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Friday, October 9, 2015

सहज विद्या

आत्मज्ञान दूसरे से सीखने की कोई सुविधा नहीं है; वह भीतर सफुरित होता है। जैसे वृक्षों में फूल लगते हैं, जैसे झरने बहते हैं ऐसा तुम्हारे भीतर जो बह रहा है, कलकल नाद कर रहा है, वह तुम्हारा ही है सहज उसे किसी से लेना नहीं। कोई गुरु उसे दे नहीं सकता; सभी गुरु उस तरफ इशारा करते हैं। जब तुम पाओगे, तब तुम पाओगे कि यह भीतर ही छिपा था; यह अपनी ही संपदा है। इसलिए ‘सहज विद्या’ कहा है।

दो तरह की विद्याएं है। संसार की विद्या सीखनी है तो दूसरे से सीखनी पड़ेगी; वह सहज नहीं है। कितना ही बुद्धिमान आदमी हो, संसार की विद्या दूसरे से सीखनी पड़ेगी। और, कितना ही छू आदमी हो, तो भी आत्मविद्या दूसरे से नहीं सीखनी पड़ेगी। वह तुम्हारे भीतर है। बाधा मोह की है। मोह कट जाता है—बादल छंट जाते हैं, सूर्य निकल आता है!

ऐसे जागृत योगी को ‘सारा जगत मेरी ही किरणों का परित्कृरण है  ‘ऐसा बोध होता है। और, जिस दिन सहज विद्या का जन्म होता है, जागृति आती है तो दिखाई पड़ता है कि ‘सारा जगत मेरी ही किरणों का स्फुरण है।’
तब तुम केंद्र हो जाते हो। तुम बहुत चाहते थे कि सारे जगत के केंद्र हो जाओ, लेकिन अहंकार के सहारे वह हीं  हो पाया। हर बार हारे। और अहंकार खोते ही तुम केंद्र हो जाते हो। तुम जिसे पाना चाहते हो, वह तुम्हें मिल जायेगा; लेकिन तुम गलत दिशा में खोज रहे हो। तुम प्रांत मार्ग पर चल रहे हो। तुम जो पाना चाहते हो, वह मिल सकता है; लेकिन जिसके सहारे तुम पाना चाहते हो, उसके सहारे नहीं मिल सकता; क्योंकि तुमने गलत सारथी चुना है। तुमने वाहन गलत चुन लिया है। 

अहंकार से तुम कभी भी विश्व के केंद्र न बन पाओगे। और, निरहंकारी व्यक्ति तख्ता विश्व का केंद्र बन जाता है। बुद्धत्व प्रगट होता है बोधिवृक्ष के नीचे, सारी दुनियां परिधि हो जाती है; सारा जगत परिधि हो जाता है; बुद्धत्व केंद्र हो जाता है। सारा जगत फिर मेरा ही फैलाव है। फिर सभी किरणें मेरी हैं। सारा जीवन मेरा है लेकिन, यह ‘मेरा’ तभी फलित होता हैं, जब ‘मैं’ नहीं बचता। यही जटिलता है। जब तक ‘मैं’ है, तब तक तुम कितना ही बड़ा कर लो ‘मेरे’ के फैलाव को; कितना ही बड़ा साम्राज्य बना लो तुम धोखा दे रहे हो।
 
काफी चल चुके हो। अनेक अनेक जन्मों में भटक चुके हो, फिर भी सजग नहीं हो! 

मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन हवाई जहाज में सवार हुआ। अपनी कुर्सी पर बैठते ही उसने परिचारिका को बुलाया और कहा कि ‘सुनो! तेल, पानी, हवा, पेट्रोल, सब ठीक ठीक हैं न? ‘उस परिचारिका ने कहा कि ‘तुम अपनी जगह शांति से बैठो। यह तुम्हारा काम नहीं। यह हमारी चिंता है।’ नसरुद्दीन ने कहा कि ‘फिर बीच में उतरकर धक्का देने के लिए मत कहना।’

मुझे किसी ने बताया तो मैंने नसरुद्दीन को पूछा, ‘ऐसी बात घटी?’ उसने कहा, ‘घटी। दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। बस का जला हवाई जहाज में भी चिंता रखता है बीच में उतरकर धक्का न देना पड़े।’ तुम बहुत बार जल चुके हो। छाछ को भी फूंक फूंक कर पीना तो दूर, तुमने अभी दूध को भी फूंक फूंक कर पीना नहीं सीखा।

जीवन की बड़ी से बड़ी दुविधा यही है कि हम अनुभव से सीख नहीं पाते। लोग कहते हैं कि हम अनुभव से सीखते हैं; लेकिन दिखाई नहीं पडता। कोई अनुभव से सीखता हुआ दिखाई नहीं पड़ता। फिर फिर तुम वही भूलें करते हो। नयी भी करो, तो भी कुछ कुशलता है। नयी भी करो तो भी कुछ जीवन में गति आए, प्रौढ़ता आए। वही वही भूलें बार बार करते हो, पुनरुक्ति करते हो।

