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Saturday, October 17, 2015

गुरु परताप साध की संगति

मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन ऐसे ही चला गया घर छोड़कर। बस अब चला। उसने कहा : हो गया सब खत्म। चला 

जाऊंगा, लेट जाऊंगा ट्रेन के आगे और मर जाऊंगा।

पत्नी ने कहा : जाओ भी।

मैं घर बैठा था। मैंने कहा कि ऐसे मत भेजो।.

उसने कहा : तुम ठहरो तो, तुम ज़रा देखो तो। जाने भी दो। जाओ!

मुल्ला थोड़ी देर में वापिस आ गया।

मैंने पूछा : क्यों?

उसने कहा कि पानी गिरने लगा और बिना छतरी लिए ही चला गया।

अब जिसको मरने जाना है वह कोई छतरी की फिक्र करता है!

एक दिन तो मैंने सुना है कि वह बिल्कुल पहुंच ही गया रेल पर। दो पटरियां थीं रेल की। दोनों को गौर से देखा, फिर एक पर लेट रहा।

एक चरवाहा जो पास में ही खड़ा अपनी भेड़ें, गाय इत्यादि चरा रहा था, उसने भी देखा उसे लेटते हुए। वह भी हैरान हुआ कि दोनों को उसने जांचकर देखा कि किस पटरी पर लेटना है। फिर उसने पूछा कि मेरे मन में एक जिज्ञासा उठती है, अब आप तो जा ही रहे हैं दुनिया से, यह मेरे मन में सवाल उठता है कि आपने बड़ी जांच पड़ताल की कि किस पटरी पर लेटना है।

उसने कहा कि जांच पड़ताल न करूं तो क्या बिना जांच पड़ताल किए ही लेट जाऊं? यह पटरी जंग खाई हुई है, इस पर ट्रेन आती ही नहीं। जंग के हिसाब से लेटा हूं। वह दूसरी पटरी चमक रही है बिल्कुल, साफ मामला, फैसला हो जाएगा।

और उस आदमी ने पूछा, जब आप जवाब देने को राजी हैं तो एक सवाल और कि यह टिफिन किसलिए लाए हैं?

उसने कहा कि और कहीं ट्रेन लेट हो जाए, तो भूखे ही मर जाएं?

टिफिन लेकर मरने आए हैं?

न कोई मरता. . . .लेकिन धमकियां चलती हैं। धमकियां ये इसलिए दी जाती हैं कि देखें दूसरे पर क्या असर होता है! पति पत्नी कलह ही कर रहे हैं: चौबीस घंटे कलह। इसी कलह में कभी कभी, बीच बीच प्रेम के भी क्षण होते हैं, बस पानी के बबूलों की तरह फूट फूट जाते हैं। तुम जिस प्रेम को जानते हो, वह यही प्रेम है।

तुम मुझसे भी प्रेम करोगे तो स्वभावतः यही प्रेम होगा पहले तो और तुम दूसरे प्रेम लाओगे कहां से! तो तुम्हारे प्रेम में सम्मान भी होगा और गहरा छिपा हुआ कहीं विरोध भी होगा। तुम्हारे प्रेम में प्रेम भी होगा और घृणा भी होगी। तुम एक तरफ से मित्र भी रहोगे, एक तरफ से शत्रु भी।

मगर यह कोई हैरानी की बात नहीं है, यह स्वाभाविक है। रमते रहे, जमते रहे, उठते रहे, बैठते रहे तो धीरे धीरे निखार लेंगे। पानी को उड़ा देंगे, लकड़ियों को सुखा लेंगे। सत्संग का काम ही इतना हैः लकड़ियों को सुखा देना। गुरु परताप साध की संगति! बैठते बैठते लकड़ियां सूख जाएंगी। ऐसा सूखा काष्ठ हो जाएगा कि फिर आग उठेगी तो धुआं नहीं होगा। निर्धूम अग्नि प्रेम का शुद्धतम रूप है।


गुरु परताप साध की संगति

ओशो
 

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