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Monday, October 26, 2015

जाग्रत, स्वप्र और सुषुप्‍ति ५

इस चार घंटे में इतना सिखाया जा पाता है कि जिसकी कल्पना करनी मुश्किल है। रूसी वैज्ञानिक तो यह कह रहे हैं कि अब हम बच्चों को स्कूल की कारागृह से जल्दी ही छुटकारा दिला देंगे। वह खतरनाक है कारागृह। छोटे बच्चे न खेल पाते हैं उसकी वजह से, न मौज कर पाते हैं। न नाच पाते हैं न कूद पाते हैं। बचपन से ही उनको कारागृह में बिठा दिया जाता है। पांच छ: घंटे छोटे बच्चों को जबरदस्ती स्कूल में बिठाए रखना उनकी जिंदगी के लिए हमेशा का सबसे कीमती और स्वर्ण अवसर व्यर्थ ही स्कूल की बेंचों पर बैठकर नष्ट होता रहता है। अधिक लोगों की जिंदगी में दुख का कारण वही है। क्योंकि जब सवांधिक आनंदित होने के उपाय थे, जीवन ताजा था, प्रफुल्लता थी और जीवन से एक संबंध निर्मित हो सकता था, तब भूगोल, इतिहास और गणित, उनमें सारा समय गया। और उन सबसे जो मिलनेवाला है, वह जीवन नहीं है, आजीविका है। इसका मतलब यह हुआ कि जीवन को गंवाया आजीविका के लिए।

लेकिन रूसी वैज्ञानिक अब कहता है कि यह ज्यादा दिन नहीं चलेगा। हम शीघ्र ही वह रास्ते खोज लिए हैं जिनसे बच्चे दिन भर खेल सकते हैं, मौज कर सकते हैं, भ्रमण पर जा सकते हैं। जो उन्हें करना हो कर सकते हैं। और रात्रि, रात्रि उनको शिक्षा दी जा सकती है। इसको वे ‘हिप्रोपीडिया’ कहते हैं, निद्रा शिक्षण। लेकिन इसमें भी वह सूत्र है कि उनको जगाया जाए। और अगर हम शिक्षा दे सकते हैं भीतर, तो ‘बारदो’ ठीक कहता है कि कान में कहकर स्वप्र भी पैदा किये जा सकते हैं।

अगर स्वप्र में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो तो उसे दूसरा जन्म पिछले जन्म की याददाश्त के साथ मिलेगा। ऐसा बच्चा मा के पेट में भी स्वप्र की अवस्था में रहेगा। ऐसा बच्चा नया जन्म भी स्वप्र की अवस्था में लेगा। इस तरह के बच्चे में और सुषुप्ति में जन्म लिये हुए बच्चे में जुइनयादी फर्क होगा। जन्म में फर्क होगा।

जो बच्चा मां के पेट में स्वप्र में रहेगा, उस बच्चे के कारण मां के मन में अनेक स्वप्र पैदा होंगे। बुद्ध और महावीर, विशेषकर जैनों के चौबीस तीर्थंकरों के संबंध में कथा है कि जब भी वे मां के पेट में आए तो मां ने विशेष सपने देखे। चौबीस तीर्थंकरों की मां ने एक से ही सपने देखे सैकड़ों, हजारों साल के फासले पर। तो जैनों ने उसका पूरा विज्ञान ही निर्मित किया। तब उन्होंने निश्रित कर लिया कि इस तरह के सपने जब किसी मां को हों तो उसके पेट से तीर्थंकर पैदा होनेवाला है। वे सपने निश्रित हो गये। जैसे शुभ्र हाथी दिखायी पड़े, जो साधारणत: नहीं दिखायी पड़ता चेष्टा भी करें तो नहीं दिखायी पड़ता तो तीर्थंकर जन्म लेनेवाला है। तो यह ‘सिंबालिक’ हो गये। ये तीर्थंकर के प्रतीक हो गये कि जब किसी मां के पेट में तीर्थंकर का व्यक्तित्व आएगा, तो वह इन सपनों को देखेगी।

तो जैनों ने तो उनकी शोध करके सपने तय कर दिये। इतने सपने हैं। अगर ये आएं तो ही पैदा होनेवाला बच्चा तीर्थंकर होगा। बुद्धों के सपने भी तय हैं कि जब बुद्ध की चेतना का व्यक्ति कहीं पैदा होगा, तो उसके सपने क्या होंगे? ये सपने तभी पैदा हो सकते हैं, जब भीतर आया हुआ व्यक्ति स्वप्र की अवस्था में मरा हो, स्वप्र की अवस्था में जन्मा हो और स्वप्र की अवस्था में मा के पेट में हो। तो मां के सपने उस बच्चे से तीव्रता से प्रभावित होंगे। सच तो यह है कि वह मां बिलकुल आच्छादित हो जाएगी उस बच्चे से; क्योंकि बच्चा मां से बडा व्यक्तित्व लेकर आया हुआ है। ऐसा जो बच्चा पैदा जो रूप में पैदा हुआ है ऐसा बच्चा चाहे तो एक जन्म में मुक्ति को उपलब्ध हो सकता है। चाहे तो! न चाहे तो और भी जन्म ले सकता है। लेकिन मुक्ति अब उसकी किसी भी क्षण घटित हो सकती है। जब चाहे, तब घटित हो सकती है......


क्रमशः 

ओशो 

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