जब तक जीवन सत्य मालूम पड़ेगा, तब तक चित्त शांत नहीं हो
सकता, तब तक छोटी-छोटी चीज का बहुत मूल्य है हमें। हम तो सपने
को सत्य मानकर परेशान हो जाते हैं! रात में एक आदमी सपने में भूत देख लेता है तो नींद
खुल जाती है और छाती धड़कती रहती है। आंख खुल गयी है, नींद
खुल गयी है, लेकिन वह सपना इतना सच मालूम पड़ता है कि अभी भी
प्राण धम-धम घबरा रहे हैं।
हम तो नाटक को भी सच मान लेते हैं। सिनेमागृह
में जाकर न मालूम कितने लोग आंसू पोंछ लेते हैं रूमालों से। वहां परदे पर कुछ भी नहीं
चल रहा है सिवाय बिजली की धारा के,
सिवाय नाचती हुई विद्युत के। वहां कुछ भी नहीं है परदे पर। और मालूम
है भली-भांति कि कोरा परदा है पीछे। उस कोरे परदे पर विद्युत की किरणें दौड़ रही हैं
और चित्र बन रहे हैं। कोई रो रहा है, कोई हंस रहा है,
कोई घबरा रहा है! हम तो नाटक को भी सच मान लेते हैं!
और सत्य की खोज का पहला सूत्र है कि जिसे हम
सच कहते हैं, उसे भी नाटक जानना, तो आदमी सत्य को उपलब्ध हो
सकता है।
बंगाल के एक बहुत बड़े विचारक थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर।
एक नाटक को देखने गये। नाटक में एक अभिनेता है, जो एक स्त्री के पीछे बुरी तरह से पड़ा हुआ है।
वह स्त्री को सब तरह से परेशान कर रहा है। आखिर एक एकांत रात्रि में उसने स्त्री के
घर में कूदकर स्त्री को पकड़ लिया।
विद्यासागर के बर्दाश्त के बाहर हो गया। वह भूल
गये कि यह नाटक है। जूता निकालकर मंच पर कूद पड़े और उस आदमी को लगे जूते मारने! सारे
देखने वाले दंग रह गये कि यह क्या हो रहा है?
लेकिन उस अभिनेता ने क्या किया? उसने विद्यासागर का जूता
अपने हाथ में ले लिया, जूते को नमस्कार किया और जनता से कहा,
इतना बड़ा पुरस्कार मेरे जीवन में मुझे कभी नहीं मिला। मेरे अभिनय
को कोई सत्य समझ लेगा, वह भी विद्यासागर जैसा बुद्धिमान आदमी;
मैंने कभी नहीं सोचा था! मेरा अभिनय सत्य हो सकता है--मैं धन्य हो
गया, इस जूते को मैं संभालकर रखूंगा! मुझे बहुत इनाम मिले
हैं, लेकिन इतना बड़ा इनाम मुझे कभी नहीं मिला।
विद्यासागर तो बहुत झेंपे और जाकर अपनी जगह बैठ
गये। बाद में लोगों से कहा कि बड़ी हैरानी की बात है। वह नाटक मुझे सच मालूम पड़ गया, मैं भूल ही गया कि जो देख
रहा हूं, वह केवल नाटक है।
अगर नाटक भी सच मालूम पड़े तो आदमी अशांत हो जाता
है और अगर जीवन नाटक मालूम पड़ने लगे तो आदमी शांत हो जाता है।
सपने में अशांत होने का कारण क्या है? तब अगर गरीबी आती है तो सपना
है और अमीरी आती है तो सपना है। तब बीमारी आती है तो सपना है और स्वास्थ्य आता है तो
सपना है। तब सम्मान मिलता है तो सपना है, अपमान मिलता है तो
सपना है। तब अशांत, पीड़ित, परेशान
और टेंस होने का कारण क्या है?
सारा तनाव इसलिए पैदा होता है कि जीवन हमें बहुत
सच्चा मालूम पड़ता है, बहुत यथार्थ मालूम पड़ता है। और जितनी यह बात स्पष्ट होने लगे, उतना ही भीतर चित्त शांत होना शुरू हो जाता है। सत्य अशांत होने के कारण
ही विलीन हो जाता है।
नेति नेति (सत्य की खोज)
ओशो
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