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Monday, October 12, 2015

प्रेम+ध्‍यान=परमात्‍मा ३

 एक फकीर के बाबत मुझे ख्‍याल आता है। एक छोटा सा फकीर का झोंपड़ा था। रात थी, जोर से वर्षा होती थी। रात के बारह बजे होंगे। फकीर और उसकी पत्‍नी दोनों सोते थे। किसी आदमी ने दरवाजे पर दस्‍तक दी। छोटा सा झोंपड़ा कोई शायद शरण चाहता था। उसकी पत्‍नी से उसने कहा कि द्वार खोल दें, कोई द्वार पर खड़ा है, कोई यात्री कोई अपरिचित मित्र।

सुनते है उसकी बात, उसने कहां, कोई अपरिचित मित्र, हमारे तो परिचित है, वह भी मित्र नहीं है। उसने कहां की कोई अपरिचित मित्र,प्रेम का भाव है।

कोई अपरिचित मित्र द्वार पर खड़ा है, द्वार खोल उसकी पत्‍नी ने कहां,लेकिन जगह तो बिलकुल नहीं है। हम दो के लायक ही मुश्‍किल से है। कोई तीसरा आदमी भीतर आयेगा तो हम क्‍या करेंगे।

उस फकीर ने कहा,पागल यह किसी अमीर का महल नहीं है,जो छोटा पड़ जाये। यह गरीब को झोंपड़ा है। अमीर का महल छोटा पड़ जाता है। हमेशा एक मेहमान आ जाये तो महल छोटा पड़ जाता है। यह गरीब की झोपड़ी है।


उसकी पत्‍नी ने कहां इसमे झोपड़ी….अमीर और गरीब का क्‍या सवाल है? जगह छोटी है।

उस फकीर ने कहा कि जहां दिल में जगह बड़ी हो वहां, झोपड़ी महल की तरह मालूम हो जाती है। और जहां दिल में छोटी जगह हो, वहां झोंपड़ा तो क्‍या महल भी छोटा और झोंपड़ा हो जाता है। द्वार खोल दो, द्वार पर खड़े हुए आदमी को वापस कैसे लौटाया जा सकता है? अभी हम दोनों लेटे थे, अब तीन लेट नहीं सकेंगे,तीन बैठेंगे। बैठने के लिए काफी जगह है।

मजबूरी थी, पत्‍नी को दरवाजा खोल देना पडा। एक मित्र आ गया, पानी से भीगा हुआ। उसके कपड़े बदले और वे तीनों बैठ कर गपशप करने लग गये। दरवाजा फिर बंद कर दिया।

फिर किन्‍हीं दो आदमियों ने दस्‍तक दी। अब उस मित्र ने उस फकीर को कहा, वह दरवाजे के पास था, कि दरवाजा खोल दो। मालूम होता है कि कोई आया है। उसी आदमी ने कहा, कैसे खोल दूँ दरवाजा, जगह कहां हे यहां।

वह आदमी अभी दो घड़ी पहले आया था खुद और भूल गया वह बात की जिस प्रेम ने मुझे जगह दी थी। वह मुझे जगह नहीं दी थी, प्रेम था उसके भीतर इस लिए जगह दी थी। अब कोई दूसरा आ गया जगह बनानी पड़ेगी।

लेकिन उस आदमी ने कहा,नहीं दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं; मुश्‍किल से हम तीन बैठे हे।

वह फकीर हंसने लगा। उसने कहां, बड़े पागल हो। मैंने तुम्‍हारे लिए जगह नहीं की थी। प्रेम था, इसलिए जगह की थी। प्रेम अब भी है, वह तुम पर चुक नहीं गया और समाप्‍त नहीं हो गया। दरवाजा खोलों, अभी हम दूर-दूर बैठे है। फिर हम पास-पास बैठ जायेंगे। पास-पास बैठने के लिए काफी जगह है। और रात ठंडी है, पास-पास बैठने में आनंद ही और होगा।

दरवाजा खोलना पडा। दो आदमी भीतर आ गये। फिर वह पास-पास बैठकर गपशप करने लगे। और थोड़ी देर बीती है और रात आगे बढ़ गयी है और वर्षा हो रही है ओर एक गधे ने आकर सर लगाया दरवाजे से। पानी में भीग गया था। वह रात शरण चाहता था।

