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Saturday, January 23, 2016

विराट के प्रति समर्पण

रामकृष्ण कहते थे, तुम सिर्फ उसकी हवा का रुख पहचान लो, फिर तुम अपनी नाव का पाल खोल दो। फिर तुम्हें पतवार भी न चलानी पड़ेगी, फिर नाव, उसकी हवाएं ले चलेंगी गंतव्य की ओर। लेकिन तुम उसकी हवा का रुख पहचान लो। और अगर तुम हवा के विपरीत चले, तो तुम्हें बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, और मेहनत करके भी तुम सफल न हो पाओगे, सिर्फ टूटोगे। क्योंकि विराट से लड़कर कोई भी सफल नहीं हो सकता।


भयावह का अर्थ इतना ही है कि विराट से तुम लड़ना मत, विराट के प्रति समर्पित हो जाना।

इस उठे हुए वज्र के समान महान भयस्वरूप सर्वशक्तिमान परमेश्वर को जो जानते हैं वे अमर हो जाते हैं। जन्म मरण से छूट जाते हैं!
 
क्योंकि वस्तुत: अगर हम ठीक से समझें, तो मृत्यु भी हमारे गलत चलने का परिणाम है। हम अपने को शरीर से बाधतेहैं, इसलिए मृत्यु घटित होती है। अगर हम शरीर से अपने को न बाधें, मृत्यु घटित न होगी। शरीर की ही मृत्यु होती है, हमारी तो मृत्यु नहीं होती, लेकिन हम शरीर से बांध लेते हैं। जैसे कोई कागज की नाव पर सवार हो जाए, फिर नाव डूब जाए तो गलती नाव की नहीं है, गलती सागर की भी नहीं है। आप कागज की नाव पर सवार थे, डूबना तो निश्चित ही था। जितनी देर चल गई, वही काफी है। वह भी चमत्कार है!

शरीर के साथ जिसने अपने को बांधा है, उसने मरने की तो तैयारी कर ही ली, क्योंकि शरीर मरणधर्मा है। जो व्यक्ति भी मरणधर्मा के साथ चलेगा, वह अमृत के विपरीत चल रहा है। वह मरेगा, बार बार मरेगा। जो व्यक्ति अमृत के अनुकूल चलेगा, मरणधर्मा से नहीं बांधेगा अपने को, यम कह रहा है, वह समस्त भयों से मुक्त हो जाता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है, जन्म मरण से छूट जाता है।






कठोपनिषद

ओशो


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