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Saturday, October 24, 2015

बंधन

मैं एक संन्यासी को जानता हूं जो किसी स्त्री को नहीं देख सकते। वे बहुत घबड़ा जाते है। अगर कोई स्‍त्री मौजूद हो तो वे आंखें झुकाए रखते है, वे सीधे नहीं देखते। क्या समस्या है? निश्चित ही, वे अति कामुक रहे होंगे, कामवासना से बहुत ग्रस्त रहे होंगे। वह ग्रस्तता अभी भी जारी है, लेकिन पहले वे स्त्रियों के पीछे भागते थे और अब वे स्त्रियों से दूर भाग रहे हैं। पर स्त्रियों से ग्रस्तता बनी हुई है; चाहे वे स्त्रियों की ओर भाग रहे हों या स्त्रियों से दूर भाग रहे हों, उनका मोह बना ही हुआ है।

वे सोचते हैं कि अब वे स्त्रियों से मुक्त हैं, लेकिन यह एक नया बंधन है। तुम प्रतिक्रिया करके मुक्त नहीं हो सकते। जिस चीज से तुम भागोगे वह पीछे के रास्ते से तुम्हें बांध लेगी; उससे तुम बच नहीं सकते। यदि कोई व्यक्ति संसार के विरोध में मुक्त होना चाहता है तो वह कभी मुक्त नहीं हो सकता, वह संसार में ही रहेगा। किसी चीज के विरोध में होना भी एक बंधन है।

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