Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Monday, August 24, 2020

आंख विश्वास से बंद हैं

 एक बहुत बड़ा विचारक था। वह एक दिन सुबह-सुबह अपने गांव के तेली के घर तेल खरीदने गया था। उसने तेल खरीदा। तब तक तेल तेली तौल रहा था, वह देखता रहा कि उसके पीछे ही तेली का कोल्हू चल रहा था। बैल की आंखों पर पट्टियां बंधी थीं और वह बैल कोल्हू को चला रहा था। कोई चलाने वाला नहीं था। उसने उस तेली को पूछाः कोई चला नहीं रहा है, फिर भी ये बैल चल रहा है, बात क्या है? उस तेली ने बड़े मतलब की बात कही। उसने कहाः देखते नहीं हैं, उसकी आंखें हमने बंद कर रखी हैं। जब आंख बंद होती है तो बैल को पता ही नहीं चलता कि कोई चला रहा है कि नहीं चला रहा है। आंख खुली हो तो बैल पता लगा लेगा कि कोई नहीं चला रहा है, तो वह खड़ा हो जाएगा।

उस विचारक ने पूछाः लेकिन अगर वह खड़ा हो जाए, तो तुम्हें कैसे पता चलेगा? तुम तो पीठ किए बैठे हुए हो। उसने कहाः उसके गले में हमने घंटी बांध रखी है। चलता है घंटी बजती रहती है, जैसे ही घंटी रुकती, हम फिर उसे चला देते हैं। उसे कभी यह खयाल ही नहीं आ पाता कि बीच में चलाने वाला गैर-मौजूद था। उस विचारक ने कहाः लेकिन यह भी तो हो सकता है कि बैल खड़ा हो जाए और सिर हिलाता रहे, घंटी बजती रहे। उस तेली ने कहाः हाथ जोड़ते हैं आपके, कृपा करके यहां से चले जाइए, कहीं बैल ने आपकी बात सुन ली, बड़ी मुश्किल हो जाएगी। आप जाइए, और अगली बार कहीं और से तेल खरीदा करिए। बैल बिचारा सीधा काम कर रहा है, इस तरह की बात सुन ले सब गड़बड़ हो जाए। बैल का मालिक नहीं चाहता है कि विचार बैल तक पहुंच जाए।

दुनिया में कोई मालिक नहीं चाहता है कि विचार मनुष्य तक पहुंच जाए। और मनुष्य को जोता हुआ है, बहुत से, बहुत से कोल्हुओं में उससे काम करवाया जा रहा है। और उसके गले में घंटियां बांध दी गई हैं--जो बज रही हैं, और आदमी है कि आंख बंद किए चला जा रहा है। आंख किस बात से बंद हैं?

आंख विश्वास से बंद हैं। बिलीफ, आदमी की आंख पर बिलीफ की पट्टियां हैं, विश्वास की पट्टियां हैं। तभी तो एक रंग की पट्टी एक आदमी को मुसलमान बना देती है, दूसरे को हिंदू, तीसरे को जैन, चैथे को ईसाई बना देती है। अन्यथा आदमी-आदमी में कोई और फर्क है सिवाय विश्वासों के? एक आदमी और दूसरे आदमी में कोई भेद है, कोई दीवाल है, कोई खाई है उन दोनों के बीच? उनके प्रेम को रोकने वाली कोई दीवाल है? सिर्फ विश्वास के अतिरिक्त और कोई दीवाल नहीं है। मैं मुसलमान हो जाता हूं, आप हिंदू हो जाते हैं।

क्योंकि मुझे बचपन से दूसरे विश्वास का जहर पिलाया गया और आपको दूसरे विश्वास का जहर पिलाया गया। आपकी आंख पर दूसरे ढंग की पट्टियां बांधी गईं, कोई दूसरे कोल्हू में आपको जोता गया, मुझे किसी दूसरे कोल्हू में जोता गया। और चाहे हम किसी भी कोल्हू में जुते हों, एक बात तय है कि हमारी आंखें बंद कर दी गई हैं। हमारी आंख के खुलने के सारे द्वार बंद कर दिए गए हैं, हमारे भीतर खयाल भी पैदा न हो।

और अगर कभी कोई खयाल दिलाने आ जाए तो कोल्हू का मालिक कहता हैः आपके हाथ जोड़ते हैं, आप यहां से जाइए। आपकी बातें अगर बैल ने सुन ली तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी! इसलिए दुनिया में जब भी विचार को जन्म देने वाले लोग पैदा हुए तो हमने उनकी हत्या कर दी। हमने उनको सूली पर लटका दिया, या जहर पिला दिया।

जीवन दर्शन 


ओशो



ईश्वर है?

