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Thursday, January 28, 2016

“तू अपने मन को अपनी इंद्रियों की क्रीड़ाभूमि नहीं बनने देगा.....

सूरज भी देखता है आपको, वृक्ष भी और यह पृथ्वी भी। यह सारा अस्तित्व आप में उतना ही उत्सुक है, जितना आप इसमें। और जितनी आपकी उत्सुकता बढ़ती है, उतनी ही उसकी उत्सुकता प्रगट होती है। और तब एक कम्युनिअन, एक मिलन, एक आलिंगन घटित होता है। इस अस्तित्व के आलिंगन का नाम ही समाधि है। ध्यान से चलना है उस तरफ, जहां पर मिलना हो जाए।


लेकिन अगर आप रोते हुए, उदास, टूटे हुए, हारे हुए हैं, तो यह मिलन न हो पाएगा। टूटे हुए, हारे हुए से कौन मिलना चाहता है! दुखी, उदास से कौन मिलना चाहता है! क्योंकि तब मिलने का अर्थ है, वह दुख और उदासी आप में उंडेल देगा।


यह अस्तित्व आपकी प्रतीक्षा करता है कि किस दिन आप नाचते, गाते, आनंद से भरे हुए उसके निकट आएंगे–उस दिन यह मिलन हो पाएगा। सब मिलन आनंद के क्षण में होते हैं। और सब बिखराव दुःख के क्षण में होते हैं। 

इसलिए दुःख में इतनी पीड़ा है। क्योंकि दुःख में हम अकेले रह जाते हैं। और किसी से कोई संबंध नहीं रह जाता। आनंद में, हम अकेले नहीं रह जाते। सारा अस्तित्व अपने पूरे उत्सव के साथ सम्मिलित हो जाता है।

“तू अपने मन को अपनी इंद्रियों की क्रीड़ाभूमि नहीं बनने देगा। तू अपनी सत्ता को परम सत्ता से भिन्न नहीं रखेगा, वरन समुद्र को बूंद में और बूंद को समुद्र में डुबा देगा।’

तू डूब जाएगा अस्तित्व में और अस्तित्व को अपने में डूब जाने देगा।

समाधी के सप्त द्वार 

ओशो 




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