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Sunday, October 11, 2015

जीवन में व्रत का क्या मूल्य है? भाग ४

कल हमने बुद्ध के भिक्षु की बात कही जो झाडू लगाया करता था। अब क्या तुम सोचते हो, झाडू लगाना छोड़ देने से पुण्य हुआ? कि भगवान कहेगा कि धन्यभागी! तेरा बड़ा सौभाग्य कि तूने झाडू लगाना छोड़ दिया! इसकी कहीं पुण्य में गिनती होगी!

अगर तुम गौर से समझो तो इस जमीन पर पाप के नाम से तुमने जो किया है, वह नासमझी है। और पुण्य के नाम से उस नासमझी को मिटाते हो। पुण्य क्या है? चोरी की, चोरी कर करके धन इकट्ठा कर लिया, फिर दान करके पुण्य कर दिया। पहले धनी होने का मजा ले लिया, फिर पुण्यात्मा, दानी होने का मजा ले लिया। और दोनों निर्भर हैं धन पर। और धन का कोई मूल्य ही नहीं है। धन दो कौड़ी का है। मिट्टी है। पहले मिट्टी इकट्ठी करके मजा ले लिया, तब अखबारों में खबर छप गयी कि देखो, कितनी मिट्टी इकट्ठी कर ली इस आदमी ने। और फिर मिट्टी दान करके मजा ले लिया। फिर अखबारों में खबर छप गयी कि यह आदमी पुण्यात्मा हो गया।

व्रत बेईमानी है। समझदार के जीवन में क्रांति होती है, व्रत नहीं होते।

मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मायके गयी थी। उसने अपनी एक प्रेयसी को घर आने का निमंत्रण दिया। पत्नी बाहर गयी हो तो कौन ऐसा अवसर चूके! इसलिए पत्नियां मायके जाने की धमकी देती हैं, जाती करती नहीं। जाने की कहो तो नाराज हो जाती हैं। मगर जाना पड़ा था। कुछ जरूरी काम आ गया होगा। तो गयी भी तो भी कसम दिलवा गयी। कसम दिलवा गयी कि मुल्ला, एक बात की कसम खा लो कि किसी और स्त्री के साथ बाहर मत जाना। जाते ही मुल्ला ने फोन किया अपनी प्रेयसी को, कहा कि आ जाओ, पत्नी मायके गयी है और महीने  पंद्रह दिन अब कोई झंझट नहीं है।

प्रेयसी चाहती थी कि मुल्ला उसके घर आए। लेकिन मुल्ला जिद्द पर अड़ा रहा सो अड़ा रहा। आखिर प्रेयसी ने खीझकर पूछा, नसरुद्दीन, मामला क्या है? मैं ही तुम्हारे घर आऊं ऐसी जिद्द क्यों? तुम मेरे घर क्यों नहीं आ सकते?

मुल्ला ने कहा, कारण है। कारण यह है कि मैंने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया है कि जब तक वह मायके में है, मैं किसी स्त्री के साथ बाहर नहीं जाऊंगा। और कोरा आश्वासन नहीं, उसने कुरान हाथ में रखवाकर कसम दिलवा दी। सो बाहर तो मैं जा नहीं सकता, अब तुम ही आ जाओ। भीतर आने की तो कोई बात ही नहीं है कसम में कि बाहर की स्त्री को भीतर नहीं आने दूंगा। मैं किसी स्त्री के साथ बाहर नहीं जाऊंगा।

सब कसमें ऐसी हैं। झूठ हैं। तुम खाना भी नहीं चाहते थे, खानी पड़ी है। तुमने प्रतिष्ठा और अहंकार के आधार पर खा ली होगी। अब पत्नी अगर कहे कि किसी स्त्री के साथ बाहर न जाओगे, कसम खाओ। अगर तुम न खाओ तो झंझट! उसका मतलब कि तुम जाने का विचार किए बैठे हो। न खाओ तो साफ हो गयी बात कि तुम विचार ही किए बैठे हो। कि तुम राह ही देख रहे हो कि कब पत्नी जाए। इसलिए कसम तो खानी ही पड़ेगी। फिर कसम में से कोई तरकीब निकालनी पड़ेगी। तो लोग कसमों में से तरकीब निकालते हैं।

मुल्ला नसरुद्दीन ने शराब छोड़ दी थी। लेकिन एक दिन एक मित्र ने देखा कि वह पी रहा है। तो उसने पूछा, अरे, मैंने तो सुना था तुमने छोड़ दी! उसने कहा, खरीदनी छोड़ दी। जाकर कसम खा ली, पत्नी बहुत पीछे पडी थी, तो कसम खा ली कि अब शराब कभी खरीदकर न पीऊंगा। कोई पिला दे तो बात और। मैंने तो यहां तक सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन का एक मित्र मरा तो मरते वक्त दोनों साथ साथ शराब पीते रहे जिंदगीभर; जब भी दोनों जाते तो दो गिलासों में शराब आती थी मरते वक्त उसके मित्र ने कहा, मुल्ला, अब तुम अकेले ही शराब पीओगे, मेरी याद करोगे या नहीं? मुल्ला ने कहा, याद जरूर करूंगा। 

तो मित्र ने कहा, इस तरह से याद करना कि मैं तो चला जाऊंगा, मैं तो मर रहा हूं कोई उम्मीद नहीं डाक्टर कहते हैं, तुम इतना करना, कि जब भी तुम शराब पीओ तो जैसे हम सदा दो गिलास का आर्डर देते थे, दो का ही आर्डर देना। दोनों गिलास तुम पी लेना एक तुम्हारे लिए, एक मेरे लिए। इससे मेरी आत्मा को बड़ी शांति रहेगी। मुल्ला ने कहा, अरे, यह भी कोई बात! जरूर करूंगा। इससे अच्छा और क्या? मुल्ला तो ऐसा प्रसन्न हो गया कि अच्छा ही हुआ कि मित्र मर रहा है।

मित्र तो मर गए, मुल्ला दो गिलास बुलाकर पीने लगा। जब भी कोई पूछता कि दो गिलास क्यों, अकेले तो तुम हो, तो वह कहता एक मित्र के लिए। मित्र तो मर चुका है। सारे गाव में खबर हो गयी कि वह दो गिलास बुलाकर पीता है। जहां भी जाए, वह दो गिलास बुलाकर पीए। फिर एक दिन शराबघर में आया और एक ही गिलास का आर्डर दिया। तो शराबघर के मालिक ने कहा, नसरुद्दीन, बात क्या है, क्या मित्र को भूल गए? नहीं, उसने कहा, यह बात नहीं, डाक्टर ने कहा है कि नसरुद्दीन शराब पीना छोड़ दो। तो मेरा गिलास तो छोड़ना पड़ रहा है। मित्र की तरफ तो जो वफादारी है सो निभानी ही पड़ेगी।

आदमी ऐसा बेईमान है। तुम्हारे व्रत, तुम्हारे नियम, सब कानूनी बातें हैं। अगर तुम्हारा बोध उनके साथ नहीं है तो तुम कोई न कोई तरकीब निकाल लोगे। आदमी बड़ा कुशल है। दूसरों को धोखा देने में तो है ही, खुद को धोखा देने में भी बड़ा कुशल है। तुम कोई न कोई मार्ग खोज लोगे। इसलिए मैं व्रत के पक्ष में नहीं हूं। मैं बोध के पक्ष में हूं। मैं कहता हूं समझने की कोशिश करो। समझदारी ही तुम्हारा व्रत बन जाएगी। व्रत को अलग से मत लो।

 ओशो 

एस धम्मो सनंतनो 

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