कहानी है कि गजेंद्र (गज, हाथी) फंस गया है, एक
मगर के पाश में; मगर ने उसका पैर पकड़ लिया है; और उसने प्रभु का स्मरण किया और वह छूट गया। फीद कद हुआ था मुरीद कहु
किसका? और मैं पूछता हूं तुमसे कि यह जो हाथी था, यह किसका शिष्य था? यह मुरीद कब हुआ था?
इसने किससे शिष्यत्व ग्रहण किया? किससे
मंत्र लिया; किसके साथ साधना की; कौन इसका गुरु था? इनके हिसाब-किताब कहां है?
इतनी चर्चा सुनते
हैं--न्याय--न्याय--न्याय--और कर्म का सिद्धांत; सच्चाई कुछ और दिखाई पड़ती है!
मलूक कह रहे हैं: गीध कब ज्ञान की किताब का
किनारा दुआ! और वह जटायु! उसने कभी कोई किताब पढ़ी थी, कोई वेद पढ़ा था? गीध कद ज्ञान की किताब का किनारा छुआ? किताब
की तो दूर--किताब का किनारा भी उसने कभी दुआ नहीं था। कौन सा ज्ञान था उसे,
जिसके सहारे वह मुक्त हो गया?
ब्याधि और बधिक तारा, क्या निसाफ तिसका?
इस सब का इंसाफ कहां है? मैं तुमसे यह
पूछता हूं, मलूक कहते, कि इस सब
में कहां इंसाफ है?
लोग अपने कर्मों के कारण शुभ को पा रहे हैं, अशुभ को पा रहे हैं,
यह बात गलत है। ये नाम--बाल्मीकि का, और
गजेंद्र का, और जटायु का--मलूकदास उठा रहे हैं इसलिए,
ताकि यह बात साफ हो सके कि कोई अपने करने से मुक्त नहीं होता है;
उसकी अनुकंपा से मुक्त होता है।
कन थोरे कांकर घने (संत मलूकदास)
ओशो
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