चित्त एक वर्तुल है। तुम उसी उसी में घुमते रहते हो चाक की तरह और वह चाक चलता है तुम्हारे मोह से। मोह को तोड़ो, चाक रुक जायेगा। चाक के रुकते ही तुम पाओगे कि तुम केंद्र हो। तुम्हें केंद्र बनने की जरूरत नहीं है, तुम हो। तुम्हें परमात्मा बनने की आवश्यकता नहीं है, तुम हो ही। इसलिए वह विद्या सहज है।

ऐसे जाग्रत योगी को ‘सारा जगत मेरी ही किरणों का स्कुरण है’ ऐसा बोध होता है। और, इस बोध का परम आनंद है। इस बोध में परम अमृत है। इस बोध के आते ही तुम्हारे जीवन से सारा अंधकार खो जाता है सारा सुख, सारी चिंता; तुम एक हर्षोन्माद से भर जाते हो; एक मस्ती, एक गीत का जन्म होता है तुम्हारे जीवन में; तुम्हारी श्वांस श्वांस पुलकित हो जाती है, सुगंधित हो जाती है किसी अज्ञात के स्रोत से।

वह सहज विद्या है; कोई शास्त्र उसे सिखा नहीं सकता। कोई गुरु उसे सिखा नहीं सकता। लेकिन, गुरु तुम्हें बाधाएं हटाने में सहयोगी हो सकता है। इस बात को ठीक से खयाल में ले लेना।

उस परम विद्या को सीखने का कोई उपाय नहीं है, लेकिन परम विद्या के मार्ग में जो जो बाधाएं है, उनको दूर करने का उपाय सीखना पड़ता है। ध्यान से वह परम संपदा नहीं मिलेगी; ध्यान से केवल दरवाजे की चाबी मिलेगी। ध्यान से केवल दरवाजा खुलेगा। वह परम संपदा तुम्हारे भीतर है। तुम ही हो वह तत्वमसि! वह ब्रह्म तुम ही हो।

सब उपाय बाधाएं हटाने के लिए हैं मार्ग के पत्थर हट जाएं। मंजिल, मंजिल तुम अपने साथ लिए चल रहे हो। सहज है ब्रह्म; कठिनाई है तुम्हारे मोह के कारण। कठिनाई यह नहीं है कि ब्रह्म को मिलने में देर है; कठिनाई यह है कि संसार को तुमने इतने जोर से पक्का है कि जितनी देर तुम छोड़ने में लगा दोगे, उतनी ही देर उसके मिलने में हो जाएगी। इस क्षण छोड़ सकते हो इसी क्षण उपलब्धि है। रुकना चाहो जन्मों जन्मों से तुम रुके हो, और भी जन्म जन्म रुक सकते हो। वैसे काफी हो गया, जरूरत से ज्यादा रुक लिये। अब और रुकना जरा भी अर्थपूर्ण नहीं है।

समय पक गया है; अब संसार के वृक्ष से तुम्हें गिर जाना चाहिए। और, डरो मत कि वृक्ष से गिरेंगे तो खो जाएंगे। खो जाओगे, लेकिन तुम्हारा जो व्यर्थ है वही खोएगा जो सार्थक है, वह अनंत गुना होकर उपलब्ध हो जाता है।



शिव सूत्र 

ओशो 

मोह जय

मोह के आवरण का अर्थ होता है कि तुम्हारी आत्मा कहीं और बंद है। वह पत्नी में हो, धन में हो, पद में हो—वह कहीं भी हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; लेकिन तुम्हारी आत्मा तुम्हारे भीतर नहीं है मोह का यह अर्थ है। और शाश्वत, स्थायी रूप से मोह जय का अर्थ है कि तुमने सारी परतंत्रता छोड़ दी। अब तुम किसी और पर निर्भर होकर नहीं जीते; तुम्हारा जीवन अपने पर निर्भर है। तुम स्वकेंद्रित हुए। तुमने अपने अस्तित्व को ही अपना केंद्र बना लिया। अब पली न रहे, धन न रहे, तो भी कोई फर्क न पड़ेगा वे ऊपर की लहरें है तो भी तुम उद्विग्र न हो जाओगे। सफलता रहे कि विफलता, सुख आये कि दुख कोई अंतर न पड़ेगा। क्योंकि, अंतर पड़ता था इसलिए कि तुम उन पर निर्भर थे।

मोह जय का अर्थ है: परम स्वतंत्र हो जाना; मैं किसी पर निर्भर नहीं हूं ऐसी प्रतीति; मैं अकेला काफी हूं पर्याप्त हूं ऐसी तृप्ति। मेरा होना पूरा है, ऐसा भाव मोह जय है। जब तक दूसरे के होने पर तुम्हारा होना निर्भर है, तब तक मोह पकड़ेगा; तब तक तुम दूसरे को जकडोगे कि कहीं छूट न जाये, कहीं खो न जाये रास्ते में; क्योंकि उसके बिना तुम कैसे रहोगे!

मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मरी तो वह औपचारिक रूप से रो रहा था। लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन का एक मित्र था, वह बहुत ही ज्यादा शोरगुल मचाकर रो रहा था छाती पीट रहा है, आंसू बहा रहा है। मुल्ला नसरुद्दीन से भी न रहा गया। उसने कहा, ‘मेरे भाई, मत इतना शोरगुल कर, मैं फिर शादी कर लूंगा। तुम इतने ज्यादा दुखी मत होओ।’ वे मित्र जो थे, वे मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी के प्रेमी थे। नसरुद्दीन के प्राण वहां न थे, लेकिन उनके प्राण वहां थे। उसने ठीक ही कहा कि तुम इतना शोरगुल मत करो, मैं फिर शादी करूंगा।

कौनसी चीज तुम्हें रुलाती है वही तुम्हारा मोह है। कौन सी चीज के खो जाने से तुम अभाव अनुभव करते हों वही तुम्हारा मोह है। सोचना, कौन सी चीज खो जाए कि तुम एकदम दीन दीन हो जाओगे वह तुम्हारे मोह का बिंदु है। और, इसके पहले कि वह खोए, तुम उस पर से अपनी पकड़ छोड़ना, क्योंकि वह खोएगी। इस संसार में कोई भी चीज स्थिर नहीं है न मित्रता, न प्रेम कोई भी चीज स्थिर नहीं है। यहां सब बदलता हुआ है। संसार का स्वभाव प्रतिक्षण परिवर्तन है। यह एक बहाव है नदी की तरह बह रहा है। यहां कुछ भी ठहरा हुआ नहीं। तुम लाख उपाय करो, तो भी कुछ ठहरा हुआ नहीं हो सकता। तुम्हारे उपाय के कारण ही तुम परेशान हो। जो सदा चल रहा है, उसको तुम ठहरना चाहते हो; जो बह रहा है, उसे तुम रोकना चाहते हो, जमाना चाहते हो वह जमनेवाला नहीं है। वह उसका स्वभाव नहीं है।,

परिवर्तन संसार है और वहां तुम चाहते हो कि कुछ स्थायी सहारा मिल जाये, वह नहीं मिलता। इसलिए तुम, प्रतिपल दुखी हो। हर क्षण तुम्हारे सहारे खो जाते हैं।

एक बात खोजने की चेष्टा करना कि कौन सी चीजें हैं जो खो जायें तो तुम दुखी होओगे। इसके पहले कि वे खोये, तुम अपनी पकड़ हटाना शुरू कर देना। यह मोह जय का उपाय है। पीड़ा होगी; लेकिन यह पीड़ा झेलने जैसी है; यह तपश्‍चर्या है। कुछ छोड्कर भाग जाने की जरूरत नन्हीं कि तुम अपनी पत्नी को छोड्कर हिमालय भाग जाना। तुम जहां हो, वहीं रहना। लेकिन पत्नी पर निर्भरता को धार धीरे काटते जाना। कोई जरूरत नहीं कि इससे पली को दुख दो। पत्नी को पता भी नहीं चलेगा; कोई कारण भी नहीं पता चलाने का किसी को।

शिव सूत्र 

ओशो


अहंकार के सुक्ष्म रूप

जब तुम एक बुराई को काटते हो, तो तुम दस बुराइयां पैदा भी कर रहे हो। एक बुराई काटते हो, निन्यानबे बुराइयां तो तुम्हारे भीतर मौजूद हैं। वे तुम्हारी एक भलाई को भी रंग देंगी,उसे भी बुरा कर देंगी। इसलिए, तुम पुण्य भी करते हो, तो वह भी पाप जैसा हो जाता है। तुम अमृत भी छूते हो तो जहर हो जाता है; क्योंकि शेष सब बुराइयां उस पर टूट पड़ती हैं। तुम मंदिर भी बनाओ तो भी उससे विनम्रता नहीं आती; उससे अहंकार भरता है। और, अहंकार के बड़े सूक्ष्म रास्ते हैं! व्यर्थ से भी अहंकार भरता है।

