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Friday, October 9, 2015

त्राटक विधि और उसके खतरे

अपने कमरे के दरवाजे बंद कर दें, और एक बहुत बड़ा दर्पण अपने सामने रख लें। कमरा अंधेरा होना चाहिए। और फिर दर्पण के पास एक हल्की रोशनी का लैंप रख लें इस तरह कि इसकी छाया शीशे में दिखलाई न पड़े। केवल आपका चेहरा ही दर्पण में प्रतिबिंबित हो। फिर लगातार दर्पण में अपनी स्वयं की आंखों में देखें। पलक न झपके। यह चालीस मिनट का प्रयोग है और दो या तीन दिन में आप अपनी आंखों की पलक न झपकने देने में समर्थ हो जाएंगे।

यदि आंसू भी आए तो आने दें, परन्तु पलक न झपके इसके लिए पूर्ण प्रयास करें। लगातार अपनी आंखों में देखते जाएं। दृष्टि का कोण न बदलें। देखते जाएं लगातार अपनी ही आंखों में और दो या तीन दिन में ही आप सारे कंपनों से अवगत हो जाएंगे। आपका चेहरा नए रूप लेने लगेगा। हो सकता है कि आप डर जाएं।
शीशे में आपका चेहरा बदल जाएगा। कभी बिलकुल भिन्‍न ही चेहरा प्रकट होगा, जिसे कि आपने कभी नहीं देखा। वास्तव में, ये सारे चेहरे आपके हैं। अब अर्धचेतन मन विस्फोट करना शुरू कर रहा है। ये चेहरे, ये मुखौटे आपके हैं। कभी-कभी पिछले जन्मों के चेहरे भी आ सकते हैं।

`रोजाना चालीस मिनट एक सप्ताह तक देखने के बाद, आपका चेहरा एक प्रवाह, एक धीमी रोशनी का प्रवाह जैसा हो जाएगा। बहुत से चेहरे निरंतर आते-जाते रहेंगे। तीन सप्ताह के बाद आपको याद भी नहीं रहेगा कि आपका चेहरों कौन सा है। आपका अपना ही चेहरा आपको याद नहीं रहेगा, क्योंकि आपने इतने चेहरे आते और जाते देखे हैं कि सब गुम हो गया।

यदि आप इसे चालू रखते हैं, तो तीन सप्ताह बाद किसी दिन भी एक सब से अधिक विचित्र बात होगीः अचानक दर्पण में कोई भी चेहरा नहीं होगा। दर्पण खाली होगा। आप रिक्तता में झांक रहे होंगे। कोई चेहरा भी चेहरा नहीं होगा। इसी क्षण अपनी आंखें बंद कर लें और अचेतन को देखें। जब दर्पण में कोई चेहरों न हो, तभी अपनी आंखें बंद कर लें, भीतर देखें, और आप अचेतन के समक्ष खड़े होंगे।

आप नंगे होंगे, बिलकुल नंगे, जैसे कि आप हैं, सारी प्रवंचनाएं गिर जाएंगी। यह वास्तविकता है। समाज ने कितनी ही तहें निर्मित की हैं, ताकि आप उनके प्रति सजग न हों। इसके लिए एक बार जब आप स्वयं को अपनी नग्नता में, अपनी पूर्ण नग्नता में जान लेते हैं, आप दूसरे ही व्यक्ति होने शुरू हो जाते हैं। तब आप अपने को धोखा नहीं दे सकते। अब आप जानते हैं कि आप क्या है, और जब तक आप न जानें कि आप क्या है, आप रूपांतरित नहीं हो सकते क्योंकि कोई भी रूपांतरण केवल इसी नग्न वास्तविकता में संभव है। यह नग्न वास्तविकता प्रसुप्त बीज है किसी भी रूपांतरण के लिए। कोई प्रवंचना रूपांतरित नहीं हो सकती। जब आपको मूल चेहरों यहां है और आप इसे रूपांतरित कर सकते हैं और वस्तुतः उसे रूपांतरित करने का संकल्प ही रूपांतरण को प्रभावित करता है।
 
परन्तु आपके झूठे चेहरे–आप उन्हें नहीं बदल सकते। मतलब कि आप उन्हें बदल तो सकते हैं, परन्तु रूपांतरित नहीं कर सकते। बदलने से मेरा मतलब है कि आप उनके स्थान पर दूसरे झूठे चेहरे लगा सकते हैं। एक चोर एक साधु हो सकता है। यदि एक अपराधी साधु हो सकता है, तो बहुत ही सरल है मुखौटा का बदलना, किंतु यह रूपांतरण नहीं है। रूपांतरण का मतलब है वही हो जाना जो कि तुम हो असल में, जो कि तुम वस्तुतः हो। अतः जिस क्षण आप अचेतन को अपने समक्ष पाएं, उसका सामना करें, देखें, आप वास्तविकता के आमने-सामने खड़े हैं, आप आपने प्रामाणिक स्वरूप के समक्ष खड़े हैं।

आपका झूठा स्वरूप वहां नहीं है, आपका नाम भी नहीं है, आपकी आकृति भी नहीं है, आपका चेहरा भी नहीं है। प्रकृति की नग्न शक्तियां रह गई हैं और इस नग्न शक्तियों के साथ कोई भी रूपांतरण संभव है, आपके जरा से संकल्प करने मात्र पर, चाहने भर पर। कुछ और नहीं करना है। आप मात्र चाह करें, और चीजें होने लगेंगी। जब आप स्वयं को इस नग्नता में देख लें, तब मात्र इच्छा करें, और जो कुछ भी आप चाहेंगे, वह हो जाएगा।
बाइबिल में, परमात्मा ने कहा–प्रकाश हो और–प्रकाश हो गया। कुरान में, खुदा ने कहा, संसार हो और संसार हो गया। सचमुच, ये कथाएं हैं, संकल्प की कथाएं, जो कि आप में छिपा हुआ है।


