Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Monday, January 18, 2016

संप्रदाय औपचारिक है

पिता पूजते हैं, बेटा भी पूजेगा, पिता पूजते हैं तो बेटे को भी पुजवाएंगे। पिता जा करते हैं, वह बेटे को भी करने के लिए बाध्य करेंगे। जो पिता ने अपने निर्णय से किया था, वह बेटा पिता के निर्णय से करेगा। इस प्रकार सब मर गया।

पिता तो बुद्ध के पास गए थे अपने बोध से; खींचा था बुद्ध ने, इसलिए गए थे; भीतर कोई पुकार उठी थी; भीतर कोई आमंत्रण मिला था, तो गए थे। बेटे पर आरोपण होगा, आमंत्रण नहीं। न तो बुद्ध हैं पुकारने को, न बेटे को बुद्ध का कोई पता है। कथाएं हैं, कहानियां हैं, जिन पर बेटा भरोसा भी नहीं कर सकता, क्योंकि बातें ही कुछ ऐसी हैं कि जब तक जानो न, भरोसा नहीं होता। बेटे की यह मजबूरी है। जिसने जाना नहीं अवतरण को; जिसने देखी नहीं वह ज्योति जो आकाश से आती है; जिसने केवल पृथ्वी की ज्योतियां ही देखी हैं उसके पास कोई उपाय भी तो नहीं है कि भरोसा करे। संदेह स्वाभाविक है। उसके संदेह को पुरानी पीढ़ी दबाएगी। पुरानी पीढ़ी भी एक मुसीबत में है उसने देखा है। और कौन बाप न चाहेगा कि उसका बेटा भी भागीदार हो जाए उस परम अनुभव में! कौन मां न चाहेगी कि उसका बेटा भी उस परम की दिशा में यात्रा पर निकल जाए! क्योंकि, जो भी हमने जाना है, हम चाहते हैं हमारे प्रियजन भी जान लें। जो हमने पिया और तृप्त हुए हम चाहते हैं, हमारे प्रियजन क्यों प्यासे क्षुधातुर मरें!

तो बाप की भी मजबूरी है कि वह चाहता है कि बेटे को दिखला दे। बेटे की मजबूरी है कि जो उसने देखा नहीं, जो निमंत्रण उसे नहीं मिला, वे उसे कैसे देख ले? इन दोनों के बीच संप्रदाय पैदा होता है। बाप थोपता है करुणा से; बेटा स्वीकार करता है भय से। बाप ताकतवर है जो कहता है मानना पड़ेगा, न मानो तो मुसीबत में डाल सकता है। बाप कहता है अपने प्रेम से! बेटा स्वीकार करता है अपनी निर्बलता से। इन दोनों के बीच में संप्रदाय पैदा होता है।

पहली पीढ़ी के पास तो थोड़ीसी धुन होती है। गीत तो बंद हो गया, प्रतिध्वनि गूंजती रहती है। दूसरी पीढ़ी को न गीत का पता है, न प्रतिध्वनि का। जिसने गीत ही न सुना हो, उसे प्रतिध्वनि का कैसा पता चलेगा? जो मूल से ही चूक गया हो, उसके लिए प्रतिलिपियां काम न आएंगी। और कितना ही समझाओ, बात समझाने की नहीं है। कबीर कहते हैं, “लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात।’ देखी तो ही सही है, नहीं देखी तो परमात्मा से बड़ा झूठ इस संसार में नहीं है। देखा तो उससे बड़ा कोई सत्य नहीं है। देखा तो वही एक मात्र सत्य है; सभी सत्य उसमें लीन हो जाते हैं। नहीं देखा तो परमात्मा सरासर झूठ है। सब चीजें सत्य हैं। रास्ते के किनारे पर पड़ा पत्थर भी सत्य है; परमात्मा झूठ है।

सुनो भई साधो 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts