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Thursday, January 28, 2016

साधना क्या है ?

चेखव की एक छोटीसी कहानी है। दो पुलिस के सिपाही एक रास्ते से गुजर रहे हैं। एक छोटीसी होटल है। वहां बड़ी भीड़ है। एक आदमी ने एक कुत्ते की टांग पकड़ रखी है। और वह कह रहा है, इसको मार ही डालेंगे। इसने मुझे काटा है, यह औरों को भी काट चुका है। और भीड़ में सब मजा ले रहे हैं, वे कह रहे हैं, मार ही डालो। वे पुलिस वाले भी दोनों जाकर खड़े हो गए हैं। और पुलिस वालों को भी कुत्ते सताते हैं। पुलिस वालों पर कुत्ते विशेष ध्यान रखते हैं। तो उन कुत्तों से वे पुलिस वाले भी परेशान थे। उन्होंने कहा, यह बहुत अच्छा कर रहे हो, यह काम करने योग्य ही था। इस कुत्ते को मार ही डालो, यह हमें भी रात में हैरान करता है।


तभी बगल वाले पुलिस वाले ने कहा कि जरा खयाल रखना, यह तो मुझे ऐसा लगता है कि अपने बड़े साहब का कुत्ता है। तो वह पहला सिपाही जो कह रहा था कि मार ही डालो, उसने फौरन उस आदमी की गर्दन पकड ली जो कुत्ते को पकड़े था। उसने कहा, बदमाश। ट्राफिक में भीड इकट्ठी की है तूने? और यहां यह उपद्रव मचा रहा है? थाने चल! और दूसरे पुलिस वाले ने जल्दी से उस कुत्ते को उठाया और कंधे पर ले लिया और पुचकारने लगा। और जब उसने उसको पुचकारा और जब उस आदमी को पकड़ लिया, सारी भीड़ हैरान हो गई कि क्या हो गया। अभी यह कह रहा था, मार डालो!


लेकिन दूसरे ही क्षण उस कुत्ते को गौर से देखकर दूसरे साथी ने कहा, नहीं, यह तो साहब वाला कुत्ता नहीं मालूम पड़ता। तो उस सिपाही ने जल्दी से कुत्ते को नीचे पटका और उस आदमी को कहा, पकड़ इस कुत्ते को, मार डाल इसको। यह कुत्ता बड़ा खतरनाक है। लेकिन जब तक उस आदमी ने उस कुत्ते को पकड़ा, उस पहले सिपाही ने फिर उससे कहा कि भई, कुछ पक्का नहीं कहा जा सकता है। यह दिखता तो बिलकुल मालिक का ही कुत्ता है।


तो ऐसी वह कहानी चलती है और उस कुत्ते के बाबत कई दफा रुख बदलता है, क्योंकि कई दफे प्रयोजन बदल जाता है। कुत्ता वही है, आदमी वही है, सिपाही वही है, सब वही है। चीजें जैसी हैं वे बिलकुल वैसी हैं, लेकिन कहानी दो चार दफे रुख बदल लेती है, क्योंकि हर बार प्रयोजन बदल जाता है। कभी वह मालिक का कुत्ता हो जाता है, कभी नहीं रह जाता है। जब वह नहीं रह जाता तो व्यवहार एकदम बदलना पड़ता है। जब वह मालिक का हो जाता है, तब उसको एकदम पुचकारना पड़ता है और व्यवहार बदलना पड़ता है।


हम सब ऐसे ही जी रहे हैं। मन है, तो हम ऐसे ही जीएंगे। तो जो मैं कह रहा हूं कि साधना… साधना है क्या? साधना है इस मन से छुटकारा। लेकिन जब छुटकारा हो जाएगा, तो फिर साधना का क्या करोगे? इसी मन के साथ उसको भी दफना देना पड़ेगा। यह मन जाएगा उसी के साथ। उससे कहना पड़ेगा, इस साधना को भी लेते जाओ, यह तुम्हारी ही वजह से है। तुम्हारे कारण ही यह साधना पकड़नी पड़ी थी, अब तुम्हीं जा रहे हो तो कृपा करके इसको ले जाओ।


और जब कोई आदमी मन और साधना दोनों से मुक्त हो जाता है, बीमारी और औषधि दोनों से। ध्यान रहे, अगर सिर्फ बीमारी से मुक्त होता है और औषधि जारी रहती है, तब अभी मुक्ति मत समझना। और कई दफे बीमारी उतनी खतरनाक सिद्ध नहीं होती है जितना औषधि का पकड़ जाना खतरनाक सिद्ध होता है। क्योंकि बीमारी दुखद है, उसे छोड़ना आसान पड़ता है। औषधि सुखद है, उसे छोड़ने का मन ही नहीं होता। पर औषधि क्या कुछ बड़ी वांछनीय चीज है! बीमार के लिए है। स्वस्थ के लिए औषधि का कोई अर्थ होता है? स्वस्थ के लिए कोई भी अर्थ नहीं होता। चूंकि तुमने बीमार होने की जिद की है, इसलिए औषधि भी लेने की मजबूरी झेलनी पड़ती है। लेकिन अगर बीमार होने की जिद नहीं कर रहे हो, तो औषधि बेमानी है।

मैं मृत्यु सिखाता हूँ 

ओशो 



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