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Monday, November 9, 2015

काम, क्रोध, मद, लोभ

काम का अर्थ है: यह मिले, वह मिले, मिलता ही रहे। जो नहीं है, उसके पीछे दौड़। क्रोध का अर्थ है: तुम्हारी दौड़ में जो भी बाधा पैदा करके, उसके प्रति रोष, उसे मिटा डालने की आकांक्षा। मद का अर्थ है: तुम जो चाहते हो मिल जाए, तो अहंकार, अकड़। और लोभ का अर्थ है: जो मिल गया है, वह और मिले, और मिले। ये सब काम के ही भिन्न भिन्न रूप हैं। काम में ही बाधा पड़े तो क्रोध, काम पूरा हो जाए तो मद। और पूरे हो जाने पर भी कुछ पूरा नहीं होता। वासना कोई भरती नहीं।

एक सूफी फकीर के पास एक युवक आया और उस युवक ने कहा कि कैसे परमात्मा को पा सकता हूं? सूफी फकीर ने कहा कि अभी तो मैं जा रहा हूं कुएं पर पानी भरने, तुम मेरे साथ आओ। हो सका तो वहीं उत्तर भी हो जाएगा। मगर एक शर्त खयाल रखना। कसम खाओ। यह पहली कसौटी है कि तुम विद्यार्थी होने के योग्य हो भी या नहीं। मैं कुएं पर कुछ भी करूं, तुम प्रश्न मत उठाना; तुम चुपचाप देखते रहना। तुम्हारा काम निरीक्षण का है, तुम्हारा काम साक्षी का।

साक्षी की शिक्षा! विद्यार्थी भी बड़ा उत्सुक हुआ, क्योंकि साक्षी ही तो सार है। सुना है शास्त्रों में, पढ़ा है शास्त्रों में, ज्ञानियों से जाना है साक्षी ही तो सार है! यह भी अदभुत गुरु है। पहले ही मौके पर बस आखिरी कुंजी देने लगा! चल पड़ा जल्दी उत्सुकता में, आतुर, मस्त कि कुछ हाथ लगने को है। कुएं पर पहुंच कर लेकिन बड़ी निराशा लगी हाथ, क्योंकि वह फकीर पागल मालूम पड़ा। उसने एक बाल्टी निकाली अपने झोले में से, जिसमें पेंदी थी ही नहीं। जब उस विद्यार्थी ने देखा कि बिना पेंदी की बाल्टी…मारे गए! और जब उसने डोरी बांधी और बिना पेंदी की बाल्टी उसने कुएं में डाली, तो बार बार उसके सामने सवाल उठने लगा कि पूछूं कि यह आप क्या कर रहे हैं? लेकिन याद था उसे, कसम खा ली थी कि पूछना मत, सिर्फ साक्षी रहना। यह भी बड़ी झंझट हो गई। जबान पर आ आ जाए सवाल। घोंट दे गर्दन में सवाल को। और वह फकीर पानी भरने लगा बिना पेंदी की बाल्टी से। खूब खड़खड़ाएं कुएं में। जितना वह खड़खड़ाए, उसकी छाती भी खड़खड़ाए विद्यार्थी की, कि मारा! यह कब पानी भरेगा? जब कुएं में पानी में बाल्टी रहे, तब तो भरी हुई मालूम पड़े, जब डूबी रहे पानी में; और जैसे ही वह खींचे कि खाली। ऊपर आ जाए, देखे कि खाली, तो फिर डाले। एक बार, दो बार, दस बार…आखिर भूल गया विद्यार्थी अपनी कसम। उसने कहा कि रुको जी! होश है? यह तो जिंदगी खराब हो जाएगी तुम्हारी और मेरी भी! मैं भी सिके चक्कर में पड़ गया! इस बाल्टी में कभी पानी नहीं भर सकता।

उस गुरु ने कहा: बात खतम हो गई! अब तुम अपने रास्ते लगो। तुम पहला वचन पूरा न कर पाए। बस एक बार और मैं डालने वाला था, बस एक बार और। तुम बस पहुंचते पहुंचते चूक गए, मैं क्या करूं? मैंने तय किया था: ग्यारह बार। दस बर तो हो चुका था। जरा और धीरज रख लेते, बस जरा और! मुझे मालूम है कि बड़ी तकलीफ तुम्हें हो रही थी। पसीना पसीना तुम हो रहे थे। तुम्हारा सब हाल मुझे मालूम है। बाल्टी खड़खड़ा रही, तुम भी खड़खड़ा रहे थे…सब मुझे मालूम है। बाल्टी से ज्यादा परेशान तुम थे। लेकिन अगर एक बार और धीरज रख लिया होता तो मैं तुम्हें शिष्य स्वीकार कर लेता। अब रास्ता नापो!

