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Thursday, January 28, 2016

एक मित्र ने सुबह की चर्चा के बाद पूछा है कि क्या कुछ आत्माएं शरीर छोड़ने के बाद भटकती रह जाती हैं?


कुछ आत्माएं निश्चित ही शरीर छोड़ने के बाद एकदम से दूसरा शरीर ग्रहण नहीं कर पाती हैं। उसका कारण? उसका कारण है। और उसका कारण शायद आपने कभी न सोचा होगा कि यह कारण हो सकता है। दुनिया में अगर हम सारी आत्माओं को विभाजित करें, सारे व्यक्तित्वों को, तो वे तीन तरह के मालूम पड़ेंगे। एक तो अत्यंत निकृष्ट, अत्यंत हीन चित्त के लोग; एक अत्यंत उच्च, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत पवित्र किस्म के लोग; और फिर बीच की एक भीड़ जो दोनों का तालमेल है, जो बुरे और भले को मेल मिलाकर चलती है। जैसे कि अगर डमरू हम देखें, तो डमरू दोनों तरफ चौड़ा है और बीच में पतला होता है। डमरू को उलटा कर लें। दोनों तरफ पतला और बीच में चौड़ा हो जाए तो हम दुनिया की स्थिति समझ लेंगे। दोनों तरफ छोर और बीच में मोटा डमरू उलटा। इन छोरों पर थोड़ीसी आत्माएं हैं।


निकृष्टतम आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में और श्रेष्ठ आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में। बीच की आत्माओं को जरा भी देर नहीं लगती। यहां, मरे नहीं, वहां, नई यात्रा शुरू हो गई। उसके कारण हैं। उसका कारण यह है कि साधारण, मीडियाकर मध्य की जो आत्माएं हैं, उनके योग्य गर्भ सदा उपलब्ध रहते हैं।


मैं आपको कहना चाहूंगा कि जैसे ही आदमी मरता है, मरते ही उसके सामने सैकड़ों लोग संभोग करते हुए, सैकड़ों जोड़े दिखाई पड़ते हैं, मरते ही। और जिस जोड़े के प्रति वह आकर्षित हो जाता है वहां, वह गर्भ में प्रवेश कर जाता है। लेकिन बहुत श्रेष्ठ आत्माएं साधारण गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकतीं। उनके लिए असाधारण गर्भ की जरूरत है, जहॉं असाधारण संभावनाएं व्यक्तित्व की मिल सकें। तो श्रेष्ठ आत्माओं को रुक जाना पड़ता है। निकृष्ट आत्माओं को भी रुक जाना पडता है, क्योंकि उनके योग्य भी गर्भ नहीं मिलता। क्योंकि उनके योग्य मतलब अत्यंत अयोग्य गर्भ मिलना चाहिए वह भी साधारण नहीं।


श्रेष्ठ और निकृष्ट, दोनों को रुक जाना पड़ता है। साधारण जन एकदम जन्म ले लेता है, उसके लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए निरंतर बाजार में गर्भ उपलब्ध हैं। वह तत्काल किसी गर्भ के प्रति आकर्षित हो जाता है।


सुबह मैंने बारदो की बात की थी। बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से यह भी कहा जाता है कि अभी तुझे सैकड़ों जोड़े भोग करते हुए, संभोग करते हुए दिखाई पड़ेंगे। तू जरा सोच कर, जरा रुक कर, जरा ठहर कर, गर्भ में प्रवेश करना। जल्दी मत करना, ठहर, थोड़ा ठहर! थोड़ा ठहर कर किसी गर्भ में जाना। एकदम मत चले जाना।


जैसे कोई आदमी बाजार में खरीदने गया है सामान। पहली दुकान पर ही प्रवेश कर जाता है। शो रूम में जो भी लटका हुआ दिखाई पड़ जाता है, वही आकर्षित कर लेता है। लेकिन बुद्धिमान ग्राहक दस दुकान भी देखता है। उलट पुलट करता है, भाव ताव करता है, खोज बीन करता है, फिर निर्णय करता है। नासमझ जल्दी से पहले ही जो चीज उसकी आंख के सामने आ जाती है, वहीं चला जाता है।


मैं मृत्यु सिखाता हूँ 

ओशो 
तो बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से कहा जाता है कि सावधान! जल्दी मत करना। जल्दी मत करना। खोजना, सोचना, विचारना, जल्दी मत करना। क्योंकि सैकड़ों लोग निरंतर संभोग में रत हैँ। सैकड़ों जोड़े उसे स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। और जो जोड़ा उसे आकर्षित कर लेता है, और वही जोड़ा उसे आकर्षित करता है जो उसके योग्य गर्भ देने के लिए क्षमतावान होता है।
तो श्रेष्ठ और निकृष्ट आत्माएं रुक जाती हैं। उनको प्रतीक्षा करनी पड़ती है कि जब उनके योग्य गर्भ मिले। निकृष्ट आत्माओं को उतना निकृष्ट गर्भ दिखाई नहीं पड़ता, जहां, वे अपनी संभावनाएं पूरी कर सकें। श्रेष्ठ आत्मा को भी नहीं दिखाई पड़ता।
निकृष्ट आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम प्रेत कहते हैं। और श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम देवता कहते हैं। देवता का अर्थ है, वे श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक गईं। और प्रेत का अर्थ है, भूत का अर्थ है, वे आत्माएं जो निकृष्ट होने के कारण रुक गईं। साधारण जन के लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध है। वह तत्काल मरा और प्रवेश कर जाता है। क्षण भर की भी देरी नहीं लगती। यहा समाप्त नहीं हुआ, और वहां, वह प्रवेश करने लगता है।

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