उस फकीर ने कहा कि मित्रों, वे दो मित्र दरवाजे पर बैठे हुए थे जो पीछे आये थे; दरवाजा खोल दो, कोई अपरिचित मित्र फिर आ गया।

उन लोगों ने कहा, वह मित्र वगैरह नहीं है, वह गधा है। इसके लिए द्वार खोलने की जरूरत नहीं है।

उस फकीर ने कहा कि तुम्‍हें शायद पता नहीं, अमीर के द्वार पर आदमी के साथ भी गधे जैसा व्‍यवहार किया जाता है। यह गरीब की झोपड़ी है, हम गधे के साथ भी आदमी जैसा व्‍यवहार करेने की आदत भर हो गई है। दरवाजा खोल दो।

पर वे दोनों कहने लगे, जगह।

उस फकीर ने कहा, जगह बहुत है; अभी हम बैठे है, अब खड़े हो जायेंगे। खड़े होने के लिए काफी जगह है। और फिर तुम घबडाओं मत, अगर जरूरत पड़ेगी तो मैं हमेशा बहार होने के लिए तैयार हूं। प्रेम इतना कर सकता है।

एक लिविंग एटीट्यूड, एक प्रेमपूर्ण ह्रदय बनाने की जरूरत है। जब प्रेम पूर्ण ह्रदय बनता है। तो व्‍यक्‍तित्‍व में एक तृप्‍ति का भाव एक रसपूर्ण तृप्‍ति…..।

क्‍या आपको कभी ख्‍याल है कि जब भी आप किसी के प्रति जरा-से प्रेमपूर्ण हुए, पीछे एक तृप्‍ति की लहर छूट गयी है। क्‍या आपको कभी भी खयाल है कि जीवन में तृप्‍ति के क्षण वही रहे है। जो बेशर्त प्रेम के क्षण रहे होंगे। जब कोई शर्त न रही होगी प्रेम की। और जब आपने रास्‍ते चलते एक अजनबी आदमी को देखकर मुस्कुरा दिया होगा उसके पीछे छूट गयी तृप्‍ति का कोई अनुभव है? उसके पीछे साथ आ गया एक शांति का भाव। एक प्राणों में एक आनंद की लहर का कोई पता है। जब राह चलते किसी आदमी को उठा लिया हो, किसी गिरते को संभाल लिया हो, किसी बीमार को एक फूल दे दिया हो। इसलिए नहीं कि वह आपकी मां है, इसलिए नहीं की वह आपका पिता है। नहीं वह आपका कोई नहीं है। लेकिन एक फूल किसी बीमार को दे देना आनंद पूर्ण है।
व्‍यक्‍तित्‍व में प्रेम की संभावना बढ़ती जानी चाहिए। वह इतनी बढ़ जानी चाहिए पौधों के प्रति, पक्षियों के प्रति पशुओं के प्रति, आदमी के प्रति, अपरिचित के प्रति, अंजान लोगों के प्रति, विदेशियों के प्रति, जो बहुत दूर है उसके प्रति, प्रेम हमारा बढ़त चला जाए।  

जितना प्रेम हमारा बढ़ता है, उतनी ही सेक्‍स की जीवन में संभावना कम होती चली जाती है।

प्रेम और ध्‍यान दोनों मिलकर उस दरवाजे को खोल देते है, जो दरवाजा परमात्‍मा की और जाता है।

प्रेम+ध्‍यान=परमात्‍मा। प्रेम और ध्‍यान का जोड़ हो जाये और परमात्‍मा उपलब्‍ध हो जाता है।

और उस उपलब्‍धि से जीवन में ब्रह्मचर्य फलित होता है। फिर सारी उर्जा एक नये ही मार्ग पर ऊपर चढ़ने लगती है। फिर बह-बह कर निकल जाती है। फिर जीवन से बाहर निकल-निकल कर व्‍यर्थ नहीं हो जाती। फिर जीवन के भीतरी मार्गों पर गति करने लगती है। उसका एक ऊर्ध्‍वगमन, एक ऊपर की तरफ की यात्रा शुरू होती है।

सम्भोग से समाधी की ओर 

ओशो

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