उसने बाल्टी रखी अपने झोले में और घर वापस लौट गया। विद्यार्थी ने भी सोचा कि हो तो गई गलती…पता नहीं यह क्या देने वाला था! एक ही बार और…खूब चूके! मगर यह आदमी भरोसे का नहीं है। हो सकता है हम और एक बार रहते, और तब भी यह यही कहता: इस आदमी का क्या पक्का! हम बीस बार भी चुप रहते, यह कहता, इक्कीसवीं बार…। इसने कुछ पहले से बताया तो था नहीं कि ग्यारह बार चुप रहना। हजार बार भी अगर हमने धीरज रखा होता तो यह कहता, बस एक…। यह आदमी बड़ा चालबाज है। पागल भी है और चालबाज भी है।

लौट तो गया घर, लेकिन बीच बीच में खयाल आने लगा कि चालबाज कितना ही हो, पागल कितना ही हो, आंखों में उसकी एक मस्ती तो थी ही, जो कहीं और नहीं देखी! उसके चारों तरफ एक आभा मंडल तो था, एक शीतलता तो थी! मैं चूक गया। मुझसे भूल हो गई।

रुक न सका, आधी रात वापस पहुंच गया। एकदम पैर पर गिर पड़ा और कहा: मुझे क्षमा कर दो, मुझसे भूल हो गई। उस फकीर ने कहा: अगर तुम समझ गए हो, समझकर क्षमा मांग रहे हो, समझकर कह रहे हो कि तुम से भूल हो गई, तो पाठ पूरा हो गया।

यही तुम्हारी अब तक कि जिंदगी है। वासना बिना पेंदी की बाल्टी है। इसको संसार के कुएं में डालते रहे, डालते रहो, खड़खड़ाते रहो, हर बार भरी हुई मालूम होगी और जब खींच कर लाओगे घाट तक, खाली हो जाएगी। यह कभी भरने वाली नहीं। यह पहला पाठ। जो मैंने बाल्टी के साथ किया और तुम समझ गए, अब वही अपने साथ करो और समझो। जिस दिन यह बात तुम्हारी समझ में आ जाए, फिर आना, फिर दूसरा पाठ दूंगा। अब अपनी वासना की बाल्टी को रोज रोज देखो डालते हो कुएं में और खाली की खाली लौट आती है।

काम का अर्थ है: अंधी वासना। क्रोध का अर्थ है: तुम्हारी वासना में जो भी बाधा डाले। मद का अर्थ है: अगर कभी भूल चूक से किसी संयोगवशात तुम्हारी बाल्टी भर जाए, तो अहंकार पकड़ता है। और लोभ का अर्थ है: बाल्टी कितनी ही भर जाए, मन कहता है, और। मन कभी और की आवाज बंद करता ही नहीं। मन तो ऐसा समझो जैसे ग्रामोफोन का रिकार्ड है, जिस पर सुई एक ही जगह अटक गई है और वही, और वही, और वही दोहराए चली जाती है।

मैंने सुना है, एक नया हवाई जहाज बना। वह बिना पायलट के उड़ने वाला था। पूरा आटोमैटिक! न उसमें पायलट, न उसमें होस्टेस, न कोई स्टीवर्ट…कोई भी नहीं। बस यात्री। और मशीन ही सब करेगी। सब आटोमैटिक! एक बटन दबाओ, भोजन आए; दूसरी बटन दबाओ, चाय आए। एक बटन दबाओ, फौरन इंटरकाम पर आवाज आए कि कितनी ऊंचाई पर उड़ रहे हो, मंजिल कितनी दूर है, कितनी देर में पहुंच जाओगे।

यात्री बड़े खुश थे। लोगों ने बड़ी मुश्किल मुश्किल से टिकटें पाई थीं। बड़ी भीड़ मची थी कौन सबसे पहले उड़ता है बिना पायलट के हवाई जहाज में! हवाई जहाज उड़ा। हजारों फीट ऊपर उठ गया। तब इंटरकाम पर आवाज आई कि निश्चिंत हो जाइए। अपनी अपनी बेल्ट खोल लीजिए। विश्राम करिए। जरा भी चिंता मत रखिए कि पायलट नहीं है। कोई भूल कभी नहीं हो सकती, कोई भूल कभी नहीं हो सकती, कोई भूल कभी नहीं हो सकती, कोई भूल कभी नहीं हो सकती…!

बस, छाती बैठे गई यात्रियों की कि मारे गए! भूल तो यहीं हो गई। अब आगे क्या होगा, अब कुछ कहा नहीं जा सकता।

ऐसा ही मन है। वह कहता है: और, और, और…। उसकी और की मांग कभी समाप्त ही नहीं होती। दस हजार हैं, तो कहता है, दस लाख। दस लाख हैं, तो कहता है, दस करोड़। वह मांग बढ़ाए जाता है, फैलाए चला जाता है। इन्हीं में पिस रहा है आदमी। ये हैं पीसनहारे!

काम क्रोध मद लोभ चक्की के पीसनहारे।


तिरगुन डारै झोंक पकरिकै सबै निकारे।।


तृस्ना बड़ी छिनारि, जाइ उन सब घर घाला।

और यह जो तृष्णा है, यह तो वेश्या है। इसका कुछ भरोसा नहीं। यह कहां—कहां भटकाती है, कहां—कहां ले जाती है! कितने जन्मों में, कितनी योनियों में इसने भटकाया है!


सपना यह संसार 

ओशो 

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