मत कहें। क्योंकि वहां मैं अकेला ही गया था।
आप वहां नहीं गए। आप वहां नहीं थे, मैं ही वहां था,
आप वहां नहीं थे। बोले, यह क्या आप बात
कर रहे हैं? मैं आपके साथ हूं और दो घंटे वहां घूमा।
मैंने कहा, आप मेरे साथ दिखाई पड़ते थे। आप मेरे साथ नहीं
थे। आपका चित्त स्विटजरलैंड में रहा होगा, कश्मीर में रहा
होगा, लेकिन ये जो छोटी सी पहाड़ियां हैं, यह जो छोटी सी नदी है, इसमें नहीं था। आप
मौजूद नहीं थे। जो आपके सामने था, वह आपको दिखाई नहीं पड़
रहा था। स्मृति पीछे चल रही थी और स्मृति की फिल्म के कारण, जो मौजूद था, वह छिप गया था। फिर मैंने उनसे
कहा, और अब मैं यह भी समझ गया कि स्विटजरलैंड की झीलों के
बाबत जो आप कहते हैं, वह भी झूठ होगा। क्योंकि जब आप उन
झीलों पर रहे होंगे, तो मन कहीं और रहा होगा। क्योंकि मैं
आपके मन की आदत को समझ गया।
यह हमारे सबके मन की आदत है। हम जहां हैं, मन वहां नहीं है। जहां
हम नहीं हैं, वहां मन है। इस भांति हम जीवन से वंचित रह
जाते हैं। या तो हम अतीत के संबंध में सोचते रहते हैं और या भविष्य के संबंध में
सोचते रहते हैं। दोनों ही स्थितियों में, जो मौजूद है,
वह हमसे चूक जाता है। उससे हम वंचित हो जाते हैं।
और मैंने कहा, जीवन सदा वर्तमान में है। न तो अतीत में कोई
जीवन है और न भविष्य में कोई जीवन है।
अमृत की दशा
ओशो
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