संत वही है जो ब्रह्म की दिशा में चल पड़ा
जगत् के व्यवहार को छोड़कर। वचन सीधा-साफ है,
अर्थ गहरा है। और अकसर ऐसा होता है, सीधे-साफ
वचन, जो एकदम सुनते ही समझ में आ जाते हैं, इतना गहरा अर्थ लिए रहते हैं उसका हमें स्मरण ही नहीं होता। कठिन वचन
को तो हम सोचते-विचारते हैं; कठिन है, इसलिए। सरल को तो हम सोचते हैं समझ ही लिया। अब यह इतना सरल वचन है;
इसमें डुबकी लगाओगे तो प्रशांत महासागर की गहराई तुम पाओगे--संत
चले दिस ब्रह्म की!
ब्रह्म की दिशा क्या है? दस दिशाएं हैं आकाश की।
इन दस में से कोई भी ब्रह्म की दिशा नहीं। पूरब जाओ, पश्चिम
जाओ, काशी या काबा--ब्रह्म की दिशा नहीं है। उत्तर जाओ
दक्षिण जाओ, कैलाश कि रामेश्वरम्-- काबा--ब्रह्म की दिशा
नहीं है। ऊपर जाओ कि नीचे--काबा--ब्रह्म की दिशा नहीं है। काबा--ब्रह्म की दिशा
ग्यारहवीं दिशा है। और ग्यारहवीं दिशा का कोई उल्लेख भूगोल में नहीं है। भूगोल का
ग्यारहवीं दिशा अंग नहीं है। ग्यारहवीं दिशा हैः भीतर जाओ, अपने में जाओ। आकाश दस दिशाओं से बना है, तुम
ग्यारहवीं दिशा हो!
मोजेज के प्रसिद्ध नियम हैं: दस आज्ञाएं। जैसे एक-एक दिशा को एक-एक आज्ञा
पूरा करती है।
जीसस ने अपने शिष्यों को कहाः मैं तुम्हें
ग्यारहवीं आज्ञा देता हूं! वही ग्यारहवीं आज्ञा ग्यारहवीं दिशा में ले जानेवाली
है। वह आज्ञा भी बड़ी अनूठी है। शिष्यों ने पूछा कि ग्यारहवीं आज्ञा?हमने तो सुना है कि दस
आज्ञाओं में सारा धर्म आ गया। लेकिन जीसस ने कहा ः जब तक तुम ग्यारहवीं आज्ञा पूरी
न करो, दस तो पूरी होंगी ही नहीं। जिसने दस पूरी कीं और
ग्यारहवीं छोड़ दी, उसका कुछ भी पूरा नहीं होगा। और जिसने
ग्यारहवीं पूरी कर ली, उसकी दस अपने-आप पूरी हो जाती हैं।
कौन-सी है ग्यारहवीं आज्ञा? तब जीसस ने कहाः प्रेम है
ग्यारहवीं आज्ञा! अंतिम रात्रि भी विदा होते समय भी उन्होंने यही कहा, कि मैं जाता हूं, लेकिन मैंने तुम्हें जो कहा
है उसे भूल मत जाना।
एक शिष्य ने पूछाः आपने बहुत बातें कही हैं, कौन-सी बात को आप याद
दिलाना चाहते हैं?
जीसस ने कहा ः वही ग्यारहवीं आज्ञा। मैंने
तुम्हें जिस तरह प्रेम किया, उसी तरह तुम प्रेम करना! ठीक . . ."प्रेम करना' उचित नहीं है कहना--प्रेम हो जाना!
जो
भीतर जाता है, वह प्रेम हो जाता है। जो भीतर जाता है वह प्रार्थना हो जाता है।
प्रार्थना प्रेम का ही निचोड़ है। जैसे हजारों फूल से इत्र निचोड़ते हैं, ऐसे हजारों प्रेम के अनुभव से प्रार्थना का इत्र निचुड़ता है। और जिसने
प्रेम ही नहीं किया, वह प्रार्थना तो क्या खाक करेगा?
और अकसर ऐसा होता है, जो लोग प्रेम करने
में असमर्थ हैं, मंदिर चले जाते हैं। और कहते हैं हम प्रार्थना
करेंगे। प्रेम अभी किया नहीं, अभी प्रेम का क ख ग भी नहीं
सीखा, प्रार्थना करने चल पड़े! जिन्हें जमीन पर चलना नहीं
आता, वे आकाश में उड़ने का विचार करने लगे। गिरेंगे ,
बुरी तरह गिरेंगे! हड्डी-पसलियां तोड़ लेंगे। पहले जमीन पर चलना
तो सीखो!
इस पृथ्वी को प्रेम करो! जिस दिन इस पृथ्वी
के प्रति प्रेम तुम्हारा बेशर्त हो जाएगा,
उस दिन तुम पाओगे तुम्हें पंख लग गए, अब
तुम आकाश में उड़ने में असमर्थ हो गए। पृथ्वी उनको ही पंख देती है भेंट, जो अपना सारा प्रेम पृथ्वी पर निछावर कर देते हैं। और उन पंखों का नाम
प्रार्थना है। यह पृथ्वी उस परमात्मा की है। इस पृथ्वी को भर दो अपने प्रेम से--और
तुम पाओगेः वही प्रेम तुम्हें उठाने लगा आकाश में! चले तुम अनंत की यात्रा पर!
ज्योति से ज्योति जले
ओशो
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