शास्त्र से पढ़ लेते हैं आत्मा की बातें, सुन लेते हैं परंपराओं से परमात्मा के विचार। और उन्हें सीख लेते हैं, और इस भांति उनकी बातें करने लगते हैं जैसे हम जानते हों। जैसे हम जानते हों ऐसे उधार ज्ञान को हम एहसास करने लगते हैं कि हमारा अपना है। यह अंतिम धोखा है जो कोई आदमी अपने को देता है। पंडित इसी भांति अपने को धोखा दे लेता है। जो उसने नहीं जाना है, जो उसने केवल सुना है और सीखा है, जो उसने पढ़ा है और स्मरण कर लिया है, उसे भी वह ज्ञान मान लेता है।

हम सारे लोग यहां बैठे हैं। हममें से कोई ईश्वर को मानता होगा, कोई आत्मा को मानता होगा, कोई मोक्ष को मानता होगा; और हममें से कोई भी नहीं जानता इन बातों की सच्चाई। लेकिन निरंतर इन बातों को दोहराते रहने से ऐसा भ्रम पैदा हो जाता है जैसे कि हम जानते हैं। और जब हम दूसरों को ये बातें समझाने लगते हैं, और उनको ऐसा एहसास होता है, उनकी आंखों में हमें ऐसा दिखाई पड़ता है कि उनकी बातें समझ में आ रही हैं। तो उनकी आंखों में ये झलक देख कर हमको खुद यह विश्वास आ जाता है कि हम जो बातें कह रहे हैं वे जरूर सच होंगी और हमने जानी होंगी।

आज ही दोपहर में एक घटना कह रहा था।

अमरीका में एक आदमी ने सबसे पहले बैंक डाला। बाद में कोई चालीस वर्षों बाद जब वह बूढ़ा हो गया, और उसकी कोई जयंती मनाई जा रही थी तो उसके एक मित्र ने उससे पूछा कि तुमने सबसे पहले बैंक किस तरह शुरू किया? उसने कहाः मैंने एक तख्ती बनवाई, जिस पर मैंने लिख दिया ‘बैंक’ और उसे घर के सामने टांग दिया और मैं एक पेटी और किताबें लेकर बैठ गया। पीछे, कोई घंटे भर बाद एक आदमी आया और उसने पचास रुपये जमा करवाए, फिर कोई दो घंटे बाद एक आदमी आया उसने भी डेढ़ सौ रुपये जमा करवाए। उन दोनों आदमियों को जमा करते देख कर मेरा आत्मविश्वास इतना बढ़ गया कि मैंने भी अपने पचास रुपये उसमें जमा कर दिए। दो आदमियों को जमा करते देख कर मेरा भी विश्वास इतना बढ़ गया कि मैंने भी अपने पचास रुपये उसमें जमा कर दिए कि जरूर यह बैंक चल जाएगा। ऐसे बैंक शुरू हो गया।

शास्त्रों से हम शब्द सीख लेते हैं। उन शब्दों को हम दूसरों को बताने लगते हैं और उनकी आंखों में अगर हमें झलक दिखाई पड़ती है कि हां बात उन्हें ठीक लग रही है तो हमारा खुद का विश्वास इतना बढ़ जाता है कि हमें लगता है कि जो हम कह रहे हैं वह बिलकुल सही है। और इस भांति शब्द ज्ञान बन जाते हैं। शब्द जो कि उधार और बासे हैं। और शास्त्र को हम स्मरण कर लेते हैं और भूल जाते हैं कि हम कुछ भी नहीं जानते। यह अंतिम धोखा है जो आदमी अपने को दे सकता है।

अगर मैं आपसे पूछूं, ईश्वर है? और अगर आप चुप रह जाएं और कहेंः मुझे कुछ भी पता नहीं, मैं निपट अज्ञानी हूं। तो मैं कहूंगाः आप एक धार्मिक आदमी हैं, आप अपने को धोखा नहीं दे रहे हैं। लेकिन अगर आप कहें कि हां, ईश्वर है और इस रंग का है, और इस शक्ल का है, और इस मंदिर वाला सच्चा ईश्वर है, और दूसरे मंदिर वाला झूठा है। तो मैं आपसे कहूंगाः आपने अपने को धोखा देना शुरू कर दिया।

ईश्वर जैसी बात कहां हमें ज्ञात है? अननोन है। अज्ञात है सत्य। और हम अपनी क्षुद्र बुद्धियों को लेकर चार शब्दों को सीख लेते हैं, और कहने लगते हैं हमें ज्ञात है। या एक आदमी कहे कि नहीं है ईश्वर, वह भी इतनी ही मतांध बात कह रहा है। बिना इस बात को जाने कि जिसका उसे पता नहीं है उसे इंकार करना ठीक नहीं है। तो जो आदमी अपने प्रति सच्चाई बरतेगा, वह कहेगा कि मैं नहीं जानता हूं, मुझे कुछ पता नहीं है। और इस सरलता से, इस सच्चाई से उसके भीतर एक अन्वेषण की शुरुआत होगी, एक खोज की शुरुआत होगी।


जीवन दर्शन 


ओशो


Popular Posts