 जब आप अपनी नग्न सत्यवत्ता को देखते हैं, मूल, आधारभूत शक्तियों को देखते हैं तो आप एक सृष्टा बन जाते हैं, एक देवता हो जाते हैं। बस कहें, एक शब्द बोलें, और वह हो जाता है। कहें कि प्रकाश हो, और प्रकाश हो जाएगा। अपने प्रामाणिक स्वरूप से साक्षात्कार होने के पहले यदि आप अंधेरे का प्रकाश में रूपांतरित करने की कोशिश कर रहे हैं, तो वह संभव नहीं है।

अतः यह सामना मूल है, आधारभूत है किसी भी धार्मिक घटना के लिए। कितनी ही विधियां आविष्कृत की गई हैं। एकदम हो जाएं ऐसी विधियां भी है, और धीरे-धीरे हों ऐसी विधियां भी हैं। मैंने आपको धीरे-धीरे होने वाली विधि के बारे में बतलाया है। अचानक होने वाली विधियां भी हैं, लेकिन अचानक होने वाली विधि में यह सदैव बड़ा कठिन होता है, क्योंकि अचानक विधि में हो सकता है कि आपकी मृत्यु हो जाएं। अचानक विधि में हो सकता है कि आप पागल हो जाएं, क्योंकि घटना इतनी अचानक होती है कि आप उसके लिए सोच भी नहीं सकते। आप बस गिर पड़ते हैं, भयग्रस्त। गीता में यह होता है। अर्जुन कृष्ण को जोर देकर अपना विराट स्वरूप दिखलाने को कह रहा है। कृष्ण दूसरी चीजों की बात करते चले जाते हैं, लेकिन अर्जुन बार-बार जोर दे रहा है और वह कहता है मुझे दिखलाना पड़ेगा। बिना देखे मैं मान नहीं सकता। यदि आप सचमुच परमात्मा हैं, तो अपना ब्रह्म स्वरूप मुझे दिखलाएं।

कृष्ण उसे दिखलाते हैं, परन्तु वह इतना अचानक होता है कि अर्जुन उसके लिए कतई तैयार नहीं रहता, वह चिल्लाने लगता है और कृष्ण से कहता है–बंद करें! बंद करें इसे! मैं भय से मर रहा हूं। इसलिए याद आप किसी अचानक विधि से इस पर आए, तो यह खतरनाक होगा। कुछ खास विधियां हैं। वे केवल समूह में ही सिद्ध की जा सकती हैं–एक ग्रुप में, जिसमें आप दूसरों को दूसरे आपको सहायता दे सकें।

वास्तव में, आश्रम का निर्माण भी इन्हीं अचानक विधियों के लिए किया गया था, क्योंकि वे अकेले साधी नहीं जा सकतीं। एक समूह ही आवश्‍यकता होती है, दूसरों की जरूरत होती है, एक निरंतर चौकसी की आवश्‍यकता होती है, क्योंकि कभी-कभी आप महीनों के लिए बेहोश होकर गिर पड़ते हैं और तब यदि कोई नहीं हो जो कि जानता हो कि अब क्या करें, तो आपको मृत समझ लिया जाएगा। रामकृष्ण कितनी ही बार गहरी समाधि में चले जाते थे, छह-छह दिन के लिए, दो सप्ताह के लिए, लगातार। उन्हें सचमुच से जबरन खिलाया जाता था: क्योंकि वे बिलकुल ऐसे हो जाते थे, जैसे मूर्च्‍छित हों। एक साधक-समूह की आवश्‍यकता होती है।

अचानक विधियों के लिए, और उसके लिए एक गुरु परम आवश्‍यक है। ये अचानक विधियां, सड़न मैथड़स भारतीय विधियों में से निकाल दी गई–बुद्ध, महावीर व शंकराचार्य के कारण। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि साधुओं को सदैव यात्रा करते रहना चाहिए। उन्होंने साधुओं को आश्रमों में नहीं रहने दिया। उन्हें तीन दिन से ज्यादा कहीं भी नहीं रहना चाहिए। इसकी जरूरत भी थी, क्योंकि बुद्ध व महावीर के समय में, आश्रम शोषण के केंद्र बन गए थे, वे बड़े भारी व्यापार के केंद्र हो गए थे। इसलिए महावीर और बुद्ध दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि संन्यासी तीन दिन से अधिक कहीं भी न रहे। और तीन दिन, एक बड़ी मनोवैज्ञानिक सीमा है, क्योंकि किसी भी स्थान या लोगों से परिचित होने के लिए आपको तीन दिन से अधिक की आवश्‍यकता होती है।


गीता दर्शन



6 comments:

  1. श्रीमान जी दर्पण त्राटक अचानक होने वाली विधियों में तो नही है ना?

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  2. MANE DARPAN TRATAK MAIE APNE HADEYA DHAKI HA

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  3. यह साधना मैं जरूर करूंगा ।

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  4. दर्पण हाफ साइज का चल सकता हैं ।

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  5. आदरणीय मैने एक बार नेत्र ज्योति के लिए काले बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने के विषय मे पढ़ था उसको भी त्राटक कहा गया था। तो वह क्या था?

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