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Wednesday, March 1, 2023

जिस भगवान को हम नहीं जानते, उसका स्मरण कैसे करें?



मत करो स्मरण! लेकिन जिसे तुम जानते हो, उससे पूरी तरह असंतुष्ट तो हो जाओ। जहां तुम खड़े हो, उस जमीन को तो व्यर्थ समझ लो। तो तुम्हारे पैर आतुर हो जाएंगे उस जमीन को खोजने के लिए, जहां खड़ा हुआ जा सके। जिस नाव पर तुम बैठे हो, उसे तो देख लो कि वह कागज की है। कोई फिक्र नहीं कि दूसरी नाव का हमें कोई पता नहीं है। और हमें कोई पता नहीं है कि कोई किनारा भी मिलने वाला है। हमें कोई पता ही नहीं है कि कोई और खिवैया भी हो सकता है। लेकिन यह नाव, जिस पर तुम बैठे हो, कागज की है या सपने की है, जरा नीचे इसकी तलाश कर लो।




और जिस आदमी को पता चल जाए कि मैं कागज की नाव में बैठा हूं पता है वह क्या करेगा? कम से कम चीखकर रोका, चिल्लाएगा तो! पता है कि कोई सुनने वाला नहीं है, तो भी मैं कहता हूं वह चिल्लाएगा और रोएगा। कोई किनारा हो या न हो, और कोई निकट हो या न हो, उस स्वात निर्जन में भी उसका रुदन तो सुनाई ही पड़ेगा, उसके प्राण तो चिल्लाने ही लगेंगे, कि मैं कागज की नाव में बैठा हूं, अब क्या होगा? इस घटना से ही, इस विह्वलता से ही अचानक हृदय का एक नया यंत्र शुरू हो जाता है। हृदय में दो यंत्र हैं। वैज्ञानिक से पूछने जाएंगे, तो वह कहेगा, फेफड़े के अतिरिक्त हृदय में और कुछ भी नहीं है, फुफफुस है। पंपिंग सेट के सिवाय वहा कुछ भी नहीं है। वह सिर्फ श्वास को फेंकने और खून को शुद्ध करने का काम करता है। एक पंपिंग की व्यवस्था है। वैज्ञानिक से पूछने जाएंगे, तो हृदय जैसी कोई भी चीज नहीं है, फेफडा है, फुफफुस है, लेकिन शब्द हम सदा हृदय का उपयोग करते हैं, हालाकि हमारे पास भी फुफफुस है अभी, अभी हृदय नहीं है।




हृदय उस फेफड़े का नाम है, जो दूसरे संसार में श्वास लेना शुरू करता है। यह फेफड़ा तो इसी संसार में श्वास लेता है, यही आक्सीजन और कार्बन डायआक्साइड के बीच चलता है। एक और भी आक्सीजन है, एक और प्राणवायु है, एक और प्राणवान जीवन है, जब वह शुरू होता है, तो इसी फुफफुस के भीतर एक और हृदय है, जिसमें नई श्वास और नई धड़कन शुरू हो जाती है। वह धड़कन अमृत की धड़कन है। तो दूसरी बात है, विह्वलता। और तीसरी बात है, समर्पण।



पहली बात है, यह जो चारों तरफ है, यह व्यर्थ हो जाए, तो ही आंख उठेगी। आंख उठे, कुछ दिखाई न पड़े; जो था, वह छूट जाए; जो मिलने को है, वह मिले नहीं; बीच में आदमी अटक जाए तो विह्वलता पैदा होगी; घबड़ाहट पैदा होगी; एक बेचैनी पैदा होगी। कीर्कगार्ड ने कहा है, एक ट्रेबलिंग, एक कंपन पैदा होगा। एक चिंता पैदा होगी कि अब क्या होगा? जो नाव थी वह छूट गई, नई नाव पर पाव नहीं पड़े, अब तो लहर पर ही खड़े हैं, अब क्या होगा?



इस विह्वलता में घटना घटेगी।



और तीसरी बात है, समर्पण। समर्पण का अर्थ है, जब उस नए हृदय की धड़कन शुरू हो जाए, तो समग्र भाव से, अत्यंत श्रद्धापूर्वक, पूरे ट्रस्ट से, भरोसे से उस नए जीवन में प्रवेश कर जाना। उस नए जीवन को सौंप देना अपनी बागडोर। कहना कि तू मुझे खींच ले।



दो तरह से एक आदमी नाव में जाता है। एक तो नाव होती है, जिसमें हाथ से खेना पड़ता है। एक नाव होती है, जिसमें पाल लगा होता है। हवा बहती है पूरब की तरफ और पाल खोल देते हैं, तो हवा ही नाव को खींचकर ले जाती है।



ध्यान रहे, संसार का जो जगत है, वहा जिस नाव से हमें चलना पड़ता है, वहां खेना होता है, वहां प्रत्येक आदमी को मेहनत उठानी पड़ती है, पतवार चलानी पड़ती है। तब भी चलता नहीं कुछ, कहीं पहुंचते नहीं। पतवार चलती है बहुत, परेशान बहुत होते हैं, दौड़— धूप, पूरी जिंदगी डूब जाती है, किनारा—विनारा कभी मिलता नहीं। वही सागर की लहरें ही कब सिद्ध होती हैं। लेकिन मेहनत करनी पड़ती है। यहां इंचभर अगर आप रुके, तो डूब जाएंगे। कारण, पूरे वक्त लगे रहना पड़ता है बचने में। यहां क्षणभंगुर है सब। यहां पूरे वक्त लगे रहेंगे, तब भी डूबेंगे! लेकिन जितनी देर बचे रहे, उतनी देर बचे रहेंगे।




एक दूसरा लोक है, जिसकी मैं बात कर रहा हूं, जिसकी कृष्ण बात कर रहे हैं। उस लोक में आपको पतवार नहीं चलानी पड़ती। वहा पतवार लेकर पहुंच गए, तो आप मुश्किल में पड़ेंगे। वहा तो उस परमात्मा की हवाएं ही आपकी नाव को ले जाने लगती हैं। आपको सिर्फ छोड़ देना पड़ता है।



लेकिन जिसको पतवार चलाने की आदत है और कभी उस पाल वाली नाव में नहीं बैठा है, वह पाल वाली नाव में बैठकर बहुत घबडाएगा कि पता नहीं कहां जाऊंगा? क्या होगा, क्या नहीं? उतर जाऊं? क्या करूं? या पतवार भी चलाऊ?



समर्पण का अर्थ है, तुम अपनी पतवार मत चलाना। वह तुम्हें जहां ले जाए, तुम वहीं चले जाना। छोड़ देना अपने को।



तो कृष्ण कहते हैं, ऐसा जो छोड़ देता है सब, वह मुझे उपलब्ध हो जाता है।


गीता दर्शन 

भाग 4 प्रवचन 112 


ओशो 




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