मुल्ला नसरुद्दीन के पास एक कुत्ता था। न उस कुत्ते की कोई नसल का ठिकाना था; न कोई डील डौल; देखने में बदशक्ल, कमजोर; हर समय डरा हुआ, भयभीत; पैर झुके हुए, शरीर दुर्बल; लेकिन, नसरुद्दीन उसकी भी तारीफ हांका करता था। मैंने उससे पूछा, ‘कुछ इस कुत्ते के संबंध में बताओ भी’।, नाम उसने उसका रखा था: एडोल्फ हिटलर। नसरुद्दीन ने कहा कि हिटलर की नसल का भला कोई ठीक ठीक पता न हो; लेकिन, बड़ा कीमती जानवर है। और, एक अजनबी कदम नहीं रख सकता घर के आसपास, बिना हमें खबर हुए। हिटलर फौरन खबर देता है।

मैंने पूछा कि क्या करता है तुम्हारा हिटलर, क्योंकि उसे देखकर संदेह होता था कि वह कुछ कर सकेगा भौकता है, चिल्लाता है, चीखता है, काटता है, क्या करता है? नसरुद्दीन ने कहा, ‘जी नहीं! जब भी कोई अजनबी आता है, हिटलर फौरन हमारे बिस्तर के नीचे आकर छिप जाता है। ऐसा कभी नहीं होता कि अजनबी आ जाए और हमें पता न हो। मगर उसका भी गुण गौरव है।’

तुम्हारा अहंकार मुल्ला नसरुद्दीन के हिटलर जैसा है न तो नसल का कोई पता है…। तुम्हें पता है कि तुम्हारा अहंकार कहां से पैदा हुआ? जो है ही नहीं, वह पैदा कैसे होगा? वह भांति है। उसकी नसल का कोई पता नहीं
तुम तो परमात्मा से पैदा हुए हो; तुम्हारा अहंकार कहां से पैदा हुआ? और, कभी तुमने अपने अहंकार को गौर से देखा कि भला नाम तुम एडोल्फ हिटलर रख लिये हो सभी सोचते हैं; लेकिन उसके पैर बिलकुल झुके है.. .दीन हीन!

बड़े से बडा अहंकार भी दीन हीन होता है। क्यों? क्योंकि, बड़े से बडा अहंकार भी नपुंसक होता है। उसमें तो कोई ऊर्जा तो होती नहीं; ऊर्जा तो आत्मा की होती है। ऊर्जा का स्रोत अलग है। इसलिए, अहंकार को चौबीस घंटे सम्हालना पड़ता है। वह अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं रह सकता; उसे और पैर हमें उधार देने पड़ते हैं। कभी पद से हम उसे सहारा देते हैं; कभी धन से सहारा देते हैं; कभी पुण्य से सहारा देते है, कुछ न बने तो पाप से सहारा देते हैं।

कारागृह में जाकर देखो! वहां लोग अपने पापों की झूठी चर्चा करते हैं, जो उन्होंने कभी किये ही नहीं। जिसने एक आदमी को मारा है, वह कहता है कि मैंने सैकडों का सफाया कर दिया; क्योंकि कारागृह में अहंकार के बड़े होने का वही उपाय है। छोटे मोटे आदमी वहां बड़े कैदी हैं जिन्होंने काफी उपद्रव किये हैं। जिन पर एकाध धारा में मुकदमा चला है, उनकी कोई कीमत है! जिन पर दस पच्चीस धाराएं लगी हैं; जिन पर सौ दो सौ मुकदमे चल रहे हैं; जो रोज अदालत में हाजिर होते हैं  आज इस मुकदमे के लिए, कल उस मुकदमे के लिए कारागृह में वे ही दादा गुरु हैं। वहां आदमी झूठे पापों की भी बात करता है, जो उसने कभी नहीं किये।

पुण्य से भी, पाप से भी; धन से, पद से हर चीज से अहंकार को तुम सहारा देते हो, तब भी वह खड़ा नहीं रहता; मौत उसे गिरा देती है। क्योंकि, जो नहीं है, मौत उसी को मिटाकी; जो है, उसके मिटने का कोई भी उपाय नहीं। तुम तो बचोगे लेकिन, ध्यान रखना जब मैं कहता हूं ‘तुम बचोगे’, तो मैं उस तत्व की बात कर रहा हूं जिसका तुम्हें कोई पता ही नहीं।

जिसे तुम समझते हो तुम्हारा होना, वह तो नहीं बचेगा; वह तुम्हारा अहंकार मात्र है। तुम्हारा नाम, तुम्हारा रूप, तुम्हारा धन, तुम्हारी प्रतिष्ठा, तुम्हारी योग्यता तुमने जो कमाया, वह कुछ भी न बचेगा, उसको छोड्कर भी अगर तुम कुछ हो; अगर थोड़ी सी भी संधि रेखा उसकी मिलनी शुरू हो गयी जो तुम्हारी योग्यता से बाहर है; जो तुमने कमाया नहीं, जिसे तुम लेकर ही पैदा हुए थे; जो पैदा होने के पहले भी तुम्हारे साथ था वही केवल मृत्यु के बाद तुम्हारे साथ रहेगा।

शिव सूत्र 

ओशो 

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